केंदू पत्ता के लिए जंगल में लगायी जाने वाली आग से हर साल निकलता है 56 लाख कार के बराबर धुआं
नयी दिल्ली : आइफॉरेस्ट द्वारा उपग्रह डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि बीड़ी बनाने के लिए तेंदू पत्ता संग्रहण के लिए भारत में हर साल वन भूमि के बड़े हिस्से को जलाया जा रहा है। बढते जलवायु आपदा को देखते हुए इस प्रथा को समाप्त करने के लिए कड़े नीतिगत कदमों की तत्काल आवश्यकता है। इसके साथ ही वन आश्रित समुदायों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए स्थायी वैकल्पिक एनटीएफपी विकसित करने की जरूरत है।
जंगल आग, जलवायु परिवर्तन और तेंदु पत्ता – एक साक्ष्य आधारित विश्लेषण (‘Forest Fires, Climate Change and Tendu Patta – An Evidence-based
Analysis’) तेंदू पत्ता के संग्रहण से जंगलों में लगने वाले आग के पुख्ता संबंध को दर्शाता है।
2011 और 2021 के बीच छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और ओडिशा तीन राज्यों में तेंदू पत्ता संग्रहण के कारण 13, 905 वर्ग किमी क्षेत्र वन भूमि जल गए, जो सामूहिक रूप से देश में एकत्रित कुल तेंदु पत्तों का 35 प्रतिशत है।
वर्ष 2021 में इन तीन राज्यों में तेंदू से संबंधित आग वाले क्षेत्रों में 14.2 मिलियन टन कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन का अनुमान है। अनुमान है कि यह साल भर में 5.6 मिलियन यानी 56 लाख कार के द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन के बराबर है।
स्थानीय स्तर पर मौजूदा वैधानिक उपायों के सीमित प्रभाव को देखते हुए राज्य सरकारों को स्थायी वैकल्पिक एनटीएफपी के विकास को प्राथमिकता देने की जरूरत है। यह सभी पक्षों के लिए फायदे का समाधान होगा, क्योंकि यह जंगल की आग की घटनाओं को कम करेगा। तेंदू आश्रित समुदाय की आजीविका का समर्थन करेगा और कम बीड़ी के सेवन से भारत में फेफड़ों से संबंधित स्वास्थ्य परिदृश्य में सुधार आएगा।
आइफॉरेस्ट के सीइओ व डायरेक्टर चंद्र भूषण के अनुसार, यह विश्लेषण भारत में जंगल की आग की बढती घटनाओं की पृष्ठभूमि और सेहत, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन पर प्रतिकूल प्रभाव पर आधारित है। 90 प्रतिशत से अधिक जंगल में आग की घटनाओं को मानव जनित के रूप में जाना जाता है। ग्लोबल वार्मिग की वजह से आग की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। उच्च सतह और हवा के तापमान और कम नमी के परस्पर क्रिया के माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग आग के अनुकूल परिस्थितियां बना रही है। इससे फॉरेस्ट फायर की घटनाओं में वृद्धि आ रही है।
क्लाइमेट एक्शन की तात्कालिकता को देखते हुए, फॉरेस्ट फायर के लिए जिमेवार कारकों के बारे में समझ बनाना महत्वपूर्ण है, ताकि इसके रोकथाम को मजबूत किया जा सके। तेंदू पत्ता भारत के शुष्क पर्णपाती जंगलों में पाया जानेवाला एक पेड़ है, जिसकी पत्तियों का व्यापक रूप से बीड़ी बनाने में उपयोग किया जाता है। अनुमान के मुताबिक 400 बिलियन बीड़ी उत्पादन के लिए हर साल जंगलों से 300,000 मीट्रिक टन से अधिक तेंदू पत्ते का संग्रह किया जाता है।
जंगल में मार्च और मई के महीने के बीच आग लगाने की परंपरा है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बीड़ी के लिए हरे, अच्छी गुणवत्ता के पत्ते का विकास हो सके। इसके खिलाफ राज्य व केंद्र स्तर पर कानून होने के बावजूद ऐसा हो रहा है।
तेंदू पत्ता से संबंधित फॉरेस्ट फायर जमीन के बड़े हिस्से को प्रभावित करती है। 2011-21 के दौरान तीन राज्यों में 13,904.8 वर्ग किमी जंगल प्रभावित हुआ है। यह त्रिपुरा और गोवा के संयुक्त क्षेत्र के बराबर है। छत्तीसगढ में सबसे अधिक 6120 वर्ग जमीन इससे प्रभावित हुई।
तेंदू के जंगल में लगी आग उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान करती है। 2021 के दौरान लगभग 14.2 मिलियन मिट्रिक टन कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ।
आइफॉरेस्ट की प्रोग्राम लीड एनर्जी एंड क्लाइमेट चेंज मांडवी सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय कानूनों के बावजूद आग लगने की घटना जरूरी है।