Climate कहानी: 2032 तक इलेक्ट्रिक गाड़ियों की चार्जिंग के लिए भारत की कुल सौर-वायु क्षमता का सिर्फ 3% होगा काफी
भारी बिजली उत्पादन की नहीं, बल्कि बेहतर प्लानिंग और स्मार्ट पॉलिसी की ज़रूरत
भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्रांति को साफ ऊर्जा से चार्ज करने के लिए भारी बिजली उत्पादन की नहीं, बल्कि बेहतर प्लानिंग और स्मार्ट पॉलिसी की ज़रूरत है. ऊर्जा थिंक टैंक 'एम्बर' की नई रिपोर्ट बताती है कि अगर सही नीतिगत बदलाव किए जाएं और चार्जिंग ढांचे को समय के अनुसार ढाला जाए, तो साल 2032 तक भारत की राष्ट्रीय बिजली योजना (NEP-14) में तय की गई 468 गीगावॉट की कुल सौर और पवन क्षमता का महज तीन प्रतिशत हिस्सा ही देश भर के ईवी को चार्ज करने के लिए पर्याप्त होगा.

एम्बर की एनर्जी एनालिस्ट रुचिता शाह बताती हैं, “अभी ज़्यादातर ईवी की चार्जिंग शाम या रात में घरों पर होती है, जब बिजली उत्पादन में कोयले का हिस्सा ज्यादा होता है. अगर चार्जिंग को दिन में किया जाए—जैसे दफ्तरों या कमर्शियल हब्स में—तो सोलर एनर्जी का बेहतर उपयोग संभव होगा.” शाह मानती हैं कि इसके लिए कार्यस्थलों और सार्वजनिक जगहों पर चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाने और ToD टैरिफ जैसे स्मार्ट उपाय अपनाने होंगे.
कुछ राज्य पहले ही आगे: असम, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्य पहले ही सोलर-आवर आधारित ToD टैरिफ लागू कर चुके हैं. रिपोर्ट में दस राज्यों को चुना गया है, जिनमें ईवी बिक्री की दृष्टि से वित्त वर्ष 2025 में सबसे अधिक संभावनाएं हैं: असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश.
डाटा जरूरी, लेकिन गोपनीयता भी: रिपोर्ट में चार्जिंग से जुड़ा डेटा बेहतर तरीके से एकत्र और विश्लेषित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है. “उपभोक्ता की प्राइवेसी बनाए रखते हुए अगर चार्जिंग डेटा इकट्ठा और समेकित किया जाए, तो वितरण कंपनियां ईवी की बिजली मांग का पहले से अनुमान लगा सकेंगी,” शाह ने कहा.
चार्जिंग नहीं, रणनीति चुनौती है: रिपोर्ट यह भी संकेत देती है कि ईवी चार्जिंग से ग्रिड की लचीलापन बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा के बेहतर समावेश का मौका है. हालांकि, ग्रीन टैरिफ जैसे विकल्प घरेलू चार्जिंग पर फिलहाल लागू नहीं हैं और लागत-संवेदनशील उपभोक्ताओं को आकर्षित नहीं करते.
शाह के अनुसार, “जिन राज्यों में ईवी की खरीद ज़्यादा है, वे इस सेक्टर को रिन्यूएबल एनर्जी डिमांड का प्रमुख ड्राइवर बना सकते हैं. इससे न सिर्फ क्लीन एनर्जी को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रिड लचीलापन भी बेहतर होगा.”
चलते चलते:
भारत में ईवी ट्रांजिशन की सफलता सिर्फ बैटरी और चार्जर तक सीमित नहीं है. इसकी कुंजी है—नीतिगत स्पष्टता, डेटा पर आधारित योजना, और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को साफ ऊर्जा के साथ जोड़ने की समझदारी. अगर यह दिशा पकड़ ली गई, तो कम में ज्यादा हो जाएगा—और बिजली की इस नई मांग को भी जलवायु-समर्थक दिशा में मोड़ा जा सकेगा.
सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।
'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
