झारखंड में गिने- चुने जगहों में ही अंशकालिक काउंसलर नियुक्त

झारखंड में गिने- चुने जगहों में ही अंशकालिक काउंसलर नियुक्त

सीबीएसई गाइडलाइन की हो रही अनदेखी
  • आकांक्षा रॉय
सीबीएसई ( केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ) ने स्कूलों में काउंसलर रखना अनिवार्य कर दिया है। स्कूल जाने वाले बच्चे जिस तरह से अवसाद वतनाव ग्रस्त हो रहे हैं, उसमें काउंसलर की उपयोगिता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। गौरतलब हो कि स्कूलों में छोटी उम्र में ही बच्चों पर तनाव हावी है। कक्षा में बहुत से बच्चे गुमसुम होकर बैठे रहते हैं, शिक्षक को पता नहीं चल पाता है कि आखिर कारण क्या है ? जिन स्कूलों में काउंसलर की तैनाती की गई है, वह बच्चों के अवसाद व गुमसुम होने के कारणों की पहचान कर पा रहे हैं। स्कूलों में काउंसलर का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सीबीएसई ने सभी स्कूलों के लिए काउंसलर रखना अनिवार्य कर दिया है, इसके बावजूद झारखंड की रांची के अधिकांश स्कूलों इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
डीपीएस, रांची में काउंसलर के तौर पर डॉ ओमी सिंह को नियुक्त किया गया है। उनकी माने तो बच्चे अनेकों तनाव झेलते है, ऐसे में अवसाद में जाने से बचाने के लिहाज से उनको नियमित सही सुझाव देना अनिवार्य है। ये भी शत-प्रतिशत स्कूलों में काउंसलर रखने को जायज मानते हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये है, कि गिने- चुने स्कूलों को छोड़ दें, तो सभी स्कूल अंशकालीक काउंसलर के नाम पर महज खानापूर्ति कर रहे हैं। कहीं इसकी अर्हता को पूरी करने वाले शिक्षक को नही रखा गया है। कैरली स्कूल की छात्र स्नेहा कहती है, कि कोई काउंसलर यहां नही हैं। सोने पर सुहागा ये कि केंद्रीय विद्यालय का भी यही आलम है। यहां के विद्यार्थी कृष्णा ने काउंसलर न होने की बात कही है।
काउंसलर के साथ सहज रहते हैं बच्चे: अभिभावक
हरमू निवासी मीरा वर्णवाल का कहना है कि इस समय बच्चों की काउंसिलिंग बहुत जरूरी है। जिन बातों को बच्चे अपने परिवार में सांझा नहीं कर पायेंगे तो वे अपनी बात काउंसलर से कर सकते हैं। समय- समय पर बच्चों के अलावा पैरेंट्स के साथ भी काउंसिलिंग होने को आवश्यक मानती हैं। रखी जाती है। हरमू के ही ए के ठाकुर कहते हैं कि बच्चे अपना अधिक समय स्कूल में देते हैं व उसके बाद वह घर आते हैं। ऐसे में हर स्कूल में एक काउंसलर का होना बहुत जरूरी है, ताकि बच्चे हर तरह की परेशानियों से बाहर आ सकें। अपने काउंसलर को मित्र समझकर हर तरह की परेशानियां उनसे बताएं ताकि उनके काउंसलर भी उन्हें उस परेशानी से उभरने में उनकी सहायता करें।
डब्लूएचओ के 10 लाइफ स्किल:
बच्चों की काउंसिलिंग के लिए डब्लूएचओ ने 10 तरह के लाइफ स्किल निर्धारित किए हैं। जिसमें खुद की जागरूकता, सहानुभूति, आलोचनात्मक, रचनात्मक सोच, निर्णय लेने की क्षमता, समस्याओं के समाधान करने की दक्षता, प्रभावशाली संवाद, एक दूसरे के साथ व्यवहारपरक संबंध व तनाव दूर करने और भावनाओं को नियंत्रित करने का तरीका आदि को शामिल किया गया है। स्कूल शिक्षा विभाग ने निजी स्कूलों की मान्यता के लिए नियम में यह शर्त पूरी करना अनिवार्य कर दिया है। हालांकि फिलहाल ज्यादातर स्कूल ऐसे हैं जहां अप्रशिक्षित स्टाफ के साथ ही काउंसलर नहीं है। केवल कागजों पर ही यह व्यवस्था चल रही है। विभाग हर साल हजारों स्कूलों को मान्यता देता है। अब तक इसमें जमीन और भवन से जुड़ी बाध्यता होती थी। जिसका निजी स्कूल के संचालक विरोध भी कर रहे हैं लेकिन अब अंशकालिक ही सही, काउंसलर रखना जरूरी किया गया है। ऐसा इसलिए ताकि किसी छात्र को कोई दिक्कत है तो वह आत्मघाती कदम न उठाए। काउंसलर उसकी समस्या समझकर मनोवैज्ञानिक हल करे। गौरतलब है कि बड़ी संख्या में छात्र- छात्राएं विभिन्न समस्याओं से परेशान होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं।
मनोविज्ञान में स्नातक जरूरी:
स्कूल में रखे जाने वाले काउंसलर के लिए यह जरूरी होगा कि वह मनोविज्ञान में स्नातक हो। उसे स्नातक के साथ काउंसलिंग में डिप्लोमा का प्रमाण पत्र भी होना चाहिए। निजी स्कूलों को मान्यता के लिए आवेदन करते समय संबंधित दसतवेज लगाना अनिवार्य किया गया है। इस बाबत रांची मनोचिकित्सा संस्थान में कार्यरत डाॅ भूमिका के अनुसार वह बच्चों से मिलती हैं व उनसे बातें करती हैं। उस दौरान वह नियमित रूप से किशोर अवसाद से संबंधित बहुत से मामलों का सामना करते हैं। ये भी सकूल में एक काउंसलर होने की बात कहती हैं।
Edited By: Samridh Jharkhand

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