A320 Global Grounding: क्यों रोकनी पड़ी हजारों उड़ानें, विमान में छिपी खतरनाक गड़बड़ी का खुलासा

A320 Global Grounding: क्यों रोकनी पड़ी हजारों उड़ानें, विमान में छिपी खतरनाक गड़बड़ी का खुलासा
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नेशनल डेस्क: दुनियाभर में करीब 6,000 एयरबस A320 फैमिली के विमान अस्थायी रूप से ग्राउंड कर दिए गए हैं क्योंकि एक सॉफ्टवेयर खामी और तेज सौर (solar) रेडिएशन के कॉम्बिनेशन ने फ्लाइट‑कंट्रोल सिस्टम की सेफ्टी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह एयरोस्पेस कंपनी एयरबस के 55 साल के इतिहास की सबसे बड़ी रिकॉल मानी जा रही है, जिसका सीधा असर अमेरिका, यूरोप से लेकर भारत तक हज़ारों उड़ानों पर पड़ा है।​

क्या हुआ, कब हुआ?

अक्टूबर के अंत में जेटब्लू की एक A320 उड़ान के दौरान विमान अचानक तेज़ी से नीचे झुक गया, जबकि पायलट ने ऐसी कोई कमांड नहीं दी थी; कई यात्रियों को चोटें आईं और विमान को इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी। जांच में पता चला कि फ्लाइट‑कंट्रोल सिस्टम के एक अहम कंप्यूटर ELAC‑2 (Elevator Aileron Computer) में गड़बड़ी हुई थी, जिसके बाद एयरबस और रेगुलेटर्स ने डेटा रिकॉर्ड्स का गहन विश्लेषण शुरू किया। विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकला कि तेज सौर विकिरण ने इस कंप्यूटर के भीतर मौजूद मेमोरी डेटा को करप्ट कर दिया, जिससे ऑटोपायलट ने बिना पायलट आदेश के विमान की नोज़ नीचे कर दी।​

फ्लाई‑बाय‑वायर और ELAC की तकनीकी खामी

A320 फैमिली विमान फ्लाई‑बाय‑वायर तकनीक पर चलते हैं, यानी पायलट की स्टिक से निकलने वाले सिग्नल पहले कंप्यूटरों में प्रोसेस होते हैं और फिर वे हाइड्रॉलिक सिस्टम को एक्टिवेट करके एलीवेटर और एइलरॉन जैसे कंट्रोल सरफेस चलाते हैं। ELAC कंप्यूटर इन्हीं एलीवेटर‑एइलरॉन की मूवमेंट को नियंत्रित करता है और इस घटना में जिस हार्डवेयर‑सॉफ्टवेयर कॉन्फ़िगरेशन (ELAC‑B, सॉफ्टवेयर वर्ज़न L104) का इस्तेमाल हो रहा था, वही बाद में सबसे अहम ‘रिस्क पॉइंट’ के रूप में पहचाना गया। सौर फ्लेयर्स के दौरान अंतरिक्ष से आने वाले ऊर्जावान कण ऊँचाई पर उड़ रहे विमानों के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम तक पहुँच सकते हैं और कभी‑कभी मेमोरी बिट्स उलट जाने (bit‑flip) जैसी त्रुटियाँ पैदा कर देते हैं, जिन्हें यदि सॉफ्टवेयर ठीक से हैंडल न करे तो यह कंट्रोल सरफेस की गलत हरकतों में बदल सकती हैं।​

6,000 विमानों की रिकॉल कैसे तय हुई?

एक घटना के बाद एयरबस ने पूरे बेड़े के डेटा की समीक्षा करके यह पता लगाया कि दुनिया भर में कितने A320 फैमिली विमान ऐसे ELAC कॉन्फ़िगरेशन के साथ उड़ रहे हैं जिनमें वही कमजोर सॉफ्टवेयर चल रहा है। नतीजा यह निकला कि लगभग 11,300 सक्रिय A320‑सीरीज़ जेट्स में से करीब आधे यानी लगभग 6,000 विमान प्रभावित हैं, जिन्हें तुरंत सॉफ्टवेयर ठीक किए बिना उड़ाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यूरोपीय यूनियन एविएशन सेफ़्टी एजेंसी (EASA) और अन्य रेगुलेटर्स ने इमरजेंसी एयरवर्थिनेस डायरेक्टिव जारी करके एयरलाइंस को आदेश दिया कि जब तक ELAC सॉफ्टवेयर फिक्स या हार्डवेयर रिप्लेसमेंट पूरा न हो, इन विमानों पर ऑपरेशन रोक दिया जाए।​

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सॉफ्टवेयर अपडेट और हार्डवेयर बदलने की प्रक्रिया

एयरबस के निर्देशों के अनुसार लगभग 4,000 विमानों में सिर्फ सॉफ्टवेयर लेवल पर काम करना है, जहां या तो पुराने सुरक्षित वर्ज़न पर रोल‑बैक किया जा रहा है या नया पैच्ड वर्ज़न डाला जा रहा है; यह प्रक्रिया आमतौर पर 2–3 घंटे में पूरी हो सकती है और कई बार रात में या उड़ानों के बीच के गैप में की जा रही है। करीब 1,000 पुराने या अलग कॉन्फ़िगरेशन वाले विमानों में समस्या सिर्फ सॉफ्टवेयर से हल नहीं हो रही, इसलिए उन्हें नया या मॉडिफ़ाइड ELAC हार्डवेयर लगाना पड़ेगा, जिसके लिए विमानों को दिनों या हफ्तों तक हैंगर में रखना पड़ सकता है क्योंकि पार्ट्स और प्रशिक्षित टेक्नीशियनों, दोनों की संख्या सीमित है। यह तकनीकी रीकॉन्फ़िगरेशन न सिर्फ फ्लाइट‑कंट्रोल एल्गोरिद्म की मज़बूती बढ़ाएगा बल्कि भविष्य में तेज सौर रेडिएशन के दौरान होने वाले बिट‑फ्लिप्स को बेहतर तरीके से डिटेक्ट और करेक्ट करने के लिए भी डिज़ाइन किया जा रहा है।​

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यात्रियों और एयरलाइंस पर क्या असर?

थैंक्सगिविंग और क्रिसमस‑न्यू ईयर जैसे पीक ट्रैवल सीज़न के ठीक बीच में आई इस रिकॉल के कारण अमेरिका, यूरोप और एशिया में हज़ारों उड़ानें देरी या रद्द होने की मार झेल रही हैं, जिससे लाखों यात्रियों की यात्रा योजनाएँ बिगड़ रही हैं। अमेरिका की प्रमुख A320 ऑपरेटर कंपनियाँ अमेरिकन एयरलाइंस, डेल्टा, जेटब्लू और यूनाइटेड ने अपने सैकड़ों विमानों को अस्थायी रूप से सर्विस से बाहर रखकर तीव्र गति से सॉफ्टवेयर फिक्स शुरू किया है, पर फिर भी कुछ दिनों तक शेड्यूल में भारी उलट‑फेर की आशंका बनी हुई है। कनाडा, यूरोप और लैटिन अमेरिका के कई कैरियर्स ने भी टिकट बिक्री सीमित करने, रूट्स कम करने और यात्रियों से वैकल्पिक फ्लाइट या रिफंड के विकल्प चुनने की अपील की है ताकि मेंटेनेंस विंडो को जगह मिल सके।​

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भारत में स्थिति

भारत में A320 फैमिली विमान घरेलू एविएशन की रीढ़ हैं, खासकर इंडिगो और एयर इंडिया के बेड़ों में इनकी हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा है। रिपोर्टों के अनुसार 200 से अधिक भारतीय A320 जेट्स को दो‑तीन दिन तक चरणबद्ध तरीके से ग्राउंड करके सॉफ्टवेयर पैच और ज़रूरी टेस्ट किए जा रहे हैं, इसी कारण कई रूट्स पर फ्लाइट रद्द या री‑शेड्यूल करनी पड़ी है और एयरलाइंस पहले से यात्रियों को मैसेज या मेल द्वारा चेतावनी दे रही हैं कि देरी की संभावना बनी रहेगी। इंडिगो और एयर इंडिया दोनों ने आश्वासन दिया है कि सेफ्टी सर्वोच्च प्राथमिकता है और प्रयास है कि अधिकतर विमानों पर फिक्स जल्दी पूरा कर लिया जाए ताकि ऑपरेशंस कुछ ही दिनों में सामान्य स्तर पर लौट सकें।​

एयरबस और रेगुलेटर्स की प्रतिक्रिया

एयरबस ने आधिकारिक बयान में इस घटना के लिए खेद जताते हुए स्पष्ट किया है कि यात्रियों की सुरक्षा किसी भी कारोबारी नुकसान से कहीं ऊपर है और सभी ऑपरेटर्स के साथ मिलकर 24×7 मोड में सॉफ्टवेयर फिक्स और हार्डवेयर रिप्लेसमेंट पर काम किया जा रहा है। कंपनी ने यह भी माना है कि हालिया घटना ने यह दिखा दिया कि बढ़ती सौर गतिविधि के दौर में डिजिटल फ्लाइट‑कंट्रोल कंप्यूटरों के लिए बेहतर शील्डिंग, एरर‑करेक्शन और फॉल्ट‑टॉलरेंट कोड की ज़रूरत पहले से कहीं अधिक हो गई है; यही कारण है कि भविष्य के वर्ज़न में अतिरिक्त सेफ़्टी‑लेयर्स जोड़ी जाएँगी। यूरोपीय और अमेरिकी रेगुलेटर्स फिलहाल इस बात से संतुष्ट हैं कि समस्या की जड़ पहचान ली गई है और रिकॉल पूरा होने के बाद A320 बेड़ा सामान्य रूप से सुरक्षित उड़ान के लिए उपयुक्त रहेगा, लेकिन वे सौर रेडिएशन से जुड़े जोखिमों पर लंबी अवधि की निगरानी और रिसर्च बढ़ाने की तैयारी में हैं।​

लंबी अवधि में सीख और चुनौतियाँ

यह घटना पूरी एविएशन इंडस्ट्री के लिए रिमाइंडर है कि जैसे‑जैसे विमान पूरी तरह डिजिटल होते जा रहे हैं, अंतरिक्ष से आने वाला रेडिएशन और साइबर‑फिजिकल रिस्क जैसे नए खतरे इंजीनियरिंग डिज़ाइन का अहम हिस्सा बनेंगे। एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले वर्षों में न सिर्फ एयरबस, बल्कि अन्य प्लेन्स, ड्रोन और सैटेलाइट मैन्युफैक्चरर्स को भी अपने इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में ज़्यादा मज़बूत शील्डिंग, रिडंडेंसी और रियल‑टाइम एरर‑करेक्शन मैकेनिज़्म शामिल करने पड़ेंगे ताकि सौर फ्लेयर्स जैसी प्राकृतिक घटनाएँ किसी एकल पॉइंट‑ऑफ़‑फेल्यर में न बदलें। साथ ही एयरलाइंस को भी ऑपरेशनल प्लानिंग में यह मानकर चलना होगा कि कभी‑कभी ऐसे बड़े तकनीकी अपडेट के लिए पूरे बेड़े को अचानक ग्राउंड करना पड़ सकता है, इसलिए फ़्लीट डाइवर्सिफ़िकेशन और बैकअप कैपेसिटी जैसी रणनीतियाँ भविष्य में और महत्वपूर्ण हो जाएँगी।

Edited By: Samridh Desk
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