60 प्रतिशत बलुआ पत्थर की मात्रा वाले ओबी से रेत निकालने पर कोल इंडिया का जोर
रांची : कोयला खदानों से निकलने वाले ओबी यानी ओवर बर्डन पर्यावरण व स्थानीय समुदाय के लिए हमेशा से एक बड़ी चिंता की वजह रही है। वहीं, नदियों से रेत के अवैज्ञानिक खनन से नदी पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा होता है। ऐसे में कोल इंडिया ने इन दोनों स्थितियों के बीच संतुलन बनाने की पहल करते हुए ओबी से रेत निर्माण की पहल को बढाने का निर्णय लिया है। लेकिन, वैसे ओबी का ही प्रसंस्करण किया जाएगा जिसमें बलुआ पत्थर की मात्रा 60 प्रतिशत से अधिक हो।
कोयला मंत्रालय ने अपने एक प्रेस बयान में 27 जनवरी 2023 को कहा है कि रेत लघु खनिज के रूप में वर्गीकृत है और इसका नियंत्रण राज्य सरकार के पास है, बहुत अधिक मांग, नियमित आपूर्ति और मानसून के दौरान नदी के इकोसिस्टम की सुरक्षा के लिए रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध के कारण नदी की रेत का विकल्प खोजना बहुत आवश्यक है।
खान मंत्रालय द्वारा तैयार सैंड माइनिंग फ्रेमवर्क 2018 में कोयले की खानों के ओवरबर्डन यानी ओबी से क्रशर राॅक फाइन्स से निर्मित रेत मैन्युफैक्चर्ड रेत के रूप् में प्राप्त रेत के वैकल्पिक स्रोत की परिकल्पना की गयी है।
ओपनकास्ट माइनिंग के दौरान कोयला निकालने के लिए ऊपर की मिट्टी और चट्टानों को कचरे के रूप में हटा दिया जाता है तथा खंडित चट्टान जिसे ओवरबर्डन या ओबी कहते हैं को डंप कर फेंक दिया जाता है। अधिकांश कचरे का सतह पर ही निपटान किया जाता है जो काफी भूमि क्षेत्र को घेर लेता है। खनन के पर्यावरण प्रभाव को कम करने के लिए व्यापक योजना और नियंत्रण की आवश्यकता होती है। कोल इंडिया लिमिटेड ने खानों में रेत के उत्पादन के लिए ओवरबर्डन चट्टानों को प्रोसेस करने की परिकल्पना की है, जहां ओबी में 60 प्रतिशत बलुआ पत्थर होता है उसका प्रसंस्करण कर उपयोग किया जा सकता है।
इसके कई लाभ हैं – लागत प्रभावशीलता यानी यह अधिक सस्ता हो सकता है, स्थिरता यानी निर्मित रेत में एक समान दानेदार आकार हो सकता है जो उन निर्माण परियोजनाओं के लिए अधिक लाभदायक हो सकता है, जिनको एक विशिष्ट प्रकार के रेत की जरूरत होती है। रेत खनन के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को यह विकल्प कम करेगा और एम-रेत विनिर्माण में आवश्यक पानी की खपत की मात्रा को कम करेगा। यह अधिक उपयोगी हो सकता है और ओबी डंप से भूमि का अतिक्रमण या कब्जा कम किया जा सकता है और अन्य लाभदायक उद्देश्यों के लिए उसका उपयोग किया जा सकता है। इस उपाय से रिवर बेड का कम क्षरण होने से नदी का जल स्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी साथ ही भूमिगत खदानों में रेत के भंडारण के लिए इसका उपयोग किया जा सकेगा जिससे सुरक्षा एवं संरक्षण में मदद मिलेगी।
कोयला मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि वर्तमान में कोल इंडिया के पास 4250 सीयूएम ओबी से रेत उत्पादन की क्षमता है और 5500 सीयूएम प्रतिदिन की क्षमता को इसमें जोड़ा जाएगा। इसके तहत डब्ल्यूसीएल कंपनी बल्लारपुर और दुर्गापुर मे ंक्रमशः 2000 और 1000 सीयूएम क्षमता का संयंत्र स्थापित करेगी और दोनों क्रमशः मई 2023 और मार्च 2024 में शुरू होगी।
एसइसीएल मानिकपुर में 1000 सीयूएम क्षमता का संयंत्र लगाएगी जो फरवरी 2024 में आरंभ होगी। सीसीएल का कथारा में 500 सीयूएम क्षमता का संयंत्र दिसंबर 2023 में और बीसीएल का बरोरा में 1000 क्षमता का का संयंत्र जुलाई 2024 में शुरू होगा। कथारा और बरोरा झारखंड के क्रमशः बोकारो और धनबाद जिले में स्थित हैं। कोल इंडिया इस प्रक्रिया को विस्तार देना करेगी है। साथ ही वह ओबी के सड़क निर्माण व रेल लाइन निर्माण में उपयोग बढाने की पहल कर रही है।