Opinion: योगी की मेहनत पर पानी फेर रहे है बीजेपी के नाकारा पार्षद
लखनऊ, कानपुर, वाराणसी समेत बड़े शहरों से शिकायतें
उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा पार्षदों की गैर-जिम्मेदारी और भ्रष्टाचार ने जनता में नाराजगी बढ़ा दी है। विकास कार्य ठप, कमीशनखोरी के आरोप और जनता से दूरी योगी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। 2027 चुनावों से पहले यह मुद्दा भाजपा की छवि और वोटबैंक पर सीधा असर डाल सकता है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जिस तरह से पार्षदों की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं, उसने न केवल योगी सरकार की चिंता बढ़ा दी है बल्कि स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी की भविष्य की संभावनाओं पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के हजारों पार्षदों ने सरकार की नींद उड़ा रखी है, क्योंकि ये न तो जनता के काम आ पा रहे हैं और न ही खुद को जिम्मेदार जनप्रतिनिधि साबित कर पा रहे हैं। इन पर आरोप है कि इन्हें न तो अपने क्षेत्र के विकास की कोई फिक्र है और न ही जनता से जुड़े मुद्दों में इनकी कोई दिलचस्पी। उलटे इनमें से अधिकांश पार्षद अपने दफ्तरों और बैठकों से गायब रहते हैं, जबकि जब कहीं ठेकेदारी या कमीशन लेने का मामला आता है तो ये सबसे आगे कूद पड़ते हैं। यही वजह है कि विकास कार्य ठप पड़े रहते हैं और जनता का गुस्सा सीधे-सीधे योगी सरकार पर फूटने लगा है।

यह समस्या किसी एक नगर निगम या पालिका तक सीमित नहीं है। गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज, मेरठ, अयोध्या जैसे बड़े नगरों से लेकर छोटे कस्बों तक हर जगह से ऐसी शिकायतें आ रही हैं। बलिया जिले में तो हाल यह है कि कई पार्षद अपनी मौजूदगी ही दर्ज नहीं कराते। वे न तो बैठकों में शामिल होते हैं और न ही जनता के बीच दिखाई देते हैं। परिणाम यह है कि जनता में यह धारणा तेजी से बन रही है कि पार्षद बस राजनीतिक टिकट पाने और लाभ कमाने के लिए चुने जाते हैं, जनता की सेवा इनकी प्राथमिकता नहीं है। कुछ मामलों में तो शिकायतें इतनी गंभीर हो गईं कि लोग आरटीआई के जरिए कामकाज की जांच करने लगे। मुरादाबाद नगर निगम में एक पार्षद के खिलाफ तो यह शिकायत भी आई कि उन्होंने नाली निर्माण के ठेकेदार से खुलेआम कमीशन मांगा। इस तरह की घटनाएं जब उजागर होती हैं तो सरकार की छवि पर सीधा असर पड़ता है, क्योंकि आखिरकार जनता इसकी जिम्मेदारी योगी सरकार पर ही डालती है।
यूपी की जनता पहले से ही महंगाई, बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था जैसी समस्याओं से जूझ रही है और उस पर जब स्थानीय स्तर पर भी उसकी सुनवाई नहीं होती, तो गुस्सा और बढ़ना तय है। भाजपा के पार्षद जिस तरह से काम कर रहे हैं, उससे जनता के भीतर यह संदेश जा रहा है कि सत्ताधारी दल सिर्फ चुनाव जीतने और सत्ता पाने के लिए है, सेवा और विकास की बात बस कागजों पर होती है। विपक्ष ने भी इस मुद्दे को भुनाने का काम शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस लगातार यह आरोप लगा रही हैं कि भाजपा ने भ्रष्ट और नाकारा पार्षदों को टिकट देकर जनता के साथ धोखा किया है। योगी सरकार के विकास के दावों को सवालों के घेरे में खड़ा करते हुए विपक्ष यह कह रहा है कि जब जमीनी स्तर पर भाजपा के पार्षद ही काम नहीं करेंगे, तो विकास की कोई भी योजना धरातल पर कैसे उतर सकती है।
दिलचस्प बात यह भी है कि जब जनता पार्षदों की शिकायत लेकर बीजेपी के स्थानीय नेताओं या मंत्रियों तक पहुंचती है तो वहां से भी उन्हें कोई खास राहत नहीं मिलती। कई मामलों में पार्षदों की शिकायतें सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी पहुंची हैं, लेकिन कार्रवाई न होने से लोगों के मन में निराशा और गुस्सा दोनों ही बढ़ रहा है। कानपुर ग्रामीण की एक घटना इसका स्पष्ट उदाहरण है। वहां एक पार्षद ने हैंडपंप लगवाने के नाम पर हजारों रुपए की वसूली की, लेकिन हैंडपंप आज तक नहीं लगा। जब इस शिकायत को जिले के आला अधिकारियों तक ले जाया गया तो उन्होंने भी टालमटोल कर दी। ऐसे में जनता का गुस्सा योगी सरकार की ओर मुड़ना बिल्कुल स्वाभाविक है।
भाजपा के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि 2027 के विधानसभा चुनावों की राह में स्थानीय निकायों और पार्षदों की अहम भूमिका होती है। जनता का असंतोष सीधे-सीधे पार्टी की वोटबैंक पर असर डाल सकता है। योगी सरकार विकास और सुशासन को अपनी सबसे बड़ी
ताकत मानकर आगे बढ़ रही है, लेकिन जब उसी सरकार की रीढ़ समझे जाने वाले स्थानीय प्रतिनिधि ही जनता का विश्वास खोने लगें, तो पूरा ढांचा कमजोर पड़ने लगता है। यही कारण है कि भाजपा नेतृत्व अंदर ही अंदर इस मसले पर चिंतित है। सूत्र बताते हैं कि सरकार और संगठन स्तर पर ऐसे पार्षदों की रिपोर्ट मांगी जा रही है और कई जगहों पर चेतावनी देने की प्रक्रिया भी शुरू हुई है। हालांकि जनता को अब सिर्फ चेतावनी से तसल्ली मिलने वाली नहीं है, वह ठोस काम चाहती है।
दरअसल, जनप्रतिनिधियों से जनता की अपेक्षा होती है कि वे सिर्फ वोट मांगने तक सीमित न रहें, बल्कि रोजमर्रा की समस्याओं में जनता के बीच खड़े होकर उसकी मदद करें। पार्षद ही सबसे नजदीकी प्रतिनिधि होते हैं और जब वही जनता के साथ धोखा करते नजर आते हैं, तो इससे जनता का भरोसा पूरे शासन-प्रशासन पर से उठ जाता है। इसलिए यदि भाजपा सचमुच जनता का विश्वास बनाए रखना चाहती है, तो उसे अपने हजारों नाकारा पार्षदों पर सख्ती दिखानी होगी। वरना यह नाराजगी आने वाले चुनावों में बड़ा नुकसान साबित हो सकती है।
योगी सरकार फिलहाल भले ही कानून-व्यवस्था और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए है, लेकिन स्थानीय स्तर पर फैल रही भ्रष्टाचार और उदासीनता की यह लहर उस सारे काम को बेअसर करने की ताकत रखती है। आज यूपी की जनता को सिर्फ वादों की नहीं बल्कि जमीनी बदलाव की जरूरत है। भाजपा के पार्षद यदि इस जिम्मेदारी में विफल साबित होते रहे, तो जनता का भरोसा टूटना अब तय है और उसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा। यही वजह है कि इस समय योगी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती सड़क, बिजली और पानी से ज्यादा अपने ही पार्षदों की कार्यशैली को सुधारना है, क्योंकि यही वे चेहरे हैं जो सीधे जनता और सरकार के बीच की कड़ी हैं। अगर ये कड़ी कमजोर पड़ गई तो भाजपा के मजबूत गढ़ को भी दरकने से कोई नहीं रोक पाएगा।
संजय सक्सेना,लखनऊ
वरिष्ठ पत्रकार
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Mohit Sinha is a writer associated with Samridh Jharkhand. He regularly covers sports, crime, and social issues, with a focus on player statements, local incidents, and public interest stories. His writing reflects clarity, accuracy, and responsible journalism.
