वेबिनार : क्लाइमेट जस्टिस बने प्रायोरिटी टॉप, वरना COP जैसे मंच हैं फ्लॉप
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मिस्र के शर्म-अल-शेख में आगामी नवंबर में आयोजित होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी27) से पहले विशेषज्ञों ने क्लाइमेट जस्टिस पर खास जोर देते हुए कहा है कि अगर इस पहलू पर ठोस कार्रवाई नहीं होती है तो सीओपी जैसे तमाम मंच बेमानी माने जाएंगे।
सीओपी27 से पहले जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली क्षति और नुकसान की पूर्ति के लिये वित्तपोषण की सामूहिक मांग को तेज करने के उद्देश्य से जलवायु थिंक टैंक ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ और आईसीसीसीएडी द्वारा बुधवार को ‘हानि और क्षति कोष : अंतरराष्ट्रीय विकास से लेकर स्थानीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव तक’ विषय पर वेबिनार आयोजित किया। इसी बीच, क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक रिपोर्ट से जाहिर हुआ है कि जी20 समूह में शामिल ज्यादातर देशों पर इस साल जलवायु परिवर्तन के बेहद तल्ख प्रभाव पड़े हैं। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाले देश भीषण सूखे, प्रलयंकारी बाढ़ और भयंकर तपिश के दुष्प्रभावों से जूझ रहे हैं। अप्रत्याशित तपिश और बाढ़ से फसलों के बर्बाद होने के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त हो गये हैं। सैलाब से जहां हजारों लोग मारे गये हैं वहीं, मूलभूत ढांचे को भी गम्भीर नुकसान पहुंचा है।
वेबिनार में सीएएन इंटरनेशनल के प्रतिनिधि हरजीत सिंह ने ‘क्लाइमेट जस्टिस’ के मुद्दे को केन्द्र में रखते हुए कहा ‘‘जब हम नुकसान और क्षति की बात करते हैं तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यह अन्याय और मानवाधिकार के उल्लंघन की कहानी है। यह उन लोगों के प्रति नाइंसाफी है जो इस जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार नहीं हैं। हमें क्लाइमेट जस्टिस की मांग को पुरजोर तरीके से उठाना चाहिए अगर हम इस मामले पर आगे नहीं बढ़ पाए तो जलवायु परिवर्तन से निपटने की तमाम बातें और बैठकों को असफल ही माना जाएगा।’’
“#LossAndDamage is about justice. We cannot talk about solar panels or wind farms with people who have lost their homes. Damage #Finance is not just about human rights but a practical necessity.”@harjeet11 of @CANIntl #COP27 @JohnKerry @AlokSharma_RDG @byadavbjp @amitabhk87 pic.twitter.com/3GJnRvG4yO
— Climate Trends (@ClimateTrendsIN) September 28, 2022
उन्होंने कहा ‘‘जब हम आज इस समस्या से निपटने प्रभावी ढंग से निपटने में कामयाब नहीं हो रहे हैं तो 2050 का नेटजीरो लक्ष्य बिल्कुल बेमानी होगा। हमें अपनी प्लानिंग सिस्टम की नए सिरे से समीक्षा करनी होगी। हमारे पास निश्चित रूप से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योजनाएं हो सकती हैं। इस मसले को देश की सीमाओं के अंदर नहीं सम्भाला जा सकता। दुनिया के सभी देशों के बीच एक ठोस समन्वय बनाना होगा और इसे एक वैश्विक समस्या के तौर पर स्थानीय स्तर पर निपटना होगा। आज इस सबसे महत्वपूर्ण विषय को अनदेखा किया जा रहा है कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन की तीव्रता और सके दुष्प्रभावों की गंभीरता क्या होगी।’’
आईसीसीसीएडी के प्रोफेसर सलीम उल हक ने सीओपी27 में जलवायु परिवर्तन को एक ‘एजेंडा आइटम’ की तरह शामिल करने पर जोर देते हुए कहा ‘‘अगर दुनिया ने जलवायु परिवर्तन को एक एजेंडा आइटम के रूप में नहीं अपनाया तो हमें सीओपी को नाकाम घोषित करना चाहिए। हमें विकसित देशों से कहना चाहिए कि अगर आप इस एजेंडा आइटम को रोकना चाहेंगे तो हम खुद को सीओपी से अलग कर लेंगे।’’
प्रोफेसर हक ने कहा कि दुनिया इस वक्त जलवायु परिवर्तन के कारण हानि और क्षति के दौर में प्रवेश कर गयी है। भारत और बांग्लादेश के साथ-साथ यूरोप में भी हीट वेव अपना कहर ढा रही है। अमेरिका में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के कारण 25 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना पड़ा। निश्चित रूप से हम ऐसे प्रभाव वाले युग में आ गए हैं जिनका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है। वैसे तो यह हर जगह हो रहा है लेकिन सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब देशों के लोगों पर पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि यह एक चुनौती है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए वैश्विक एकजुटता कैसे बनाई जाए। सीमाओं पर परस्पर समन्वय और वैश्विक एकजुटता समय की मांग है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन की एक साझा समस्या हम सबके सामने खड़ी है।
एक्शन एड बांग्लादेश की वरिष्ठ अधिकारी फराह कबीर ने सीओपी में होने वाली बातों और उन पर अमल को लेकर विकसित देशों की निष्ठा पर संदेह जाहिर की और कहा कि सीओपी की प्रक्रिया पांच-सात प्रदूषण कारी देशों के हाथ में है। यह लोकतांत्रिक नहीं है।
#LossAndDamage | “Impacts of #climate change-induced disasters are affecting people on the frontlines every day,”@kabirfarah shares her expectations from #COP27.@Cop27P | @amitabhk87 | @byadavbjp | @ICCCAD pic.twitter.com/PU447JwFbU
— Climate Trends (@ClimateTrendsIN) September 28, 2022
उन्होंने कहा कि सीओपी27 में उनकी अपेक्षा है कि सभी विकासशील देश एक साथ आएं। यह एक ऐसा समय है कि या तो हम जाग जाएंगे या फिर टूट जाएंगे। लॉस एंड डैमेज के मामले में लैंगिक पहलू को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके लिए एक समर्पित नीति बनाई जानी चाहिए।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के डॉक्टर अनुराग डांडा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के नुकसान बिल्कुल साफ जाहिर हैं। यह विनाशकारी साबित हो रहे हैं। दक्षिण एशियाई समाज अब भी काफी हद तक परंपरागत समाज है। ज्यादातर लोग कृषि कारोबार की पृष्ठभूमि से हैं। जलवायु परिवर्तन सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं लाता बल्कि इसकी हानियों का दायरा हमारी कल्पनाओं से कहीं ज्यादा बड़ा है। इन हानियों को मापना बहुत मुश्किल है।
उन्होंने सुंदरबन पर पड़ रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की व्यापकता का जिक्र करते हुए छोटी-छोटी सी मौसमी घटनाओं का भी बहुत बड़ा और व्यापक असर पड़ रहा है। सुंदरबन के लोग इस जलवायु परिवर्तन में योगदानकर्ता नहीं है लेकिन फिर भी यहां रहने वाले करीब पांच लाख लोग इसके दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य पर्यावरण अधिकारी कालियामूर्ति बालामुरूगन ने कहा कि बंगाल में वर्ष 1970 के मुकाबले वर्तमान में चक्रवातों का खतरा सात गुना बढ़ गया है। मगर हम अब भी इसे जलवायु परिवर्तन से नहीं जोड़ पा रहे हैं। अलग-अलग पक्षों का अलग-अलग नगरिया है। जो प्रयास किए जा रहे हैं वे पर्याप्त नहीं है।
आईआईएम कोलकाता की प्रोफेसर रूना सरकार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होते हैं। इसलिये सिर्फ एक नीति हर क्षेत्र के लिये काम नहीं करती। क्षेत्रवार नीति नहीं होने की वजह से समाधान में अनेक जटिलताएं पैदा होती हैं।
उन्होंने कहा कि अगर आज हम बांग्लादेश में चक्रवातों से निपटने की तैयारियों को देखते हैं तो जाहिर होता है कि सही दृष्टिकोण प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने और अनुकूलन के लिये उपयोगी है और वह काम भी करता है, लेकिन हम लगातार यह देख रहे हैं कि सिर्फ एक नीति काम नहीं करती है जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों के लिहाज से अलग-अलग हैं।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि जी20 के अधिकांश देश 2022 में गंभीर जलवायु प्रभावों से प्रभावित हुए हैं। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को तूफान, सूखा, बाढ़ और गर्मी की लहरों के रूप में कई मिलियन डॉलर की मार झेलनी पड़ रही है।
असाधारण गर्मी और सूखे ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और फसलें बर्बाद हो गई हैं। बाढ़ ने हजारों लोगों की जान ले ली है और बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया है। वर्ष 2022 जलवायु प्रभावों के लिहाज से अब तक के सबसे क्रूर वर्षों में से एक रहा है।
चीन, भारत और अमेरिका जैसे प्रमुख वैश्विक खाद्य उत्पादक देश विशेष रूप से लंबे समय तक सूखे से प्रभावित हुए हैं, जिससे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक खाद्य संकट बढ़ गया है।
रिपोर्ट में 2022 में घटित 14 चरम मौसमी घटनाओं का विवरण दिया गया है जो जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा वर्षों से दी जा रही जोखिम सम्बन्धी चेतावनी को साफ तौर से दर्शाती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में हीटवेव के प्रभाव के कारण चीन में 70 दिनों तक चलने वाली लू से तापमान 40 डिग्री सेल्सियस (104 फ़ारेनहाइट) से ऊपर पहुंच गया, जिससे जलविद्युत संयंत्र बंद हो गए और औद्योगिक शहर चोंगकिंग में व्यवसायों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इस साल यूरोप ने कम से कम 500 वर्षों में अपने सबसे खराब सूखे का अनुभव किया। इस दौरान महाद्वीप का 17% हिस्सा अलर्ट की स्थिति में था। सूखे के कारण जंगल में आग लग गई। फसल घट गई और ऊर्जा उत्पादन बाधित हो गया। वैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिका में 1,200 वर्षों का सबसे भीषण सूखा पड़ा है।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में बाढ़ के प्रभावों के लिहाज से देखें तो पाकिस्तान में भयंकर बाढ़ के कारण 1,500 से अधिक लोग मारे गए हैं और 33 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं। बाढ़ के कारण इस देश का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूब गया है।
ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ के कारण 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर के नुकसान का एक नया रिकॉर्ड बन गया जो देश में अब तक की सबसे महंगी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है। दक्षिण अफ्रीका में पूर्वी दक्षिण अफ्रीका के तट पर अप्रैल में दो दिनों की असाधारण वर्षा के कारण भयंकर बाढ़ आई, जिससे 40,000 से अधिक विस्थापित हुए। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में 12,000 से अधिक घर नष्ट हो गए और सड़कों, स्वास्थ्य केंद्रों और स्कूल गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गये।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि जी20 देशों को अपने राष्ट्रीय उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य को बढ़ाकर इस दिशा में नेतृत्व करना चाहिए और दुनिया के तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड सूखे, आग और बाढ़ के बावजूद जलवायु परिवर्तन नियंत्रण की कार्रवाई सपाट थी और अगर जी20 देशों का एक तिहाई आज पानी के नीचे था, और कल भी हो सकता है, तो शायद उनके लिए उत्सर्जन में भारी कटौती पर सहमत होना ज्यादा आसान होगा।
Edited By: Samridh Jharkhand

