विश्व प्रकृति दिवस पर तरंग के माध्यम से प्रकृति पर्यावरण और विकास पर चर्चा
साहिबगंज : प्रकृति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। “प्र” अर्थात प्रकृष्ठी (उत्तम/श्रेष्ठ) “कृति” का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति और मनुष्य के बिच बहुत गहरा सम्बन्ध है।

प्रकृति हमारी सभी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती है, किन्तु स्वयं अपनी चीजों का उपयोग नहीं करती है। जल, जंगल और जमीन से ही मनुष्य जीवन है। प्रकृति ने हमे सब कुछ दिया है प्रकृति में चारों ओर पेड़-पौधों की हरियाली है।
प्रकृति ने हमको पेड़-पौधे, फल-फूल आदि दिए हैं, हमें प्रकृति को बचाने के लिए प्रकृति को प्लास्टिक मुक्त करना होगा तथा पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित करना होगा। प्रदूषण को कम करना होगा, प्रकृति को हरा-भरा खुशहाल रखना होगा। वन्य प्राणियों का संरक्षण संवर्द्धन करना होगा, हमें अधिक से अधिक पेड़-पौधों को लगाना होगा। हमें प्रकृति को समझना होगा अगर प्रकृति ही हमसे रूठ गई तो हमारी सुनने वाला कोई नहीं होगा।
यह दिवस जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली चुनौतियों व प्रकृति की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य दे मनाया जाता है।
विश्व प्रकृति दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों है?
दिन-प्रतिदिन बढ़ती जनसँख्या, बढ़ता प्रदूषण, प्रतिवर्ष धरती पर बढ़ता तापमान नष्ट होता पर्यावरण आज चिंता के विषय बन गए हैं और हमारी धरती को विनाश की ओर धकेल रहे हैं। प्रकृति की सुरक्षा करना बेहद जरूरी है, यही कारण है की देश-दुनिया के कई इलाको में सूखा पड़ रहा है।
*ये सब प्राकृतिक असंतुलन के कारण हो रहा है आज हमें अपने आपको बदलने की जरूरत है, प्रकृति को नहीं। हम सबके जीवन का आधार हमारी प्रकृति को सुरक्षित रखना।
राजमहल मॉडल कॉलेज के प्राचार्य डॉ रणजीत कुमार सिंह के नेतृत्व में यह अयोजन किया गया, जिसमें प्रो प्रशांत कुमार रांची, डॉ दीपक कुमार दिनकर भागलपुर व प्रो प्रमोद कुमार सिंह बीआईटी सिंदरी से तरंग के माध्यम से जुड़े, एनएसएस स्वयंसेवक के रूप में मनोज, मोहन कुमार, अमृत रजक, खुशीलाल पंडित, आंचल कुमारी, अंजली कुमारी, अजय पंडित, विनय टुडू, पलक केसरी, पिंकी कुमारी शर्मा, मनीष कुमार आदि शामिल हुए।
