ऑनलाइन गेमिंग और जुआ अपराध: युवा पीढ़ी का अपराध की ओर झुकाव

स्मार्टफोन और इंटरनेट के ज़रिए नई लत, जो अपराध और बर्बादी की ओर ले जा रही है?

ऑनलाइन गेमिंग और जुआ अपराध: युवा पीढ़ी का अपराध की ओर झुकाव
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समृद्ध डेस्क: लखनऊ की उस भयावह रात की कल्पना कीजिए। एक 16 साल का किशोर, जिसे ऑनलाइन गेमिंग की लत थी, अपनी ही माँ पर पिस्तौल तान देता है। वजह? माँ ने उसे गेम खेलने से रोका था। गोली चलती है और माँ की मौत हो जाती है। लेकिन हैवानियत यहीं नहीं रुकती। वह किशोर अपनी 10 साल की छोटी बहन को धमकाकर चुप कराता है और अगले तीन दिनों तक अपनी माँ के शव के साथ उसी घर में रहता है । जब शव से बदबू आने लगती है, तब वह सेना में तैनात अपने पिता को फोन करके बताता है, "मैंने माँ को मार दिया है।"

यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि एक कड़वी हकीकत है जो भारत के हजारों घरों में दस्तक दे रही है। यह घटना ऑनलाइन गेमिंग और जुए के उस अंधेरे पहलू को उजागर करती है, जहां मनोरंजन की चमकदार दुनिया अपराध के खूनी दलदल में खुलती है। यह सिर्फ एक भटके हुए किशोर की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस महामारी का एक लक्षण है जो हमारी युवा पीढ़ी को अपनी चपेट में ले रही है, उन्हें कर्ज, अवसाद और अंततः अपराध की ओर धकेल रही है। यह लेख इस भयावह चलन की जड़ों की पड़ताल करेगा, यह समझेगा कि कैसे एक क्लिक से शुरू हुआ खेल, युवाओं को चोरी, हिंसा और हत्या जैसे जघन्य अपराधों तक ले जा रहा है, और इस डिजिटल संकट से निपटने के लिए सरकार और समाज को क्या कदम उठाने होंगे।

मनोरंजन का मायाजाल: भारत का बढ़ता गेमिंग जुनून

भारत का ऑनलाइन गेमिंग उद्योग महज एक शौक या मनोरंजन का साधन नहीं रहा; यह एक विशाल और आक्रामक बाजार बन चुका है। इसके विस्तार की गति और आकार चौंकाने वाला है, जो इसे एक आर्थिक महाशक्ति के साथ-साथ एक गंभीर सामाजिक चिंता का विषय भी बनाता है।

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आंकड़ों का अंबार

आंकड़े इस उद्योग की भयावहता को दर्शाते हैं। वर्ष 2024 में भारत में ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या 48.8 करोड़ तक पहुंच गई, और अनुमान है कि 2025 तक यह आंकड़ा 51.7 करोड़ को पार कर जाएगा । यह सिर्फ उपयोगकर्ताओं की संख्या नहीं है, बल्कि इसमें लगा पैसा भी हैरान करने वाला है। 2024 में यह बाजार 31,000 करोड़ रुपये का था, और प्रतिबंध लगने से पहले इसके 2029 तक 78,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद थी । इस विशाल राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा, लगभग 85.7%, रियल मनी गेमिंग (RMG) से आता था, यानी ऐसे खेल जिनमें असली पैसा लगाया जाता है । यह स्पष्ट करता है कि यह उद्योग मनोरंजन से कहीं ज़्यादा, पैसे के दांव पर टिका हुआ है। 

लत का मनोविज्ञान: डोपामाइन का खेल

यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह लत संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का परिणाम है। इन गेम्स को मनोवैज्ञानिक रूप से इस तरह डिजाइन किया जाता है कि वे मस्तिष्क के 'रिवॉर्ड सिस्टम' को हाईजैक कर लें। हर छोटी जीत, हर नए लेवल या हर वर्चुअल इनाम पर मस्तिष्क में 'डोपामाइन' नामक एक न्यूरोट्रांसमीटर रिलीज होता है, जो खुशी और संतुष्टि का एहसास कराता है । यही डोपामाइन रश व्यक्ति को बार-बार खेलने के लिए प्रेरित करता है, जब तक कि यह एक अनियंत्रित आदत या लत में न बदल जाए।

इस स्थिति की गंभीरता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने "गेमिंग डिसऑर्डर" को एक आधिकारिक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति के रूप में मान्यता दी है । इसके लक्षणों में गेमिंग पर नियंत्रण खो देना, अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों (जैसे पढ़ाई, सामाजिक जीवन) पर गेमिंग को प्राथमिकता देना और नकारात्मक परिणामों (जैसे खराब अकादमिक प्रदर्शन, पारिवारिक कलह) के बावजूद खेलते रहना शामिल है । यह केवल एक व्यक्तिगत कमजोरी नहीं है, बल्कि एक ऐसी बीमारी है जिसका बिजनेस मॉडल ही मनोवैज्ञानिक कमजोरियों का फायदा उठाने पर आधारित है।

जुए का छिपा हुआ चेहरा

अक्सर कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म को 'स्किल-बेस्ड गेम्स' (कौशल आधारित खेल) बताकर कानूनी दांव-पेंच से बचने की कोशिश करती हैं। वे तर्क देती हैं कि रम्मी या फैंटेसी स्पोर्ट्स जैसे खेल संयोग पर नहीं, बल्कि कौशल पर निर्भर करते हैं। हालांकि, जब इन खेलों में पैसा शामिल हो जाता है, तो कौशल और संयोग के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है। कई मामलों में, इन गेम्स के एल्गोरिदम इस तरह से डिजाइन किए जाते हैं कि शुरुआत में खिलाड़ी को छोटी-छोटी जीत का लालच दिया जाता है, लेकिन अंततः उसकी हार लगभग निश्चित होती है । "₹100 लगाकर करोड़पति बनें" जैसे भ्रामक विज्ञापन युवाओं को इस मायाजाल में खींचते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि जीतता केवल एक है और करोड़ों लोग अपनी मेहनत की कमाई गंवा बैठते हैं।

कर्ज, अवसाद और तबाही का दुष्चक्र

ऑनलाइन गेमिंग की दुनिया जितनी आकर्षक दिखती है, उसका अंजाम उतना ही विनाशकारी होता है। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जो वित्तीय बर्बादी से शुरू होकर मानसिक स्वास्थ्य के पतन और अंततः जीवन की समाप्ति तक ले जाता है।

वित्तीय बर्बादी की कहानियाँ

देश भर से सामने आ रही कहानियाँ दिल दहला देने वाली हैं। 2020 में, एक 17 वर्षीय किशोर ने PUBG खेलने में अपने परिवार के 17 लाख रुपये खर्च कर दिए, जिससे परिवार गंभीर वित्तीय और मानसिक संकट में पड़ गया । बिहार में, ऑनलाइन गेम्स खेलकर पैसे कमाने की लत ने 25 लाख बच्चों को मानसिक बीमारी का शिकार बना दिया और उनके परिवारों को आर्थिक रूप से तोड़ दिया

ये केवल कुछ उदाहरण हैं। एक राष्ट्रव्यापी अनुमान के अनुसार, लगभग 45 करोड़ भारतीय हर साल ऑनलाइन रियल-मनी गेमिंग प्लेटफॉर्म पर 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि गंवा देते हैं । यह दुष्चक्र छोटे-छोटे दांवों से शुरू होता है। युवा अपनी पॉकेट मनी से शुरुआत करते हैं, फिर दोस्तों से उधार लेते हैं, और जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, तो वे कर्ज के जाल में फंस जाते हैं, जिससे उनका और उनके परिवार का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर हमला

वित्तीय विनाश और मानसिक स्वास्थ्य का पतन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। गेमिंग की लत और मानसिक बीमारियों के बीच एक सीधा और खतरनाक संबंध है। अध्ययनों और विशेषज्ञों ने बार-बार पुष्टि की है कि गेमिंग की लत चिंता, अवसाद, सामाजिक अलगाव और आक्रामकता जैसे विकारों को जन्म देती है । शिमला के IGMC अस्पताल के मनोरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश दत्त शर्मा के अनुसार, मोबाइल का अत्यधिक उपयोग करने वाला हर तीसरा व्यक्ति मानसिक तनाव, अनिद्रा और चिड़चिड़ेपन का शिकार हो रहा है

यह एक घातक चक्रव्यूह बनाता है। युवा अक्सर वास्तविक जीवन के तनाव, अकेलेपन या असफलता से बचने के लिए गेमिंग की आभासी दुनिया में शरण लेते हैं । लेकिन यह पलायनवाद उन्हें और बड़े वित्तीय संकट में डाल देता है। बढ़ता कर्ज उनके तनाव और अवसाद को और बढ़ा देता है, जिससे वे इस दर्द को भूलने के लिए और भी अधिक गेमिंग का सहारा लेते हैं। इस प्रकार, गेमिंग जो एक समाधान के रूप में शुरू हुआ था, स्वयं सबसे बड़ी समस्या बन जाता है।

आत्महत्या: अंतिम पड़ाव

जब इस दुष्चक्र से बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, तो कई युवा अंतिम और सबसे दुखद कदम उठाते हैं - आत्महत्या। ऑनलाइन गेमिंग और जुए से जुड़े कर्ज और मानसिक पीड़ा के कारण आत्महत्या के मामले खतरनाक दर से बढ़ रहे हैं। अकेले कर्नाटक में 31 महीनों की छोटी अवधि में 32 लोगों ने ऑनलाइन गेमिंग के कारण अपनी जान दे दी । तेलंगाना में, कर्ज में डूबे कुछ पुलिस अधिकारियों ने भी आत्महत्या कर ली, जो इस समस्या की व्यापकता को दर्शाता है । ये मौतें केवल आंकड़े नहीं हैं; ये उन परिवारों की त्रासदियाँ हैं जो एक अनियंत्रित उद्योग के लालच की भेंट चढ़ गए। यह एक प्रणालीगत विफलता का परिणाम है, जिसे सरकार ने अंततः स्वीकार किया है और इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं

अपराध की दहलीज पर: जब गेमर बने अपराधी

जब गेमिंग की लत को पूरा करने के लिए पैसे खत्म हो जाते हैं और कर्ज का बोझ असहनीय हो जाता है, तो कई युवाओं के लिए नैतिकता और कानून के बीच की रेखा मिट जाती है। यहीं से एक गेमर के अपराधी बनने का सफर शुरू होता है, जो छोटी-मोटी चोरियों से लेकर हत्या जैसे जघन्य अपराधों तक पहुंच जाता है।

पहली सीढ़ी - चोरी

अपराध की दुनिया में पहला कदम अक्सर अपने ही घर या पड़ोस से शुरू होता है। जब गेमिंग की लत को 'फीड' करने के लिए पैसे की जरूरत होती है, तो युवा अपने ही परिवार को धोखा देने से नहीं हिचकिचाते।

  • केस स्टडी 1 (बालाघाट, मध्य प्रदेश): 19 वर्षीय सिद्धांत दमाहे को 'फॉर्च्यून पीपी 2' नामक ऑनलाइन गेम की ऐसी लत लगी कि उसने अपने ही चाचा के घर से 8 लाख रुपये के गहने और नकदी चुरा ली। उसने इन गहनों को गिरवी रखकर मिले पैसों को भी गेम में गंवा दिया  

  • केस स्टडी 2 (जोधपुर, राजस्थान): एक युवक ऑनलाइन गेमिंग के कारण लाखों के कर्ज में डूब गया। इस कर्ज को चुकाने के लिए उसने अपने पूर्व मालिक के घर में सेंध लगाई और 70 लाख रुपये का सामान चुरा लिया

  • केस स्टडी 3 (रुद्रपुर, उत्तराखंड): ऑनलाइन गेमिंग में 90 हजार रुपये हारने के बाद एक युवक पर कर्ज चढ़ गया। इस कर्ज को उतारने के लिए उसने अपने ही घर से 6 लाख रुपये के जेवरात चुराए और पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की। 

ये मामले दर्शाते हैं कि गेमिंग की लत किस तरह नैतिक विवेक को नष्ट कर देती है। यह एक ऐसी भूख बन जाती है जिसे शांत करने के लिए युवा किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपने सबसे करीबी लोगों को ही क्यों न लूटना पड़े।

हिंसा और हत्या का खूनी खेल

जब चोरी से भी लत पूरी नहीं होती या जब कोई उन्हें गेम खेलने से रोकने की कोशिश करता है, तो स्थिति भयावह रूप से हिंसक हो जाती है। आभासी दुनिया में सीखी गई आक्रामकता वास्तविक जीवन में उतर आती है, जिसके परिणाम घातक होते हैं।

  • केस स्टडी 4 (झांसी): एक बेटे ने, जो पिछले 6 महीने से खुद को एक कमरे में बंद करके दिन-रात PUBG खेलता रहता था, अपना मानसिक संतुलन खो दिया। जब उसके माता-पिता ने उसे रोकने की कोशिश की, तो उसने रोटी बनाने वाले तवे से पीट-पीटकर दोनों की हत्या कर दी  

  • केस स्टडी 5 (लखनऊ): जैसा कि लेख की शुरुआत में बताया गया, एक 16 वर्षीय लड़के ने PUBG खेलने से मना करने पर अपनी माँ को गोली मार दी। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि कैसे गेम में बाधा को युवा अपने अस्तित्व पर हमले के रूप में देखने लगते हैं

  • केस स्टडी 6 (मुंबई): एक युवक ने ऑनलाइन गेम के लिए अपनी 61 वर्षीय सौतेली माँ से मात्र 180 रुपये मांगे। जब उन्होंने इनकार कर दिया, तो उसने बेरहमी से उनकी हत्या कर दी

PUBG और Free Fire जैसे हिंसक एक्शन गेम्स न केवल खिलाड़ियों में आक्रामकता को बढ़ाते हैं, बल्कि वे वास्तविकता और कल्पना के बीच के अंतर को भी खत्म कर देते हैं । इन खेलों में दुश्मनों को मारना एक सामान्य क्रिया है, और जब यह मानसिकता वास्तविक जीवन में स्थानांतरित हो जाती है, तो परिणाम अकल्पनीय होते हैं। ये अपराध केवल व्यक्तिगत विफलता नहीं हैं, बल्कि एक सामाजिक और तकनीकी विफलता का परिणाम हैं। गेमिंग प्लेटफॉर्म, जो अपने व्यसनी और हिंसक डिजाइन के माध्यम से इस व्यवहार को बढ़ावा देते हैं, इन अपराधों में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार हैं। यह अपराध के प्रति जिम्मेदारी की पारंपरिक धारणा को चुनौती देता है, जहां दोष केवल अपराधी पर नहीं, बल्कि उस उत्पाद पर भी मढ़ा जाना चाहिए जो उसे अपराध के लिए प्रेरित करता है।  

सरकार का प्रहार: ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025

समाज में फैलते इस डिजिटल जहर की भयावहता को देखते हुए, भारत सरकार ने अंततः एक निर्णायक कदम उठाया है। "प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग एक्ट, 2025" एक ऐतिहासिक कानून है जिसका उद्देश्य युवाओं को ऑनलाइन जुए के चंगुल से बचाना और गेमिंग उद्योग को एक सुरक्षित दिशा देना है।

एक आवश्यक हस्तक्षेप

यह कानून सरकार की उस चिंता को दर्शाता है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बार-बार व्यक्त किया है। उन्होंने ऑनलाइन मनी गेमिंग को एक "सामाजिक बुराई" करार दिया और कहा कि यह कानून देश के युवाओं के उज्ज्वल भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक ठोस कदम है । इस कानून का दोहरा उद्देश्य स्पष्ट है: पहला, हानिकारक रियल-मनी गेमिंग (RMG) पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना, और दूसरा, सुरक्षित ई-स्पोर्ट्स और सामाजिक खेलों को बढ़ावा देना, जो पैसे के दांव के बिना खेले जाते हैं और मानसिक कौशल विकसित कर सकते हैं  

कानून के मुख्य प्रावधान

यह कानून ऑनलाइन मनी गेमिंग के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रहार करता है, जिसमें ऑपरेटरों से लेकर विज्ञापनदाताओं और वित्तीय मध्यस्थों तक शामिल हैं।

  • पूर्ण प्रतिबंध: यह कानून स्पष्ट रूप से सभी प्रकार के ऑनलाइन मनी गेम्स पर प्रतिबंध लगाता है, चाहे उन्हें 'स्किल-बेस्ड' कहा जाए या 'चांस-बेस्ड'। अगर किसी गेम में पैसे का दांव शामिल है, तो वह अवैध है

  • कठोर दंड: कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए बेहद सख्त सजा का प्रावधान किया गया है, ताकि कोई भी इसे हल्के में न ले। प्रमुख अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाया गया है, जिसका अर्थ है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है और जमानत मिलना मुश्किल होगा

उल्लंघनकर्ता अपराध पहली बार का दंड बार-बार अपराध पर दंड
गेमिंग ऑपरेटर ऑनलाइन मनी गेम चलाना

3 साल तक की जेल और/या 1 करोड़ रुपये जुर्माना   

3-5 साल की जेल और 2 करोड़ रुपये तक जुर्माना    

विज्ञापनदाता/प्रचारक मनी गेम का विज्ञापन करना

2 साल तक की जेल और/या 50 लाख रुपये जुर्माना   

 

2-3 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक जुर्माना    

बैंक/वित्तीय संस्थान मनी गेम के लिए लेनदेन की सुविधा देना

3 साल तक की जेल और/या 1 करोड़ रुपये जुर्माना   

 

लागू नहीं (स्रोत में निर्दिष्ट नहीं)
खिलाड़ी 'अपराधी' नहीं, 'पीड़ित' हैं

इस कानून का सबसे प्रगतिशील और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह ऑनलाइन मनी गेम खेलने वालों को अपराधी नहीं मानता, बल्कि उन्हें इस predatory उद्योग का 'पीड़ित' मानता है । इसलिए, कानून में खिलाड़ियों के लिए किसी सजा का प्रावधान नहीं है। यह दृष्टिकोण समस्या की जड़ पर प्रहार करता है। सरकार का मानना है कि असली अपराधी वे कंपनियां और ऑपरेटर हैं जो युवाओं की मनोवैज्ञानिक कमजोरियों का फायदा उठाकर मुनाफा कमाते हैं। यह कानून सजा के बजाय रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करता है, और इसका लक्ष्य खिलाड़ियों को दंडित करना नहीं, बल्कि उन्हें इस दलदल से बचाना है। 

आगे की राह: एक सामाजिक जिम्मेदारी

ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 एक शक्तिशाली हथियार है, लेकिन यह लड़ाई केवल कानून से नहीं जीती जा सकती। इस डिजिटल महामारी को जड़ से खत्म करने के लिए एक व्यापक सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

कानून से परे: माता-पिता और समाज की भूमिका

असली समाधान घरों और समुदायों में निहित है। कानून एक सीमा तय कर सकता है, लेकिन बच्चों के भविष्य को आकार देने की प्राथमिक जिम्मेदारी माता-पिता और समाज की है। विशेषज्ञ इस संबंध में कुछ ठोस कदम उठाने की सलाह देते हैं:

  • खुला संवाद: माता-पिता को अपने बच्चों के साथ दोस्त बनकर ऑनलाइन दुनिया के खतरों, जैसे कि गेमिंग की लत, साइबरबुलिंग और वित्तीय धोखाधड़ी के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए  

  • समय सीमा निर्धारित करें: बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम और गेमिंग के घंटे सख्ती से तय करें। हर 45-60 मिनट के बाद एक ब्रेक अनिवार्य करें 

  • वैकल्पिक गतिविधियों को बढ़ावा दें: बच्चों को मोबाइल की आभासी दुनिया से निकालकर वास्तविक दुनिया से जोड़ें। उन्हें आउटडोर गेम्स, किताबें पढ़ने, नए शौक विकसित करने और दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें  

  • चेतावनी के संकेतों को पहचानें: अपने बच्चे के व्यवहार पर नजर रखें। यदि आप उनमें चिड़चिड़ापन, सामाजिक अलगाव, नींद की कमी या पढ़ाई में गिरावट जैसे लक्षण देखते हैं, तो तुरंत सतर्क हो जाएं

  • पेशेवर मदद लें: यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा लत का शिकार हो चुका है, तो किसी मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से पेशेवर मदद लेने में बिल्कुल भी संकोच न करें। यह कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या है

     

डिजिटल साक्षरता और साइबर सुरक्षा

ऑनलाइन गेमिंग की दुनिया केवल लत तक ही सीमित नहीं है; यह साइबर अपराधियों के लिए एक खुला मैदान भी है। गेमर्स अक्सर वित्तीय धोखाधड़ी, पहचान की चोरी (PII लीक), मैलवेयर हमलों और साइबरबुलिंग का शिकार होते हैं । धोखेबाज अक्सर मुफ्त इन-गेम आइटम या चीट्स का लालच देकर खिलाड़ियों के खातों और व्यक्तिगत जानकारी तक पहुंच बना लेते हैं। युवाओं को डिजिटल साक्षरता प्रदान करना आवश्यक है ताकि वे इन खतरों को पहचान सकें। उन्हें मजबूत पासवर्ड का उपयोग करने, संदिग्ध लिंक पर क्लिक न करने और अपनी व्यक्तिगत जानकारी किसी के साथ साझा न करने के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। किसी भी साइबर अपराध की स्थिति में, नागरिक टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर '1930' पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं

निष्कर्ष: एक सामूहिक लड़ाई

ऑनलाइन गेमिंग और जुए से उपजा अपराध एक जटिल और बहुस्तरीय संकट है, जिसका समाधान किसी एक संस्था के पास नहीं है। सरकार का नया कानून इस दिशा में एक साहसिक और आवश्यक कदम है, लेकिन इसकी सफलता प्रभावी कार्यान्वयन और सामाजिक जागरूकता पर निर्भर करेगी। यह लड़ाई केवल सरकार या पुलिस की नहीं है। यह हर माता-पिता, हर शिक्षक, हर नीति निर्माता और पूरे समाज की सामूहिक लड़ाई है। हमें अपने युवाओं को एक ऐसा माहौल देना होगा जहां वे डिजिटल दुनिया का सुरक्षित रूप से आनंद उठा सकें, न कि उसके अंधेरे कोनों में खो जाएं। हमारे बच्चों का भविष्य दांव पर है, और इसे बचाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा।

Edited By: Sujit Sinha
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सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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