संताल की धरती पर किसकी शह व किसकी मात !

संताल की धरती पर किसकी शह व किसकी मात !

आलोक कुमार
संथाल में मुख्यमंत्री के ताबड़तोड़ प्रचार व पीएम नरेंद्र मोदी की देवघर में बुधवार को हुई जनसभा के बाद ये देखना दिलचस्प होगा, कि यहां पर बिछी राजनीतिक विसात में किसकी शह होगी और किसकी मात ? सीएम ने तो अपना डेरा यही जमा लिया है व वोटिंग तक इनके यहां से हिलने के आसार नही दिखते। कांग्रेस-झामुमो व जेवीएम की राजनीति भी यहीं शिफ्ट हैं। रघुवर दास बीजेपी के उम्मीदवारों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को लामबंद करने में जुटे हैं। श्री दास ने मानों यह जिद ठान ली है, कि संताल पर किसी भी कीमत पर वे जेएमएम को शिकस्त देंगे। पीएम मोदी व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की दृष्टि भी यहां की तीनों सीटों पर टिकी हैं। हालात बेहद दिलचस्प मोड़ पर हैं व मौके की नजाकत को भांपते हुये झामुमों के कार्यकर्ताओं ने भी गांवों- पहाड़ों में मोर्चाबंदी का आगाज कर दिया है। वे समय को नजरअंदाज करते हुये दिन-रात, जेएमएम का झंडा थामे आदिवासियों को एकजुट करने में लगे हैं।
सातवें व आखिरी चरण में 19 मई को संताल परगना की तीन सीट- दुमका, राजमहल और गोड्डा में वोट डाले जाएंगे। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियों के लिये ये प्रतिष्ठा का सबब बना हुआ है। इस बार प्रदेश के तीन मंत्री लुइस मरांडी, रणधीर और राज पालिवार की भी अग्नि परीक्षा होगी। लोकसभा चुनाव के साथ ही रघुवर दास संताल परगना में बीजेपी के विधायकों और सरकार में तीन मंत्रियों की पैठ भी देखना चाहते हैं, साथ ही परखना चाहते हैं, कि आखिर साढ़े चार सालों में इनलोगों ने बीजेपी का झंडा कितना फैलाया है। इनके अलावा विधायक अनंत ओझा की संगठन में पैठ है तो चुनाव में वे कितने असरदार हैं ? यह देखना दिलचस्प है। इन तीनों मंत्रियों के सामने एंटी इनकंबैसी का खतरा भी मंडरा रहा है, जिसे सीएम संभालना चाह रहे हैं। दरअसल बीजेपी नेता जानते हैं, कि झामुमों को कमजोर करने से ही सत्ता, सियासत के उसके मकसद साकार हो सकता है, लिहाजा जेएमएम की घेराबंदी इनकी प्राथमिकता है। कोल्हान तथा संथाल का राजनीतिक नक्शा ये भी बताता है, कि सत्तर के दशक में जेएमएम के अस्तित्व में आने के बाद से झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए यहां की जमीन उर्वरा रही है। जेएमएम को हिलाया-डुलाया जा सकता है, लेकिन जमीन से उखाड़ने की हसरतें पूरी होती नहीं दिखती। [URIS id=8357]
2014 के लोस चुनाव में नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर में भी संथाल परगना की तीन में से दो लोकसभा सीट- दुमका व राजमहल में जेएमएम ने जीत का परचम लहराया था, बाकी राज्य की बारह सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही। दुमका से जेएमएम के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन तथा राजमहल से विजय हांसदा चुनाव जीते थे। शिबू सोरेन दुमका से आठ बार चुनाव जीत चुके हैं व इस बार भी वे विपक्ष के साझा उम्मीदवार हैं। विजय हांसदा संथाल परगना में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे दिवंगत थॉमस हांसदा के पुत्र हैं। 2014 का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने खुद को जेएमएम तथा संथाल की राजनीति में स्थापित किया है। इसके बाद 2017 में हुए लिट्टीपाड़ा उपचुनाव में रघुवर दास की सारी ताकत के बाद भी जेएमएम ने चुनाव जीत लिया था। ऐसे में भाजपा इसे अब तक पचा नहीं सकी है। गोड्डा में जेवीएम के प्रदीप यादव की सीधी टक्कर बीजेपी के निशिकांत दूबे से है। प्रदीप यादव भाजपा से सीट छीनना चाहते हैं, लेकिन इन्हें हराकर बाबूलाल मंराडी व विपक्ष को उनकी ताकत का एहसास कराना चाहती है। विपक्ष की एकता भाजपा की बेचैनी का कारण बनी हुई है।
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तीन चरणों में जिन 11 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनमें भाजपा के कब्जे वाली कम से कम पांच सीटों पर विपक्षी का पलड़ा भारी दिखता है। जाहिर है, कि मुकाबला कांटे का है और परिणाम चौंकानेवाले भी हो सकते हैं। संताल में जेएमएम की मजबूती उनके नेता हैं। स्टीफन मरांडी, साइमन मरांडी, नलिन सोरेन, शशांक शेखर भोक्ता, हाजी हुसैन अंसारी, रवींद्र महतो सरीखे कद्दावर नेता इनकी ताकत हैं। इनमें स्टीफन, साइमन मरांडी, नलिन विगत 30 साल से अपने क्षेत्र का मोर्चा ताकत के साथ संभाले हुये हैं। आदिवासियों के बीच शिबू सोरेन एक सर्वमान्य नेता हैं और उनके पुत्र हेमंत सोरेन अब यहां के बड़े रणनीतिकार व प्रचार में बड़ा चेहरा बनकर उभर चुके हैं। बहरहाल इन तामाम आंकलनो के बावजूद संथाल में झामुमों की ताकत को नजर अंदाज नही किया जा सकता है, लेकिन भाजपा की इन क्षेत्र में की गई मेहनत का परिणाम भी देखना भी अहम होगा।
विस पर फोकस
लोकसभा चुनाव में गठबंधन के साथ ही विपक्ष ने हेमंत सोरेन की अगुवाई में विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान कर रखा है। ऐसे में भाजपा संथाल परगना व कोल्हान पर खास फोकस कर रही है, ताकि विधानसभा में सत्ता के राह में कोई अड़चन न हो। आदिवासी बहुल इन दोनों इलाकों में विधानसभा की 32 सीटें हैं, लिहाजा संथाल परगना में लोकसभा चुनाव में बीजेपी जेएमएम के विजय रथ को रोकना चाहती है। इसी साल के आखिरी पड़ाव में विधानसभा का चुनाव भी होना तय है।
सीएम की रणनीति का हिस्सा
मुख्यमंत्री रघुवर दास झामुमों पर जोरदार हमला एक कुशल रणनीति के तहत कर रहे हैं। उन्होंने अपनी चुनावी जनसभा भी वैसी जगहों पर किया है, जहां तीर-धनुष लहराता रहा है। श्री दास संथाल को लेकर पिछले डेढ़ साल से निशाना साधे हुये हैं और मन में ये ठान चुके हैं, कि किसी प्रकार झामुमों को हराना है। जेएमएम सांसदों व विधायकों के क्षेत्र के दौरे भी ये गाहे-बजाहे करते रहे हैं। अबकी दफा जेएमएम के गढ़ में उन्होंने बेदाग बातें की हैं। वे सोरेन परिवार पर आदिवासियों के हक मारने से लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा को बाप- बेटे और बहू की पार्टी तक कह चुके हैं। इनदिनों झारखंड मुक्ति मोर्चा को झारखंड मुद्रा मोचन पार्टी तक कहते हैं व सोरेन परिवार के जमीन व संपत्ति खरीदने के मामले भी वे लगातार उछाल रहे हैं। दूसरी ओर वे केंद्र व राज्य सरकार के कार्यों की उपलब्धियों को जोरदार तरीके से गिनाने का काम कर रहे हैं।
Edited By: Samridh Jharkhand

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