आरके श्रीवास्तव का छलका दर्द, कोरोना काल में उस गुरुओं के दर्द को किसी ने नहीं समझा

आरके श्रीवास्तव का छलका दर्द, कोरोना काल में उस गुरुओं के दर्द को किसी ने नहीं समझा

शिक्षण और प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सफल जीवन जीने के लिए सशक्त बनाना तथा स्वयं, परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान देना है। इसमें शिक्षक की भूमिका अहम होता है।

जिस शिक्षक व शिक्षिका ने अपना सम्पुर्ण जीवन बच्चो को बेहतर और सफल नागरिक बनाने में लगा दिया। जो उनकी हर सफलता पर खुशियों से झूम उठते हैं, गर्व महसूस कर सभी को बताते हैं की मेरे स्टूडेंट्स ने यह मुकाम हासिल किया, कभी डांट से तो कभी प्यार से सही राह दिखाते।

हमेशा उनको समझाते की जीतने वाले छोड़ते नहीं और छोड़ने वाले जीतते नहीं। पढाते समय कभी कोई परेशानी होती तो तुरंत उनके पैरेन्टस को बताते, फिर प्रतिदिन फोन कर हालचाल पूछते। पढ़ाई या अन्य कोई शिकायत आने पर तुरंत उसे दूर करते, स्कूल या कोचिंग प्रांगण में शिक्षक अपने स्टूडेंट्स के लिये वह सब कुछ करते जिसपर सभी गर्व महसूस करे।

एक दिन कोरोना नामक महामारी चारो तरफ हमला करती है। सारे शैक्षणिक संस्थानो को मजबुरी में बंद करना पड़ता है, लॉकडाउन लग जाता है। इन्कम के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, धीरे- धीरे हालात बिगड़ने लगते है। ऐसे में क्या कोई स्टूडेंट्स या उसके माता- पिता ने उन शिक्षको से फोन कर हालचाल पुछा?

क्या कभी यह जानने की कोशिश किसी स्टूडेंट्स या अभिभावक ने किया की उनकी मैम या सर कैसे हैं और अभी कहाँ पर हैं। आप सभी सोचकर बताये इस महामारी से कौन नहीं लड़ रहा। यह समय एक दुसरे को अपनी परेशानी बताकर नैतिक जिम्मेदारी से भागने का नहीं ब्लकि एक दुसरे का ताकत बनने का समय है। स्कूल और कोचिंग बंद होने से शिक्षकों को वेतन मिलना बंद हो गया है।

बहुतो की तो नौकरी चली गयी। यदि ऐसे ही स्थति रही तो सिर्फ स्कूल में चेयरमेन, एक क्लर्क और साफ सफाई करने वाले रह जायेंगे। उसके बाद जब आपके बच्चे स्कूल या कोचिंग में कदम रखेंगे तो क्या वह मैम या सर मिल जायेंगे जो आपके साथ कदम से कदम मिलाकर हमेशा खड़े रहते थे, आपके बच्चो के सपनो को पंख लगाने के लिये हमेशा प्रेरित कर सही दिशा देते।

जब आप अभिभावक अपने आप से सवाल पूछेंगे तो आपको पता चलेगा की आपके बच्चो की सफलता का डोर उन शिक्षको के हाथो में था जिनका आपने इस संकट की घड़ी में कभी फोन कर एकबार हालचाल भी नहीं पुछा।

जब आपके बच्चे आपसे सवाल पूछेंगे की आपने हमारे गुरु को कोरोना जैसे संकट में जहा उनकी नौकरी चली गयी उन्हे गुरु दक्षिणा तो नहीं दे सके उल्टे उन्हे बुरे हालात में छोडकर आ गये तो क्या आपके पास इन सवाल का जवाब होगा। जब आपके बच्चे आपसे पूछेंगे की ऐसी शिक्षा का क्या मतलब जब हम एक दुसरे की मदद ही न कर सके , नहीं चाहिये हमे ऐसी शिक्षा तब क्या आप पैरेन्टस जवाब दे पायेंगे।

Edited By: Samridh Jharkhand

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