भारत की F-35 नीति: ट्रम्प के टैरिफ़ दबाव के बीच 'मेक इन इंडिया' की शक्ति
अमेरिका द्वारा F-35 की बिक्री के लिए आयात शुल्क को दबाव उपकरण बनाने की रणनीति पर भारत ने दिया कड़ा संदेश, ‘मेक इन इंडिया’ और रणनीतिक स्वायत्तता से नहीं होगा कोई समझौता।
नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा F-35 स्टील्थ लड़ाकू विमानों की बिक्री को लेकर टैरिफ़ (आयात शुल्क) को एक दबाव उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की रिपोर्ट्स ने अंतरराष्ट्रीय रक्षा समुदाय में गंभीर चर्चा छेड़ दी है। इन अप्रत्याशित रणनीतिक पैंतरेबाज़ी के बावजूद, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसकी रक्षा खरीद नीतियां उसकी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं और आत्मनिर्भरता की प्रतिबद्धता पर आधारित होंगी, न कि किसी बाहरी दबाव पर।
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ट्रम्प की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का नया आयाम
विश्लेषकों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन का यह कदम उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का एक नया विस्तार है, जिसका उद्देश्य अमेरिका के सबसे उन्नत सैन्य हार्डवेयर - F-35 लाइटनिंग II - की वैश्विक बिक्री को बढ़ावा देना है। F-35, जिसे दुनिया के सबसे महंगे और तकनीकी रूप से उन्नत लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है, को बेचने के लिए व्यापारिक टैरिफ को एक 'अल्लोचना' के रूप में इस्तेमाल करने की बात कही जा रही है। इसका मतलब यह हो सकता है कि जो देश F-35 नहीं खरीदते, उन्हें अमेरिका से अन्य आयात पर अधिक शुल्क देना पड़ सकता है।
भारत का अटल 'मेक इन इंडिया' मंत्र
भारत ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अपनी दीर्घकालिक रक्षा खरीद रणनीति पर ज़ोर दिया है। रक्षा मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने पुष्टि की है कि भारत अपनी सैन्य आधुनिकीकरण योजना में किसी भी बाहरी वाणिज्यिक या राजनीतिक दबाव के आगे नहीं झुकेगा। भारत का ध्यान मुख्य रूप से 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, जिसके तहत घरेलू रक्षा उत्पादन और अनुसंधान को प्राथमिकता दी जा रही है।
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उदाहरण के तौर पर:
भारत ने हाल के वर्षों में स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान, धनुष तोपें, और विभिन्न मिसाइल प्रणालियों के विकास और उत्पादन में महत्वपूर्ण प्रगति की है। यह न केवल विदेशी निर्भरता कम करता है, बल्कि देश के रणनीतिक लचीलेपन को भी बढ़ाता है।
तथ्य:
भारत वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है, लेकिन सरकार का लक्ष्य 2025 तक रक्षा विनिर्माण में $25 बिलियन का कारोबार हासिल करना है, जिसमें निर्यात में $5 बिलियन शामिल है। यह स्पष्ट रूप से आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
वैश्विक रक्षा व्यापार पर संभावित प्रभाव
यदि अमेरिका टैरिफ को रक्षा बिक्री के लिए एक उपकरण के रूप में स्थापित करता है, तो इसके वैश्विक रक्षा बाज़ार पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं:
- आर्थिक दबाव: यह छोटे और मध्यम आकार के देशों के लिए F-35 जैसे महंगे अमेरिकी सिस्टम खरीदने के लिए अतिरिक्त वित्तीय दबाव बना सकता है।
- विविधता में कमी: इससे देशों को अपनी रक्षा खरीद में विविधता लाने में बाधा आ सकती है, जिससे वे किसी एक आपूर्तिकर्ता पर अधिक निर्भर हो सकते हैं।
- घरेलू उद्योग को बढ़ावा: दूसरी ओर, यह अन्य देशों को अपनी घरेलू रक्षा औद्योगिक क्षमताओं को और तेज़ी से विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकता है, जैसा कि भारत कर रहा है।
आगे की राह: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
भारत की रक्षा खरीद नीति हमेशा से विविध स्रोतों से हथियार प्राप्त करने की रही है, ताकि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके और सर्वोत्तम तकनीक और लागत-प्रभावशीलता प्राप्त की जा सके। यह नीति वर्तमान अमेरिकी दबाव के सामने भारत के रणनीतिक लचीलेपन को और मज़बूत करती है।
आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ट्रम्प प्रशासन की यह नई और विवादास्पद रणनीति कैसे विकसित होती है और भारत अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और रक्षा प्राथमिकताओं को बनाए रखते हुए इस बदलती भू-राजनीतिक परिस्थिति का कैसे सामना करता है।
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