Opinion: नेपाल में क्या भारत के समर्थन वाली सरकार आ रही है!

ओली सरकार पर संकट के बादल 

Opinion: नेपाल में क्या भारत के समर्थन वाली सरकार आ रही है!

भारत के पड़ोसी देश बंग्लादेश में हाल ही में शेख हसीना की सरकार के तख्ता पलट के बाद अब एक अन्य पड़ोसी मुल्क नेपाल में भी वामपंथी विचारधारा के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार के तख्ता पलट की उम्मीद काफी बढ़ गई है।

भारत के पड़ोसी देश बंग्लादेश में हाल ही में शेख हसीना की सरकार के तख्ता पलट के बाद अब एक अन्य पड़ोसी मुल्क नेपाल में भी वामपंथी विचारधारा के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार के तख्ता पलट की उम्मीद काफी बढ़ गई है। ओली के मंत्री और सांसद इस्तीफा दे रहे हैं। आम जनता के गुस्से को भांप कर प्रधानमंत्री ओली के साथ-साथ उनके समर्थन वाले कई नेताओं के विदेश जाने की खबरें भी आ रही हैं। मौजूदा हालात में अगर ओली सरकार गिरती है, तो सबसे पहले सत्ता में आने का रास्ता नेपाली कांग्रेस जैसी मध्यमार्गी, लोकतांत्रिक विचारधारा वाली पार्टी के लिये सबसे अधिक खुलेगा। नेपाली कांग्रेस संसद की सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि सीपीएन-यूएमएल (ओली की पार्टी) दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है; इनके बाद तीसरी ताकत माओवादी केंद्र है, जो प्रगतिशील मगर ओली की तुलना में अधिक विविध गठबंधन की ओर झुकी रही है। ओली के नेतृत्व में मंत्रीमंडल में शामिल सहयोगी दलों ने पहले भी समर्थन वापस लिया है, इसलिए सत्ता परिवर्तन का रास्ता पहले संसदीय दल के बीच मेल-मिलाप, फिर बहुमत परीक्षण के जरिये तय होगा। नई सरकार के लिये गठबंधन जरूरी है, जिसमें कांग्रेस, माओवादी केंद्र और क्षेत्रीय दल प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।वैसे कहा यह भी जा रहा है कि नेपाल में जो कुछ हो रहा है उसके पीछे अमेरिका का हाथ है।

ओली सरकार की स्थिरता एक बार फिर बड़े संकट में फंस गई है, इसका ट्रिगर हालिया आंदोलन बना, जिसमें भ्रष्टाचार, भेदभाव और सोशल मीडिया नियंत्रण के खिलाफ युवाओं ने बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर कर विरोध किया। इन प्रदर्शनों को दबाने के दौरान पुलिस की फायरिंग में 19 लोगों की मौत हो चुकी है। इस घटना के बाद सरकार की साख और समर्थन तेजी से गिरा है; साथ ही ओली कैबिनेट से इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया। सबसे पहले गृह मंत्री रमेश लेखक (नेपाली कांग्रेस) ने इस्तीफा देकर नैतिक जिम्मेदारी ली। इसके बाद कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी (नेपाली कांग्रेस) ने भी सरकार की नीतियों के खिलाफ इस्तीफा दे दिया है। ये इस्तीफे बताते हैं कि सरकार के सामने बड़ी सियासी चुनौती है और बहुमत खोने का संकट सिर पर है।

नेपाल की राजनीति में सत्ता परिवर्तन के कई निशाने और असर भारत पर भी सीधे पड़ते हैं। नई सरकार का गठन भारत और चीन दोनों के लिये कूटनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण माना जाएगा। भारत पारंपरिक रूप से नेपाल की लोकतांत्रिक, संवैधानिक व्यवस्था को समर्थन देता रहा है और बार-बार राजनीतिक स्थिरता का पक्षधर रहा है। नेपाल में वामपंथी हुकूमतें आमतौर पर चीन के करीब दिखती हैं और भारत के साथ कई अहम समझौतों को ओझल कर देती हैं, जबकि नेपाली कांग्रेस जैसे दल खुलकर भारत-नेपाल सांस्कृतिक, राजनयिक, व्यापारिक रिश्तों को प्राथमिकता देते हैं। अगर ओली सरकार गिरती है और कांग्रेस गठबंधन सत्ता में आता है, तो भारत-नेपाल संबंधों के सहज होने, आपसी व्यापार बढ़ने और सीमाई विवादों के कम होने की संभावना कहीं अधिक मजबूत हो जाएगी; वहीं, ओली द्वारा लागू कट्टर राष्ट्रवाद कृ जो चीन के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिशों में झलकता रहा कृ उसमें ब्रेक लग सकता है।

नेपाल के हालिया राजनीतिक अस्थिरता के भारत पर प्रभाव को तीन पहलुओं में समझा जा सकता है। पहला, भारत नेपाल में स्थिरता चाहता है ताकि मधेस, सीमा विवाद और पारगमन व्यापार को लेकर सहयोग बढ़ सके। अस्थिर सरकारों के कारण अक्सर समझौते टल जाते हैं या नए सिरे से कूटनीति की जरूरत पड़ती है।दूसरा, ओली की वामपंथी सरकार ने भारत के खिलाफ राष्ट्रवादी बोल, सीमाई मुद्दों पर चीन के पक्ष में झुकाव और आंतरिक राजनीति में बाहरी (खासकर भारतीय) दखल का आरोप बार-बार लगाया। सत्ता परिवर्तन से भारत के लिए एक संवेदनशील, व्यावहारिक सहयोगी सामने आ सकता है। तीसरा, चीन के दखल और नेपाल की आंतरिक राजनीति में सैन्य व अधोसंरचना सहयोग के मुद्दे पर भारत सावधान रहता है। नई सरकार बनने के बाद भारत-नेपाल के कूटनीतिक संतुलन को साधने की कोशिश संभव है। ओली सरकार में जो मंत्री इस्तीफा दे चुके हैं, उनमें गृह मंत्री रमेश लेखक और कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी (दोनों नेपाली कांग्रेस) के नाम सामने आ चुके हैं। दोनों ने व्यापक विरोध-प्रदर्शन, विपक्षी दलों के दबाव और पुलिस बर्बरता व जवाबदेही के अभाव को लेकर इस्तीफा दिया है; इनके अलावा भी गंभीर असंतोष के संकेत मिल रहे हैं।

नेपाल में मौजूदा संकट का स्रोत नई पीढ़ी का असंतोष, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और फ्री स्पीच की मांग है, जिससे सरकार का जनाधार कमजोर हुआ है। ओली सरकार के जाने के बाद केंद्र में लोकतांत्रिक, लोककल्याणकारी एजेंडा रखने वाली पार्टियों का दबदबा बढ़ सकता है, जिससे भारत-नेपाल संबंधों में नया संचार और क्षेत्रीय संतुलन संभव है। किंतु सेट बैक यह रहेगा कि बार-बार सियासी उठापटक नेपाल की आंतरिक प्राकृतिक व मानवीय समस्याओं को भी और लंबा खींच सकती है, जिसका सीधा असर भारत-नेपाल के सीमाई इलाकों, प्रवासी कामगारों और सांस्कृतिक रिश्तों पर पड़ेगा। इसलिए घटनाक्रम पर भारत की दोतरफा कूटनीतिक सक्रियता बढ़ना तय है।

 

Edited By: Mohit Sinha
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