COP27 में क्या भारत जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप प्रस्ताव को स्वीकार करेगा?

COP27 में क्या भारत जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप प्रस्ताव को स्वीकार करेगा?

कुछ ही दिनों में दुनिया के नीति निर्माता ईजिप्ट के शर्म अल-शेख में संयुक्त राष्ट्र के अगले जलवायु सम्मेलन, सीओपी 27, में मिल कर पूरी पृथ्वी पर जलवायु कार्यवाही के लिए कुछ अहम फैसले लेंगे। और ठीक उससे पहले पिछले कुछ समय से G7 और उसके सहयोगियों ने वियतनाम, इंडोनेशिया और भारत को कोयले से दूर होने के लिए अरबों डॉलर की पेशकश की है। लेकिन अभी तक इस दिशा में खास बढ़त नहीं देखीगयी।

इस पेशकश को जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP) कहा जाआ रहा है और इसका उद्गम हुआ था पिछली सीओपी के बाद, जब दक्षिण अफ्रीका के कोयला उद्योग को बंद कर एक न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन को बढ़ावा देने के लिए 8.5 बिलियन डॉलर की पेशकश की गयी।

मामले पर वैश्विक मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो G7 की वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ चर्चा उस बिंदु तक आगे बढ़ गई है, जहां लगभग $ 5 बिलियन और $ 10 बिलियन की प्रारंभिक नकद पेशकश की गई है।

वहीं भारत के साथ बातचीत अब तक आगे नहीं बढ़ी है। ऐसा पता चल रहा है कि भारत सरकार अभी इसके बारे में सोच रही है।

क्या रहेगा भारत का JETP पर रुख?

अगर भारत अगले कुछ दिनों में इस पेशकश को स्वीकार लेता है तो इसकी घोषणा नवंबर में मिस्र के शर्म अल शेख में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP27) में की जा सकती है।

बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत को इस साझेदारी में शामिल होने के लिए G7 की भारत द्वारा कोयले की खपत कम करने की शर्त को स्वीकार करना चाहिए?

भारत कोयले को लेकर पहले भी अपनी स्थिति साफ़ कर चुका है। साथ ही, पिछले साल ग्लासगो में सीओपी 26 के दौरान, भारत ने विकासशील देशों के लिए ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों में से एक, कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के कठिन लक्ष्यों का विरोध भी किया था।

भारत उन विकासशील देशों में शामिल था जिन्होंने ग्लासगो संधि में कोयले के उपभोग को ख़त्म करने के लिए प्रयोग हुई भाषा का विरोध किया। अंततः यूके, यूएस, चीन, और यूरोपीय संघ के बीच हुए आपसी समझौते से संधि की भाषा को भारत की मंशा के अनुरूप फिर से लिखा गया।

उसके बाद, पिछले साल दिसंबर में, राज्यसभा में उठे एक सवाल पर जवाब देते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि कोयला भारत में ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत बना रहेगा। मंत्रालय ने एक प्रतिक्रिया में कहा कि “पर्याप्त भंडार के साथ ऊर्जा का एक किफायती स्रोत होने के कारण, निकट भविष्य में कोयला ऊर्जा के एक प्रमुख स्रोत के रूप में बना रहेगा।

इसके दृष्टिगत अब यह देखना रोचक रहेगा कि क्या भारत JETP में शामिल होता है या नहीं। ध्यान रहे, G7 के साथ भारत पर संयुक्त राष्ट्र से भी इस दिशा में आगे बढ्ने का दबाव है।

यूएन ने भी बनाया है भारत पर दबाव

अपनी हाल की भारत यात्रा में और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एमिशन गैप रिपोर्ट के शुभारंभ के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने G7 के इस प्रस्ताव का कई बार उल्लेख किया। इतना ही नहीं, उन्होंने भारत से इस साझेदारी में शामिल होने का आग्रह भी किया।

बीती 19 अक्टूबर को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई में अपने भाषण के दौरान उन्होने कहा, “विकसित देशों की इस संदर्भ में बड़ी भूमिका है। यही वजह है कि मैंने भारत सहित तमाम देशों का आह्वान किया है कि वह रिन्यूबल ऊर्जा की तैनाती में तेजी लाने की महत्वाकांक्षी योजनाओं को बनाने के लिए एक साथ बढ़े। और इसीलिए मैं JETP की स्थापना का स्वागत करता हूं।”

उसके बाद, एमिशन्स गैप रिपोर्ट को लॉंच करते हुए भी उन्होने JETP पर अपना रुख़ दोहराया और भारत की भूमिका पर रौशनी डाली। उन्होने कहा, “उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को भी आगे बढ़ कर आना होगा और कुछ अधिक करना होगा। JETP की मदद से कोयले पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं को क्लीन और ग्रीन एनर्जी का रुख़ करने में मदद मिलगे। फिलहाल यह साझेदारियां भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम में आगे बढ़ रही हैं।”

है क्या JETP?

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन पार्टनरशिप य JETP की अवधारणा पिछले साल सीओपी 26 में शुरू हुई थी जब फ्रांस, जर्मनी, यूके, यूएस और ईयू मिल कर दक्षिण अफ्रीका को तकनीकी और आर्थिक मदद दे कर डीकारबनाइज़ या कार्बन मुक्त करने के लिए एक साथ आगे आए। इस साझेदारी के तहत, यह देश अगले तीन से पाँच सालों में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय जलवायु कार्यक्रम को लागू करने में मदद के लिए $ 8.5 बिलियन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस सहयोग की मदद से इन देशों का उद्देश्य है कि दक्षिण अफ्रीका अपनी अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज करे, कोयले से दूर जाये, और एक कम उत्सर्जन वाली क्लीन और ग्रीन ऊर्जा व्यवस्था का विकास कर सके।

विशेषज्ञ की राय

लप्पीनरांता यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, फ़िनलैंड, शोधार्थी और एनर्जी ट्रांज़िशन एक्सपर्ट, मनीष राम कहते हैं,“मुझे लगता है कि यह भारत के लिए एक शानदार अवसर है जिस पर उसे गंभीरता से विचार करना चाहिए। भारत का कोयले के लिए ऐसा मोह समझ से परे है। चीन भारत से 4-5 गुना अधिक कोयले की खपत करता है, लेकिन भारत न जाने क्यों कोयले के उपभोग का वैश्विक चेहरा बनने पर आमादा सा दिखता है।“ मनीष आगे समझाते हैं कि, “रणनीतिक रूप से भारत G7 के सामने भारत कि स्थिति बढ़िया है। भारत को इस सहयोग के लिए तब ही हामी भरनी चाहिए जब G7 इसमें वित्त पोषण के साथ भारत में उत्पादन पर भी राज़ी हो। ऐसा इसलिए ज़रूरी है क्योंकि एनर्जी ट्रांज़िशन के न्यायसंगत या जस्ट होने के लिए उसमें रोजगार पैदा करने और सामाजिक कल्याण को आगे बढ़ाना बेहद ज़रूरी है। और इसी वजह से घरेलू उत्पादन पर भारत को ज़ोर देना चाहिए।

ध्यान रहे, एक विचारधारा ऐसी भी है जो कहती है कि यह सब कुछ दरअसल एक बड़े भूराजनीतिक खेल का हिस्सा है। दरअसल यूक्रेन में युद्ध के चलते G7 भारत को अपने पक्ष में करना चाहेगा। फिलहाल खनिजों के मामले में चीन इस समय सबसे मजबूत स्थिति में है। ऐसे में G7 देशों के लिए कम लागत पर निर्माण करने के लिए भारत एक बढ़िया विकल्प है। शायद यह भी एक वजह हो सकती है G7 द्वारा भारत को इस साझेदारी के लिए लुभाने का।

मनीष का मानना है, “G7 से मिली आर्थिक मदद से न सिर्फ़ भारतीय अर्थव्यवस्था को काफ़ी लाभ होगा, ऊर्जा की लागत कम होगी, बल्कि साथ ही स्थानीय रोजगार बनेंगे और भारत के पर्यावरण पर भी इसका बढ़िया असर देखने को मिलेगा।”

Edited By: Samridh Jharkhand

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