वायु प्रदूषण खामोश हत्यारा, WHO के नये मानकों पर खरा उतरने भारत को करने होंगे सुनियोजित प्रयास

विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया के ज्यादातर देश वायु गुणवत्ता सम्बन्धी पुराने मानकों का ही पालन करने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वायु गुणवत्ता के सम्बन्ध में जारी नये मानकों का पालन बहुत कड़ी चुनौती है। भारत जैसे देश को अगर इन मानकों पर खरा उतरना है तो उसे बहुक्षेत्रीय रवैया अपनाते हुए अधिक सुगठित, सुव्यवस्थित और समयबद्ध कदम उठाने होंगे। साथ ही मौजूदा नीतियों में जरूरी बदलाव करते हुए उनके प्रभावी क्रियान्वयन पर भी ध्यान देना होगा।

“#AirQuality guidelines should not be seen as ivory tower recommendations, we need a broader understanding by medical institutes, not just tech institutes and a strategy to improve familiarity with guidelines among the medical community” Prof Kalpana Balakrishnan@ICMRDELHI pic.twitter.com/UzETNowMyj
— Climate Trends (@ClimateTrendsIN) October 12, 2021
डब्ल्यूएचओ के नए एक्यूजी के मद्देनजर भारत की क्या रणनीति होनी चाहिए इसे स्वास्थ्य क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में देखने के लिए क्लाइमेट ट्रेंड्स ने मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021 को एक वेबिनार आयोजित किया जिसमें विशेषज्ञों ने नए एक्यूजी को लेकर गहराई से अपने-अपने पक्ष रखे।
वायु प्रदूषण एक खामोश हत्यारा : डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ
विश्व स्वास्थ्य संगठन के पर्यावरण जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉक्टर मारिया नीरा ने डब्ल्यूएचओ की ग्लोबल एयर क्वालिटी गाइडलाइंस (एक्यूजी) 2021 का जिक्र करते हुए बताया कि वायु प्रदूषण के स्रोतों के साथ-साथ बीमारियों के वैश्विक बोझ में वायु प्रदूषकों के योगदान को लेकर भी स्थिति अब पहले से ज्यादा स्पष्ट है। यही वजह है कि वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश (एक्यूजी) में उल्लिखित वायु प्रदूषण के सुरक्षित स्तर 15 साल पहले निर्धारित किए गए इस तरह के मुकाबले और कम कर दिए गए हैं। वर्ष 2005 में पीएम2.5 का सुरक्षित स्तर प्रति 24 घंटे 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तय किया गया था, जिसे अब घटाकर 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित कर दिया गया है। इसी तरह पीएम10 का सुरक्षित स्तर प्रति 24 घंटे 50 से घटाकर 45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तय कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि अब यह जगजाहिर है कि वायु प्रदूषण एक खामोश हत्यारा है। दुनिया में हर साल बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण करीब 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए हर साल कसमें लिये जाने के बावजूद ऐसा हो रहा है। यह एक अस्वीकार्य सच्चाई है। वायु प्रदूषण के कारण हर साल दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र तथा वेस्टर्न पेसिफिक क्षेत्र में 20-20 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है। इसके अलावा अफ्रीका में 10 लाख लोग मारे जाते हैं।
“Since we have limited resources, we must look at a hybrid approach to measure #airpollution which includes satellite data and low-cost sensors along with CAAQMS” Dr @somagnik of @iitdelhi & @CERCA_IITD.
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उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में सर्वाधिक शहर भारत के ही हैं। जाहिर है कि भारत अभी तक पुराने मानकों पर ही खरा नहीं उतर सका है। ऐसे में नये मानक उसके लिए और भी चुनौतीपूर्ण होंगे। डब्ल्यूएचओ की नयी गाइडलाइंस को पूरा करने के लिए भारत को बिल्कुल नया नजरिया और रवैया अपनाना होगा। उसे बहुक्षेत्रीय तालमेल स्थापित करते हुए समन्वित प्रयास करने ही होंगे।
डॉक्टर नीरा ने कहा कि वायु प्रदूषण को अब मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरे के तौर पर मान्यता दी जा रही है। वायु प्रदूषण की वजह से गैर संचारी रोग, हृदय तथा सांस संबंधी बीमारियों, श्वसन प्रणाली में संक्रमण और समय से पहले बच्चे का जन्म के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। अगर पूरी दुनिया ने 2021 के एक्यूजी में निर्धारित स्तरों को वर्ष 2016 में ही हासिल कर लिया होता तो पीएम 2.5 के कारण हुई 33 लाख लोगों की असामयिक मौत को रोका जा सकता था। सिर्फ दक्षिण एशियाई क्षेत्र में ही 83% असामयिक मौतों को होने से रोका जा सकता था।
उन्होंने बताया कि एक्यूजी एक प्रमाण आधारित उपकरण है जिसके जरिए नीति निर्धारक वर्ग अपनी नीतियों और कानूनों को नया आकार दे सकता है ताकि वायु प्रदूषण के स्तरों को कम किया जा सके। इसके अलावा वायु प्रदूषण पर शोध करने वाले लोग भी महत्वपूर्ण डाटा गैप को भरने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
हवा की खराब गुणवत्ता कोविड के खतरे को बढा सकता है
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पर्यावरणीय स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉक्टर बीना साहनी ने कहा कि भारत में न सिर्फ एयर क्वालिटी गाइडलाइंस का पालन किया है बल्कि नयी पद्धतियां भी अपनायी हैं। मगर डब्ल्यूएचओ की नई गाइडलाइन का पालन करने के लिए भारत को अपने नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स पर फिर से गौर करना चाहिए और बिल्कुल भी प्रदूषण न छोड़ने वाले वाहनों के इस्तेमाल तथा सौर ऊर्जा के ज्यादा से ज्यादा प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा सुधारात्मक कदम लागू करने के लिए कंटीन्यूअस एंबिएंट एयर क्वालिटी मेजरमेंट सिस्टम के नेटवर्क को और सघन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हवा की खराब गुणवत्ता कोविड-19 जैसे खतरों को और बढ़ा सकती है। पहले से ही विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए कोविड-19 और भी ज्यादा घातक हो सकता है।
“India must implement @WHO #AirQuality levels, the NCAP must focus on zero-emission transport with better monitoring through continuous air quality monitoring systems” Dr Bina Sawhney, Addl DDG @MoHFW_INDIA@byadavbjp @DrGargava @MRTB_India @urbansciencesIN @UrbanEmissions pic.twitter.com/zGh0g5TDpC
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डब्ल्यूएचओ कोलेबॅरेटिंग सेंटर फॉर ऑक्यूपेशनल एण्ड एनवॉयरमेंटल हेल्थ की निदेशक प्रोफेसर कल्पना बालाकृष्णन ने वायु प्रदूषण की गम्भीरता को मापने के लिए शोध के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि डब्ल्यूएचओ ने जो नयी गाइडलाइन जारी की है वह दुनिया के सभी क्षेत्रों से लगातार मिल रहे सुबूतों पर आधारित है मगर इस पूल में भारत के लिए खासकर तैयार किये जाने वाले अध्ययनों की कमी है।
डॉक्टर सुधीर चिंतालालपति ने कहा कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए अनेक प्रयास कर रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) भी नेशनल एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स की समीक्षा में लगा हुआ है। मंत्रालय ने वाहनों के लिए बीएस4 के बजाय बीएस6 मानक भी लागू कर दिये हैं। साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों को भी बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। सरकार धीरे-धीरे करके महत्वपूर्ण कदम उठा रही है जिसका एयर क्वालिटी पर कुछ असर भी दिखने लगा है। डब्ल्यूएचओ की नयी गाइडलाइंस को देखते हुए अपने एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स का पुनरीक्षण भी किया जा रहा है।
पूर्व में निर्धारित मानक अब सुरक्षित नहीं
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इम्प्लीमेंटेशन रिसर्च फॉर नॉन कम्युनिकेबल डिसीसेज के निदेशक डॉक्टर अरुण शर्मा ने कहा कि वायु गुणवत्ता सम्बन्धी नये मानकों से यह जाहिर हो गया है कि पूर्व में निर्धारित किए गए मानक अब सुरक्षित नहीं रह गए हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि अब उनका पालन और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। भारत जैसे विशाल देश में जहां वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र पहले से अपर्याप्त है, वहां ये नये मानक और भी मुश्किल हो गये हैं। मगर इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। समय से पहले जन्म और कम वजन के बच्चे पैदा होने को भी वायु प्रदूषण से जोड़कर देखा जा रहा है इसलिए आप देख सकते हैं कि नॉन कम्युनिकेबल डिसीज का पूरा का पूरा स्पेक्ट्रम ही एयर क्वालिटी से प्रभावित है।
उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ के नये मानकों पर खरा उतरने के लिए भारत को सबसे पहले उन खामियों को तलाशना होगा जिनके कारण रुकावटें पैदा होती हैं। साथ ही शहरी के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी वायु गुणवत्ता निगरानी केन्द्रों का जाल बिछाना होगा, ताकि और प्रदूषण रूपी समस्या की और स्पष्ट तस्वीर सामने आ सके।
वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए वरीयता वाले कदमों की सूची नहीं
सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज में प्रोफेसर और आईआईटी दिल्ली के सीईआरसीए के समन्वयक डॉक्टर सागनिक डे ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान हवा की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ लेकिन लॉकडाउन के बाद के चरणों में उसे बरकरार नहीं रखा जा सका। हमने देखा कि खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं हुआ। लॉकडाउन के दौरान भी प्रदूषण के दो स्त्रोत यानी घरों के अंदर और बाहर बायोमास का जलाया जाना इसका मुख्य कारण रहा। डब्ल्यूएचओ के नये दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए हमें न सिर्फ नगरीय क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी वायु प्रदूषण के स्रोतों पर नजर रखनी होगी। भारत में हर जगह कंटीन्यूअस एंबिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं लगाए जा सकते, मगर मेरा मानना है कि वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों से छूट जाने वाले क्षेत्रों को भी कवर करने की जरूरत है।
🔴LIVE
“South Asia will reduce 83% premature deaths, equally over 1 million people, if new @WHO #airquality targets are implemented” @DrMariaNeira.
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उन्होंने कहा कि हमारे पास वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए वरीयता वाले कदमों की कोई सूची नहीं है। क्लीन एयर एक्शन प्लान को प्राथमिकता देने के लिए सबसे पहले हमें उन क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा जिनसे निकलने वाले प्रदूषण को कम करके हम स्वास्थ्य संबंधी अधिक बड़े लाभ ले सकते हैं। इसके अलावा हमें किफायती उपाय तलाशने होंगे। सरकार वायु प्रदूषण को मापने के वैकल्पिक रास्तों पर ध्यान दे रही है। हम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं हम सेटेलाइट डाटा का इस्तेमाल करके पीएम 2.5 का मापन कर रहे हैं और उसको स्थानीय स्तर पर जांच भी रहे हैं।
पर्यावरण वैज्ञानिक मनजीत सिंह सलूजा ने कहा कि वायु प्रदूषण बेशक पूरी मानवता के लिए खतरा बन चुका है। भारत इस खतरे से मुकाबले के लिए बहु क्षेत्रीय स्तरों पर प्रयास कर रहा है। मगर अभी बहुत लम्बा सफर तय किया जाना बाकी है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा नेशनल प्रोग्राम फॉर क्लाइमेट चेंज इन ह्यूमन हेल्थ शुरू किया गया है जिसे नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के जरिए लागू किया जा रहा है। डब्ल्यूएचओ इंडिया इस कार्यक्रम को बेहतर तरीके से सहयोग दे रहा है।