कारगिल विजय दिवस: जब गोलियों से ज़्यादा भारी थे जवानों के इरादे, कारगिल योद्धा ने सुनाए बहादुरी के किस्से

इस सैनिक ने बताया: ‘हमने हथियारों से नहीं, जिद से जंग जीती थी

कारगिल विजय दिवस: जब गोलियों से ज़्यादा भारी थे जवानों के इरादे, कारगिल योद्धा ने सुनाए बहादुरी के किस्से
(वार मेमोरियल)

“कारगिल में न बुलेटप्रूफ जैकेट थी, न स्नो शूज़... फिर भी दुश्मन भागा — पढ़िए एक जांबाज़ की ज़ुबानी जंग की पूरी कहानी”

समृद्ध डेस्क: कारगिल युद्ध के 26 साल बाद भी एक पूर्व सैनिक की आंखों में आज भी वो रातें जिंदा हैं जहां संसाधन नहीं थे, लेकिन सीना 56 इंच से बड़ा था। सूबेदार धनेश यादव ने युद्ध के दिनों को याद करते हुए कहा, ‘पाकिस्तान ने हमें धोखा दिया और तय समय से पहले चौकियों पर चढ़ गया। कैप्टन विक्रम बत्रा की तरह कई और नायक थे जिन्होंने कड़े संदेश दिए और अपार वीरता दिखाई।’

जब हम "विजय दिवस" मनाते हैं, तो हमारे ज़ेहन में टैंक, बंदूकें, और शौर्य चक्र आते हैं। लेकिन कारगिल की असली लड़ाई क्या वाकई सिर्फ हथियारों से जीती गई थी?
हमारे पास न बुलेटप्रूफ जैकेट थी, न गर्म कपड़े, और न ही ऊंचाई के हिसाब से हथियार... लेकिन हमारे पास था जज़्बा, ये कहना है उस पूर्व सैनिक का, जो आज भी 1999 की हर रात को याद करता है जैसे कल की बात हो।

ठंड नहीं, गोलियों से भी बड़ी थी चुनौती

उन दिनों भारतीय सेना के पास कारगिल जैसे कठिन इलाकों में लड़ाई के लिए न तो पर्याप्‍त स्नो गियर था, न ऊंचाई में काम आने वाली ऑक्सीजन किट, और न ही पर्याप्त राशन।
फिर भी जवान चढ़ते रहे बर्फीली चोटियों पर सिर्फ एक सोच लेकर: “या तो जीतेंगे, या अमर हो जाएंगे।”

वो रात जब जंग तय हो गई थी...

"हमारी यूनिट को टोलोलिंग की तरफ भेजा गया था। रात भर दुश्मन फायरिंग करता रहा, और हम चुपचाप अपनी पोजिशन तक पहुंचते रहे।, सुबह 4 बजे, बिना भारी हथियारों के, हमने चोटी पर धावा बोला। दुश्मन को उम्मीद नहीं थी कि बिना संसाधनों के भी भारतीय सेना हमला करेगी। वो भागे... कुछ ढेर हुए... और एक चोटी हमारे तिरंगे के नीचे झुक गई।"

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शहादतें थीं, लेकिन हौसला नहीं टूटा

“हमारे तीन साथी वहीं शहीद हो गए। हमें पीछे लौटने का आदेश मिला, लेकिन हमने कहा: ‘या तो पूरी चोटी लेंगे, या वहीं रहेंगे।’ और उसी दिन हमने इतिहास रच दिया।”

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आज भी जब तिरंगा देखता हूं, सीना गर्व से भर उठता है... पूर्व सैनिक कहते हैं, “वो जंग सिर्फ भारत-पाकिस्तान की नहीं थी। वो हर उस जवान की लड़ाई थी जो देश के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार था चाहे उसके पास साधन हों या न हों।”

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देश के नागरिकों से क्या है अपील

सूबेदार धनेश यादव ने कहा, 'पाकिस्तान ने हमें धोखा दिया और तय समय से पहले चौकियों पर चढ़ गया। कैप्टन विक्रम बत्रा की तरह कई और नायक थे जिन्होंने कड़े संदेश दिए और अपार वीरता दिखाई। हमेशा उन नायकों को याद करें जिन्होंने वीरतापूर्वक अपने प्राणों की आहुति दी और उन लोगों का सम्मान करें जो राष्ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित करते हैं।' हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। साल 1999 में इसी दिन भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की सफलता की घोषणा की थी। उस समय लद्दाख के कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों से तीन महीने तक चले संघर्ष के बाद भारत को जीत हासिल हुई थी।

Edited By: Sujit Sinha
Sujit Sinha Picture

सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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