भारत की विदेश नीति: दक्षिण का असली नेता या सिर्फ़ दावे?
भारत की कूटनीति दांव, दम और दबदबा
समृद्ध डेस्क: वैश्विक राजनीति के बदलते परिदृश्य में भारत की स्थिति एक महत्वपूर्ण बहस का विषय बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दशक में भारत ने खुद को 'वैश्विक दक्षिण का नेता' और 'विश्व बंधु' के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है। लेकिन क्या यह दावा वास्तविकता पर आधारित है या केवल राजनीतिक भाषणबाजी है?
G20 अध्यक्षता: भारत की कूटनीतिक जीत
नई दिल्ली घोषणा की ऐतिहासिक सफलता

इस सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण था अफ्रीकी संघ को G20 में स्थायी सदस्यता दिलाना। यह कदम वैश्विक दक्षिण के देशों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अधिक प्रतिनिधित्व देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
'वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ': भारत की पहल
तीन सफल शिखर सम्मेलन
भारत ने वैश्विक दक्षिण की आवाज़ शिखर सम्मेलन के तीन संस्करण आयोजित किए हैं। पहला शिखर सम्मेलन जनवरी 2023 में आयोजित किया गया था, जिसमें 125 देशों की भागीदारी थी
तीसरा संस्करण 2024 में "एक सशक्त वैश्विक दक्षिण के लिए एक स्थायी भविष्य" के विषय के साथ आयोजित किया गया। इस शिखर सम्मेलन में 173 गणमान्य व्यक्तियों ने 123 वैश्विक दक्षिण देशों से भागीदारी की।
'दक्षिण' केंद्र की स्थापना
प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक दक्षिण उत्कृष्टता केंद्र (DAKSHIN - Development And Knowledge sharing initiative) की स्थापना की घोषणा की। यह केंद्र विकासशील देशों की समस्याओं के समाधान के लिए सरल और किफायती उपाय विकसित करने पर केंद्रित है।
आर्थिक कूटनीति में ठोस उपलब्धियां
व्यापारिक संबंधों में भारी वृद्धि
भारत का वैश्विक दक्षिण के साथ व्यापार में नाटकीय वृद्धि हुई है। अफ्रीका के साथ व्यापार 2001 में 5 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2020 में 90 बिलियन डॉलर हो गया। लैटिन अमेरिका में भारत 2024 में 20.22 बिलियन डॉलर के साथ सातवां सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था।
तकनीकी साझेदारी और सहायता
भारत ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक दक्षिण के देशों की सहायता की है। कोविड-19 के दौरान 'वैक्सीन मैत्री' पहल के माध्यम से भारत ने कई देशों को निःशुल्क वैक्सीन उपलब्ध कराई।
नेतृत्व की गंभीर चुनौतियां
पड़ोसी देशों के साथ समस्याग्रस्त संबंध
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की 'पड़ोसी प्रथम' नीति में मिश्रित परिणाम मिले हैं। मालदीव में 'इंडिया आउट' अभियान, नेपाल के साथ मानचित्र विवाद, और श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता जैसे मुद्दों ने भारत की क्षेत्रीय स्थिति को प्रभावित किया है।
चीन चुनौती और सीमा विवाद
भारत-चीन संबंधों में 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद से तनाव जारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के साथ सीमा विवाद भारत की वैश्विक नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं में बाधक है।
घरेलू समस्याओं का नकारात्मक प्रभाव
अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का तर्क है कि भारत की घरेलू समस्याएं - सामाजिक-आर्थिक असमानता, धार्मिक असहिष्णुता, और लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट - इसकी वैश्विक नेतृत्व की क्षमता को प्रभावित करती हैं।
ठोस नीतियां बनाम भाषणबाजी: तथ्यों का विश्लेषण
सकारात्मक और ठोस पहल
भारत ने कई वास्तविक और प्रभावकारी पहल की हैं:
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महासागर सिद्धांत (MAHASAGAR doctrine) का शुभारंभ
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अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का नेतृत्व
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ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस की स्थापना
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भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)
वैश्विक स्वायत्तता की संतुलित नीति
तटस्थता का रणनीतिक लाभ
भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में तटस्थ रुख अपनाया है। यह नीति रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांत पर आधारित है, जहां भारत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है।
बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की मांग
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है और वैश्विक गवर्नेंस संस्थानों में सुधार की वकालत कर रहा है।
भविष्य की रणनीतिक चुनौतियां
2025 की कूटनीतिक प्राथमिकताएं
भारत के सामने 2025 में कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक चुनौतियां हैं:
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अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत बनाना
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ट्रंप प्रशासन के साथ व्यापारिक वार्ता
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चीन के साथ सीमा विवाद का समाधान
तकनीकी कूटनीति में नेतृत्व
भारत AI, सेमीकंडक्टर, और डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ साझेदारी बढ़ा रहा है।
निष्कर्ष: वास्तविक नेतृत्व या केवल भाषणबाजी?
भारत की विदेश नीति का संपूर्ण विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट रूप से दिखता है कि यह केवल भाषणबाजी नहीं है। G20 अध्यक्षता की ऐतिहासिक सफलता, वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ की व्यापक पहल, और कई ठोस विकास परियोजनाएं इस बात का ठोस प्रमाण हैं कि भारत वैश्विक दक्षिण में वास्तविक नेतृत्व प्रदान कर रहा है।
हालांकि, गंभीर चुनौतियां भी मौजूद हैं। पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार, चीन के साथ सीमा विवाद का समाधान, और घरेलू मुद्दों पर ध्यान देना अत्यंत जरूरी है। भारत का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को घरेलू विकास के साथ कैसे संतुलित करता है।
अंततः, भारत वैश्विक दक्षिण में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली खिलाड़ी है, लेकिन अपने नेतृत्व को निर्विवाद बनाने के लिए उसे निरंतर ठोस कार्य करने होंगे। 'वसुधैव कुटुंबकम' का सिद्धांत तभी सार्थक होगा जब वह केवल नारा न रहकर वास्तविक नीति में परिवर्तित हो।
भारत की विदेश नीति में निश्चित रूप से उपलब्धियां और चुनौतियां दोनों मौजूद हैं। लेकिन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह केवल भाषणबाजी नहीं बल्कि ठोस कार्यों पर आधारित एक व्यापक रणनीति है जिसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की स्थिति को मजबूत किया है।
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
