Vyapam scam: शिक्षा के पवित्र मंदिर में अपराध का साया, रहस्यमयी मौतों और साजिशों की कहानी
रहस्यमय मौतें: घोटाले से जुड़े 40 से अधिक गवाह, आरोपी और संदिग्धों की रहस्यमय मौतें हुईं
समृद्ध डेस्क: भारत के शैक्षिक इतिहास में एक ऐसा काला अध्याय है, जो शिक्षा की पवित्रता को कलंकित कर गया – व्यापम घोटाला। यह घोटाला आपराधिक तंत्र और राजनीतिक महकमों के गहरे गठजोड़ का नतीजा था, जिसने मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया। लेकिन इस घोटाले की कहानी केवल यह तक सीमित नहीं है कि कैसे परीक्षा में धांधली हुई, बल्कि इसके पीछे छुपे साये, संदिग्ध मौतें और सत्ता के ऊंचे पायदान पर बैठे लोगों की मिलीभगत की गूँज आज भी रहस्यमय और सस्पेंस से भरी है।
शुरुआती सुराग – कब शुरू हुआ खेल?

मंझधार में फंसी नैतिकता
कहते हैं कि शिक्षा समाज का सबसे पवित्र मंदिर होती है। पर यहाँ, इस मंदिर के भीतर पैर था अंडरवर्ल्ड का। नकली अभ्यर्थी, अधिकारियों के साथ मिलीभगत, फर्जी नकल, और रिकॉर्ड्स में फेरबदल ने असली काबिलों को पीछे धकेल दिया। असहनीय था यह खेल, जो डॉक्टरों, विधायकों, मध्यस्थों तक को घिरा हुआ था।
मौतें जो सवाल छोड़ गईं
सबसे डरावनी बात थी व्यापम घोटाले से जुड़े संदिग्ध मौतों की संख्या। 30 से अधिक अनहोनी मौतें, जिसमें हत्या, संदिग्ध सुसाइड, और रहस्यमय हादसे शामिल थे। ये मौतें कई महत्वपूर्ण गवाहों, आरोपियों और जो लोग सच को उजागर करने की कोशिश कर रहे थे, उनके साथ हुईं। नम्रता डामोर का शव रेलवे लाइन के किनारे मिला, तो पत्रकार अक्षय सिंह, जो इस घोटाले की रिपोर्टिंग कर रहे थे, उनकी भी संदिग्ध मौत हो गई।
हर मौत के पीछे कड़ी साजिश की गंध थी, और हर सवाल के जवाब खेल के अगले स्तर की ओर ले जाते थे। क्या सच में ये मौतें सामान्य थीं, जैसा सरकार दावा करती थी? या सिस्टम को बचाने के लिए किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा थीं?
STF और SIT रिकॉर्ड में उल्लिखित "अप्राकृतिक मौतों" की सूची निम्नलिखित है, साथ ही विपक्षी दलों और मीडिया द्वारा "संदिग्ध" बताई गई अन्य मौतें भी हैं।
| विकास पांडे | अनंत राम टैगोर |
| रवींद्र प्रताप सिंह | अरविंद शाक्य |
| डॉ. डीके साकले | आशुतोष तिवारी |
| नरेंद्र राजपूत | तरुण मच्छड़ |
| ललित गोलारिया | आनंद सिंह यादव |
| ज्ञान सिंह जाटव | देवेंद्र नगर |
| दीपक वर्मा | बंटी सिकरवार |
| नम्रता दामोर | अमित सागर |
| प्रमोद शर्मा | संजय सिंह यादव |
| कुलदीप मरावी | शैलेश यादव |
| प्रेमलता पांडे | विजय सिंह पटेल |
| विकास सिंह ठाकुर | नरेंद्र सिंह तोमर |
| श्यामवीर यादव | राजेंद्र आर्य |
| अंशुल सचान | अक्षय सिंह |
| अनुज उइके | डॉ. अरुण शर्मा |
| दीपक जैन | अनामिका कुशवाहा |
| दिनेश जाटव | रमाकांत पांडे |
| आदित्य चौधरी | रामेंद्र सिंह भदौरिया |
पिरामिड जैसा जाल – कैसे चलता था यह गिरोह?
व्यापम घोटाला एक पिरामिड की तरह काम करता था। सबसे नीचे थे सामान्य स्टूडेंट्स और उनके माता-पिता, जो भारी रकम देकर इस भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा बनते थे। बीच में थे दलाल और फर्जी डॉक्टर्स, जो नकली उम्मीदवारों को परीक्षा दिलाते थे। ऊपर थे वो रसूखदार लोग और राजनेता, जो इस जाल को संरक्षित करते और करोड़ों की कमाई करते थे।
कई तरीकों से अयोग्य उम्मीदवारों को परीक्षा में सफलता दिलाई जाती थी -
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असली उम्मीदवार की जगह नकली उम्मीदवार की तस्वीर लगाकर परीक्षा दिलाना,
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नकल कराने के लिए रणनीतिक बैठना,
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गलत उत्तरों की जगह सही उत्तर भर देना,
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परीक्षा के पहले ही प्रश्नपत्र और उत्तर कुंजी लीक कर देना।
राजनीति और भ्रष्टाचार का दाग
व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश के कई बड़े नेताओं, अधिकारियों के नाम जुड़े। कई के खिलाफ मामला दर्ज हुआ, पर अद्भुत तरीके से या तो आरोप प्रमाणित नहीं हो सके, या आरोपी संदिग्ध मौतों या जमानत के बाद मुकदमों से बाहर निकल गए। यह घोटाला शिक्षा व्यवस्था की गहरी सड़न को दर्शाता है, जहां भ्रष्टाचार ने नैतिकता को कराहते हुए अपनी जगह बनाई।
अंत में…
व्यापम घोटाले ने यह साबित कर दिया कि शिक्षा और अपराध के बीच का रिश्ता कितना गहरा और खतरनाक हो सकता है। एक तरफ जहां हजारों युवा सपनों के लिए मेहनत करते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग भ्रष्टाचार की छाया में उनकी मेहनत और भविष्य को चोर लेते हैं। शिक्षा के इस काले अध्याय की गहनता और सस्पेंस के पर्दे आज भी हटे नहीं हैं। व्यापार, सत्ता, और अपराध की इस गठजोड़ की सच्चाई सामने आने का इंतजार अभी बाकी है। क्या सच कब खुलकर उजाले में आएगा या फिर यह रहस्य सदैव अंधकार में ही रहेगा, यह समय ही बताएगा।
व्यापम घोटाले जैसी घटनाएं शिक्षा के मंदिर को स्वच्छ, पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने का कितना बड़ा आह्वान हैं, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
