कुछ हाथों में देश की दौलत, करोड़ों के पास सिर्फ संघर्ष: क्या यही है नया भारत?
जब कोई भूखा सोता है और कोई अरबों में खेलता है तो देश बीमार है!
हुरून रिपोर्ट में हुआ खुलासा, 284 अमीरों के पास GDP का 33% हिस्सा, वहीं करोड़ों भारतीय मुफ़्त राशन पर निर्भर। बढ़ती आर्थिक असमानता पर गडकरी और राहुल गांधी ने जताई चिंता।
11 जुलाई को केंद्रीय परिवहन और रोड मंत्री नितिन गडकरी झारखंड के रांची में थे, मौका था बहु प्रतीक्षित रातु रोड के फ्लाइओवर के उद्घाटन का। उद्घाटन के बाद वह जनता को संबोधित कर रहे थे तो अपने भाषण में उन्होंने एक बात कहा कि आज देश की ज्यादातर संपत्ति पर सिर्फ कुछ लोगों और परिवारों का कब्जा हो गया है जो की चिंता की विषय है। इस बात का अर्थ ये हुआ की महज कुछ 50-100 लोगों के पास अकूत संपत्ति है और बाकी करोडों लोग लोअर मिडल क्लास वाले है जिनके पास महज कुछ हजार या लाख रूपया की संपति है। अमीर और गरीब के बीच की खाई काफी बड़ी हो गई है।

हुरून ग्लोबल रिच लिस्ट 2024 के अनुसार भारत के सिर्फ 284 अमीरों के पास हमारे देश की कुल जी डी पी का 33% के बराबर का धन है। इनके पास कुल 98 लाख करोड़ रुपए के बराबर का धन है। सिर्फ मुकेश अंबानी के पास इंडिया की GDP का लगभग 10% जितनी संपति है। इसी हुरून ग्लोबल रिच लिस्ट का कहना है की पिछले 1 साल में सबसे ज्यादा अदानी ग्रुप के चेयर पर्सन गौतम अदानी की संपत्ति सबसे तेज़ी से बढ़ी है।
विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी अक्सर मोदी सरकार पे अंबानी और अदानी को एक तरफा फायदा दिलाने का आरोप लगाते रहे हैं।
मुकेश अंबानी अभी एशिया में सबसे अमीर आदमी बन गए हैं। आज उनकी कंपनी जियो सबसे बड़ी टेलीकॉम कम्पनी है भारत की।
सरकार ने जिस तरह से बीएसएनएल का बंटाधार किया और जियो को पहले 4g स्पेक्ट्रम और फिर 5g स्पेक्ट्रम का लाइसेंस दिया, इससे साफ लगता है की सरकार को भी अपना पब्लिक टेलीकॉम कम्पनी चलाने में कोई खासी दिलचस्पी नहीं है। देखिए हमें दिक्कत इस बात से नहीं है की मुकेश अंबानी एशिया के सबसे अमीर आदमी हो गए हैं, हमें दिक्कत इस बात से है की इस देश में कोई इतना अमीर है की उसकी कई पीढ़ी बिना काम किए बैठे- बैठे खाए तो फिर धन समाप्त नहीं होगा, वहीं दूसरी और इसी देश में लाखों ऐसे गरीब परिवार हैं जिनको 2 वक्त का खाना भी मुस्किल से नसीब हो रहा है। वर्ल्ड बैंक के एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी करोड़ों लोग भारत में गरीब हैं और सरकार के 5kg मुफ्त मिलने वाले राशन पर निर्भर हैं, उनके पास पक्का मकान नहीं है और न ही रोजगार के कोई साधन हैं। हालांकि मोदी सरकार ने इन 5 से 7 सालों में करीब 30 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला है।
अत्यंत गरीबी को लगभग खत्म कर दिया गया है लेकिन लोअर मिडिल क्लास में रहने वाले लोग जिनकी सख्या भी करोडों में है उनके भी हालत कुछ ज्यादा ठीक नहीं हैं। महंगी पढ़ाई, महेंगे इलाज और खाने पीने के चीज़ों के बढ़ते महंगाई ने इनके भाई हालत पस्त कर रखे हैं। कोविड के बाद से लगभग 68 % प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो महज 1 लाख तक का लोन चुकाने में असमर्थ हैं। जहां कुछ अमीर ऐशो आराम वाली जिन्दगी गुजार रहे हैं वहीं करोड़ों लोग जैसे तैसे गुजर बसर कर रहे हैं।
देखिए देश की संपति और संसाधन पर हरेक भारतीय का अधिकार है, चाहे ओ अमीर हो या गरीब। लेकिन मौजूदा हालत में महज कुछ परिवार ही देश के ज्यादातर संसाधन का उपभोग कर रहे हैं जो की नीतिगत भी सही नही और और राष्ट्र हित में भी न्यायिक नहीं है। अमीरों का होना बेशक किसी भी देश के संपन्नता को दर्शाता है और इससे उस देश के उद्योग धंधों का भी विकाश होता है, लेकिन जिस तरह से सरकार धीरे- धीरे सारी चीजों का निजीकरण कर रही है वह बेहद चिंताजनक है। इससे निजी कम्पनियों का मोनोप्ली भी बढ़ रहा ही साथ ही साथ देश की संपति और संसाधन का दोहन भी हो रहा है। एक और सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई महंगी होते जा रही है।
सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था निढाल हो रही है वहीं दूसरी तरफ निजी हॉस्पिटल में इलाज महंगे होते जा रहे हैं। ऐसे में मिडिल क्लास के लोगों का हालत खराब होना लाजिमी है क्योंकि इन्हीं दो चीजों में उनके ज्यादातर पैसे खर्च हो रहे हैं। केन्द्र सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बेसिक जरूरत की चीजों में सुधार लाना ही चाहिए। आम आदमी इस बढ़ती खाई को समझ ही नहीं पा रहा है। आम लोगों को धर्म, जाति और भाषा की लड़ाई में इस कदर उलझा दिया गया गया है की इस और उनका ध्यान ही नहीं जा पता है। हमारे देश की मीडिया भी उन्हीं चंद अमीरों के हाथों में चली गई है जिससे इस तरह की चीजें जनता को दिखाई और बताई ही नहीं जाती है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बाजारों में सामानों की जगह इंसानों को खरीदा और बेचा जाएगा।
