भारत ने नहीं झुकाया सिर: ट्रंप की धमकियों का आंकड़ों से दिया करारा जवाब

अमेरिका की दोहरी नीति का खुलासा: भारत ने दिया करारा जवाब

भारत ने नहीं झुकाया सिर: ट्रंप की धमकियों का आंकड़ों से दिया करारा जवाब

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से व्यापार के मुद्दे पर भारत को टैरिफ और जुर्माने की धमकी दी, लेकिन भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर कायम रहते हुए इन धमकियों को नजरअंदाज कर दिया। भारत ने आंकड़ों के साथ अमेरिका और यूरोपीय संघ की दोहरी नीतियों को उजागर किया, जो खुद भी रूस से महत्वपूर्ण सामान आयात करते हैं

डोनाल्ड ट्रंप की भारत के प्रति बढ़ती चिढ़ और अमेरिका की दोहरी नीति ने वैश्विक मंच पर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भारत को बार-बार टैरिफ और जुर्माने की धमकियां दे रहे हैं, खासकर रूस से तेल और हथियारों के व्यापार को लेकर. लेकिन भारत ने न केवल इन धमकियों को नजरअंदाज किया, बल्किअमेरिका और यूरोपीय संघ की दोहरी नीतियों को उजागर कर जवाबी रुख अपनाया है. भारत का स्पष्ट कहना है कि जब अमेरिका और यूरोप स्वयं रूस से भारी मात्रा में सामान आयात कर रहे हैं, तो भारत पर रूस के साथ व्यापार को लेकर उंगली उठाना अनुचित और अतार्किक है. यह स्थिति वैश्विक भूराजनीति में दोहरे मानदंडों को उजागर करती है, जहां अमेरिका भारत को दबाव में लाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन खुद अपनी जरूरतों के लिए रूस से व्यापार जारी रखे हुए है.

ट्रंप की बयानबाजी में एक साफ विरोधाभास नजर आता है. एक तरफ वह भारत को "महान मित्र" और "महान देश" कहते हैं, दूसरी तरफ 25% रेसिप्रोकल टैरिफ और रूस से व्यापार के लिए जुर्माने की धमकी देते हैं. उनकी हताशा का कारण यह है कि भारत उनके दबाव में झुकने को तैयार नहीं है. ट्रंप को लगता है कि जिस भारत को कभी अमेरिका सड़ा हुआ गेहूं भेजता था, वह आज उनकी धमकियों का जवाब देना भी जरूरी नहीं समझता. उनकी चिढ़ का अंदाजा उनके बयानों से लगाया जा सकता है. कभी वह भारत की अर्थव्यवस्था को "मृतप्राय" कहते हैं, तो कभी पाकिस्तान के साथ तेल सौदों की बात कर भारत को अपमानित करने की कोशिश करते हैं. लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान के पास तेल है ही नहीं, और ट्रंप का यह बयान उनकी हताशा का प्रतीक है. वह भारत को डराने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भारत की रणनीतिक और आर्थिक ताकत के सामने उनकी एक नहीं चल रही.

भारत ने ट्रंप की धमकियों का जवाब न केवल कूटनीतिक रूप से दिया, बल्कि तथ्यों के साथ अमेरिका को आइना भी दिखाया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने साफ कहा कि भारत पर रूस से तेल आयात को लेकर की जा रही आलोचना बेबुनियाद है. भारत ने बताया कि अमेरिका स्वयं रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम, खाद, और रसायन जैसे सामान आयात करता है, जो उसकी परमाणु, इलेक्ट्रॉनिक वाहन, और कृषि उद्योगों के लिए जरूरी हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से मई 2025 तक अमेरिका ने रूस से 2.1 बिलियन डॉलर का आयात किया, जो पिछले साल की तुलना में 23% अधिक है. इसमें पैलेडियम (37%), यूरेनियम (28%), और उर्वरक (21%) का आयात प्रमुख है. यह आंकड़े साफ बताते हैं कि अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध के बावजूद रूस के साथ व्यापार जारी रखा है. 2021 में अमेरिका ने रूस से 17 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया था, और 2024 में भी उसने उर्वरक (1.1 बिलियन डॉलर), पैलेडियम (878 मिलियन डॉलर), और यूरेनियम (624 मिलियन डॉलर) जैसे सामानों का आयात किया.

यूरोपीय संघ भी इस मामले में पीछे नहीं है. वह भारत को रूस से तेल आयात न करने की सलाह देता है, लेकिन स्वयं रूस से ईंधन, लोहा, स्टील, रसायन, और उर्वरक जैसे सामान आयात करता है. 2024 में यूरोपीय संघ ने रूस से 35.9 अरब यूरो का आयात किया, जिसमें 22.3 अरब यूरो का ईंधन प्रमुख था. यह राशि भारतीय रुपये में 3617 करोड़ से अधिक है. भारत का तर्क है कि जब अमेरिका और यूरोप अपनी जरूरतों के लिए रूस से व्यापार कर रहे हैं, तो भारत पर दबाव डालना दोहरा मापदंड है. भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस से 35-40% तेल आयात करता है, जो आर्थिक रूप से फायदेमंद है.

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भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और आर्थिक ताकत ट्रंप की चिढ़ का प्रमुख कारण है. भारत ने न केवल रूस के साथ व्यापार जारी रखा, बल्कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर जोर दिया, जो दोनों देशों के हितों को संतुलित करे. वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत जवाबी टैरिफ के बजाय बातचीत से समाधान चाहता है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी स्पष्ट किया कि भारत ट्रंप के दबाव के बावजूद अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा. भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) के डीजी अजय सहाय के अनुसार, 25% टैरिफ से भारत की जीडीपी पर 0.2-0.5% का असर हो सकता है, लेकिन 6% से अधिक की विकास दर इसे संभाल सकती है. भारत वैकल्पिक बाजारों जैसे यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया, और चीन की ओर भी रुख कर रहा है. चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने भारत से आयात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की बात कही, जो भारत के लिए एक बड़ा अवसर है.

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ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" और "मेक इन अमेरिका" नीतियां भारत के बिना पूरी तरह सफल नहीं हो सकतीं. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार और विनिर्माण केंद्र है. अमेरिकी कंपनियां जैसे एपल, टेस्ला, और बोइंग भारत में निवेश और उत्पादन बढ़ा रही हैं. ट्रंप के प्रस्तावित 25% टैरिफ से भारत में बने उत्पाद महंगे होंगे, जिससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ेगा. साथ ही, मेक इन अमेरिका की लागत बढ़ने से अमेरिकी उत्पाद वैश्विक बाजार में चीन से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे. अमेरिका को यह भी डर है कि भारत यूरोप, चीन, और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे वैकल्पिक बाजारों की ओर रुख कर सकता है, जिससे उसका वैश्विक व्यापार में प्रभाव कम हो सकता है.

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अमेरिकी विशेषज्ञ भी भारत के साथ टैरिफ युद्ध को गलत मानते हैं. अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने कहा कि भारत के साथ व्यापारिक तनाव वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और आर्थिक स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकता है. अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई ने भारत के साथ संतुलित और पारस्परिक लाभकारी व्यापार वार्ताओं की वकालत की. राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ लिसा कर्टिस ने चेतावनी दी कि भारत पर उच्च टैरिफ लगाना अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति को कमजोर करेगा और चीन को क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने का मौका देगा. अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स भी मानता है कि उच्च टैरिफ से अमेरिकी कंपनियां और उपभोक्ता प्रभावित होंगे.

ट्रंप की धमकियों के बीच रैपिडान एनर्जी ग्रुप के चेयरमैन बॉब मैकनेली का बयान चर्चा में है. उन्होंने कहा कि ट्रंप भारत पर रूस से तेल आयात के लिए 25% से लेकर 100% तक टैरिफ लगा सकते हैं. लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन ने भारत से रूसी तेल खरीदने की गुहार लगाई थी ताकि वैश्विक तेल की कीमतें नियंत्रित रहें. पूर्व अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी का एक वायरल वीडियो भी यही बात दोहराता है. गार्सेटी ने कहा कि भारत ने रूसी तेल इसलिए खरीदा क्योंकि अमेरिका चाहता था कि वह एक निश्चित मूल्य सीमा पर तेल खरीदे, जिससे वैश्विक बाजार में स्थिरता बनी रहे.

भारत ने इस दोहरे रवैये को उजागर करते हुए साफ कर दिया है कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों और रणनीतिक हितों से समझौता नहीं करेगा. भारत क्वाड का प्रमुख स्तंभ है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की रणनीति को मजबूती देता है. भारत-अमेरिका iCET पहल के तहत कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सेमीकंडक्टर, और रक्षा प्रौद्योगिकी में सहयोग बढ़ रहा है. भारत की तकनीकी क्षमता और मानव संसाधन अमेरिका के लिए अपरिहार्य हैं. भारत ने अमेरिका के लिए कृषि और डेयरी बाजार पूरी तरह खोलने से भी इनकार किया है, क्योंकि यह 70 करोड़ किसानों के हितों से जुड़ा है.

ट्रंप की बयानबाजी और धमकियां उनकी हताशा का प्रतीक हैं. वह भारत को नाराज नहीं करना चाहते, लेकिन साथ ही अपनी सामंती मानसिकता के कारण झुकना भी नहीं चाहते. भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह दबाव में नहीं आएगा और अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा. आज की तारीख में भारत अमेरिका के लिए पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. ट्रंप की नीतियां और बयानबाजी अमेरिका के लिए ही नुकसानदेह साबित हो सकती हैं. भारत ने न केवल अपनी आर्थिक और रणनीतिक ताकत का परिचय दिया, बल्कि वैश्विक मंच पर दोहरे मानदंडों को बेनकाब कर एक नया संदेश भी दिया है.

 

 

 

Edited By: Sujit Sinha

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