सोसाइटी ऑफ जियो साइंटिस्ट ने डॉ रणजीत कुमार सिंह को उनके योगदान के लिए किया सम्मानित

सोसाइटी ऑफ जियो साइंटिस्ट ने डॉ रणजीत कुमार सिंह को उनके योगदान के लिए किया सम्मानित

रांची: सोसाइटी ऑफ़ जियो साइंटिस्ट, झारखंड के तत्वावधान में रांची में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण भारत सरकार के अपर महानिदेशक डॉ दीपायन गुहा की अध्यक्षता में मंगलवार, पांच जुलाई 2022 को एक भू वैज्ञानिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इसमें साहिबगंज कॉलेज के भू विज्ञान विभाग के प्रो डॉ रणजीत कुमार सिंह क़ो साहिबगंज में प्रस्तावित फॉसिल पार्क के निर्माण में उनके अनवरत और उत्कृष्ठ योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र व शाल ओढ़ा कर व पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर सोसाइटी के महामंत्री डॉ अनल सिन्हा ने डॉ सिंह, जीएसआइ और सोसाइटी के सहयोग की चर्चा की। राज्य की पूर्व भूविज्ञान निदेशक अंजलि कुमारी ने राज्य सरकार क़ो धन्यवाद दिया। सोसाइटी के अध्यक्ष आनन्द सहाय ने सदस्यों के साथ इसी माह में साहिबगंज फॉसिल पार्क और पाकुड़ का तकनीकी भ्रमण का प्रस्ताव दिया। डॉ रणजीत सिंह ने जिला प्रशासन व वन पर्यावरण विभाग के तरफ से इस क्षेत्र में भूवैज्ञानिक विकास के प्रतिबद्धता का विस्तर से चर्चा की। धन्यवाद ज्ञापन पंकज कुमार, निदेशक, जीएसआई भारत सरकार, झारखंड इकाई द्वारा दिया गया। उन्हेंने 2013 से लगातर भू वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसके विकास एवं सर्वेक्षण कार्य में डॉ रणजीत कुमार सिंह के सहयोग और योगदान को बताया। कार्यक्रम में लगभग 50 से ज्यादा जीएसआई के वैज्ञानिकों ने भाग लिया और चर्चा की।

परिचर्चा के केंद्र में रहा फॉसिल्स पार्क

झारखंड के भू वैज्ञानिकों की परिचर्चा में विश्व धरोहर फॉसिल्स के विभिन्न पहलुओं को लेकर चर्चा की गयी। इसमें मुख्य रूप से साहिबगंज जिले के मंडरो फॉसिल पार्क में बने पार्क ऑडिटोरियम म्यूजियम एवं इंटरप्रिटेशन सेंटर के साथ-साथ राजमहल में पाए जाने वाले फॉसिल इसके संरक्षण, सुरक्षा और शोध पर विशेष रूप से चर्चा की गयी।

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यह सर्वज्ञात है कि 1940 में वनस्पति के महान वैज्ञानिक बीरबल साहनी को विश्व में राजमहल के पहाड़ में मिलने वाले दुर्लभ फॉसिल को लेकर पूरे दुनिया में ख्याति प्राप्त हुई। प्रो बीरबल सहनी ने राजमहल पहाड़ी क्षेत्रों को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।

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झारखंड के साहिबगंज में राजमहल की पहाड़ी दुनिया के भू वैज्ञानिकों, वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला और तीर्थ स्थल से कम नहीं है। इतने दशक के बाद भी आज तक वैज्ञानिकों व शोधार्थियों के लिए विश्व स्तर के शोध के लिए यहां कोई आधारभूत संरचना नहीं बन सकी । इसे सरकार और शासन को ध्यान में लाने की जरूरत है। मंडरो फॉसिल में केवल पेट्रीफाइड फॉसिल्स का दिखाया गया है जबकि यहां पर अन्य लगभग 15 से 21 प्रजाति के फॉसिल्स जीवाष्म पाए जाते हैं। उसका सुरक्षा संरक्षण और शोध कार्य को लेकर एक बीएसआईप लखनऊ के तर्ज पर यहीं भी संस्थान बनना चाहिए। अभी तक बहुत सारे फॉसिल का आइडेंटिफिकेशन नहीं किया जा सका है। अभी भी बहुत सारे फॉसिल्स शोध के लिए बाट जोह रहे हैं।

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Edited By: Samridh Jharkhand

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