देशभर के स्कूल, कॉलेजों, कोचिंग संस्थानों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया गाइडलांइस

सभी राज्यों के कोचिंग संस्थानों को दो माह में कराना होगा रजिस्ट्रेशन

देशभर के स्कूल, कॉलेजों, कोचिंग संस्थानों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया गाइडलांइस

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के शिक्षण संस्थानों के लिए 15 दिशा-निर्देश जारी किए. कोर्ट ने कहा, जब तक संसद या राज्यों की विधानसभा इस पर कानून नहीं बनातीं, ये गाइडलाइंस देशभर के लिए बाध्यकारी होंगी.

नई दिल्ली: आये दिनों सुनने को मिलता है कि छात्रों ने आत्महत्या कर ली. जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की आत्महत्या को देश की शिक्षा व्यवस्था की 'संस्थागत विफलता' बताया है. कोर्ट ने कहा, 'छात्रों की लगातार मौतें अक्सर ऐसी वजहों से होती हैं जिन्हें रोका जा सकता है. कोर्ट ने एनसीआरबी की रिपोर्ट का जिक्र कर कहा यह केवल डेटा नहीं, अनमोल जिंदगियां और युवा सपनों की अकाल मौत है. यह सामूहिक आत्ममंथन का समय है. एनसीआरबी के 2022 के आंकड़ों के मुताबिक उस साल देश में 1,70,924 आत्महत्या दर्ज हुईं, जिनमें 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की. इनमें 2,248 छात्रों ने फेल होने पर जान दे दी. यह इस बात का सबूत हैं कि हमने मानसिक स्वास्थ्य, अकादमिक दबाव, सामाजिक कलंक और संस्थागत संवेदनहीनता जैसे पहलुओं को नजरअंदाज किया है. अब इस संकट को और अनदेखा नहीं किया जा सकता.' सुप्रीम कोर्ट ने हर शिक्षण संस्थान में मानसिक स्वास्थ्य नीति और विशेषज्ञ नियुक्त हों करने को कहा तथा हर स्टूडेंट के प्रदर्शन के आधार पर बैच न बनाए को कहा गया. 

राष्ट्रीय जागरण में छपी रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने आंध्र प्रदेश की 17 वर्षीया नीट छात्रा की संदिग्ध मौत के मामले में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है. पीठ ने देशभर के शिक्षण संस्थानों के लिए 15 दिशा-निर्देश जारी किए. कोर्ट ने कहा, जब तक संसद या राज्यों की विधानसभा इस पर कानून नहीं बनातीं, ये गाइडलाइंस देशभर के लिए बाध्यकारी होंगी. कोर्ट ने राज्यों को दो माह में कोचिंग सेंटरों के पंजीकरण और शिकायत निवारण पर अधिसूचना जारी करने तथा हर जिले में डीएम की अध्यक्षता में निगरानी समिति बनाने का भी निर्देश दिया है. पीठ ने मानसिक स्वास्थ्य को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग बताया. कहा, हर संस्था की जिम्मेदारी है कि मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करे.

शिक्षण संस्थानों के लिए जारी किये गए 15 गाइडलाइंस

  •  सभी शिक्षण संस्थानों को 'उम्मीद', 'मनोदर्पण' और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति पर आधारित मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनानी होगी. हर साल अपडेट कर वेबसाइट व सूचना बोर्ड पर लगाना होगा. 
  • जहां 100 से अधिक छात्र हों, वहां प्रशिक्षित काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या सोशल वर्कर नियुक्त हों; छोटे संस्थान बाहरी विशेषज्ञों से जुड़ें. 
  • परीक्षा या कोर्स बदलाव के समय हर छात्र समूह को एक मेंटर या काउंसलर दिया जाए. 
  • कोचिंग संस्थान प्रदर्शन के आधार पर बैच न बनाएं और न ही छात्रों को शर्मिंदा करें. 
  • शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों और हेल्पलाइन से संपर्क की व्यवस्था हो; हेल्पलाइन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित हों. 
  • संस्थान सभी शिक्षकों व स्टाफ को साल में दो बार मेंटल हेल्थ और आत्महत्या संकेतों की ट्रेनिंग दें. 
  • कमजोर वर्गों जैसे-एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस, एलजीबीटीक्यू, विकलांग, अनाथ या मानसिक संकट से जूझ रहे छात्रों से भेदभाव न हो. 
  • यौन उत्पीड़न, रैगिंग और भेदभाव के मामलों में कार्रवाई के लिए समिति बने, पीड़ित को सहायता और सुरक्षा मिले.
  • अभिभावकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम हों ताकि वे तनाव पहचानें और दबाव न डालें. 
  • संस्थान हर साल रिपोर्ट बनाएं, जिसमें काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य का विवरण हो. इसे यूजीसी जैसी नियामक संस्था को भेजा जाए. 
  • पाठ्यक्रम के साथ खेल, कला और व्यक्तित्व विकास पर ध्यान हो, परीक्षा प्रणाली छात्रहित में हो.
  • छात्रों और अभिभावकों के लिए नियमित करियर काउंसलिंग हो. विविध विकल्पों की जानकारी दें. छात्रों को रुचि के अनुसार निर्णय में मदद करें. 
  • हॉस्टल संचालक सुनिश्चित करें कि परिसर नशे, हिंसा या उत्पीड़न से मुक्त हो और छात्र-छात्राओं को सुरक्षित वातावरण मिले. 
  • हॉस्टलों में छत, बालकनी, पंखे जैसी जगह सेफ्टी डिवाइस लगें ताकि आत्महत्या रोकी जा सके. 
  • कोटा, जयपुर, चेन्नई, दिल्ली जैसे कोचिंग केंद्रों में नियमित काउंसलिंग और शिक्षण योजना पर निगरानी के विशेष प्रयास हों.

 

Edited By: Sujit Sinha
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सुजीत सिन्हा, 'समृद्ध झारखंड' की संपादकीय टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जहाँ वे "सीनियर टेक्निकल एडिटर" और "न्यूज़ सब-एडिटर" के रूप में कार्यरत हैं। सुजीत झारखण्ड के गिरिडीह के रहने वालें हैं।

'समृद्ध झारखंड' के लिए वे मुख्य रूप से राजनीतिक और वैज्ञानिक हलचलों पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

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