झारखण्ड के एक कलाकार ने कहा, नेपोटिज्म का शिकार बनने से अच्छा है कि लॉक डाउन के बाद घर आ जाऊं

सुशांत सिंह राजपूत अब हमारे बीच नहीं रहे। ऐसे में आउटसाइड कलाकार काफी मायूस हो गए हैं। झारखण्ड के एक कलाकार ने नाम न लिखने के शर्त पर हमसे बातें की और दुःख भी साझा किया। उन्होंने बताया की लगभग 20 से 25 फिल्मों में शॉर्ट लिस्ट किया गया। लेकिन उन्हें कोई फिल्में नहीं मिली। पिछले 5 सालों से फिल्म इंडस्ट्री में अपने करियर बनाने की जिद्द पर मुंबई में रह रहे हैं। उनसे बातचीत के कुछ मुख्य अंश पेश कर रही हूँ।

ज़वाब: यह मुंबई नगरी है। यहां हमारे जैसे हर रोज सैकड़ो लोग सपने लेकर आते हैं और सैकड़ों उन्हीं सपनों को समंदर में प्रवाहित करके चले जाते हैं। मैं तो फिर भी अब तक हिम्मत नहीं हारा हूँ। हां, मुझे अब तक फिल्म में काम करने का जगह नहीं मिला। मुझे कोई फिल्में नहीं मिली। इसका वजह तो आज आप पूरी तरह समझ गई होंगी।
सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद इसे समझने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। फिर भी आप ने सवाल किया है तो जवाब दे देता हूँ। मैंने सौ से ज्यादा फिल्मों के लिए ऑडिशन दिए हैं। 25 से अधिक फिल्मों में मेरा नाम शॉर्टलिस्ट किया गया। लेकिन नाम तो पहले ही सिलेक्टेड होते हैं। मैडम, यहां ऑडिशन तो मात्र एक दिखावा होता है। इसी दिखावे के कारण तो हम जैसे नए चेहरे को मौका नहीं मिलता।
सवाल: सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लिए नेपोटिज्म पर बहस हो रही है, क्या लगता है?
ज़वाब: ये सवाल एक पत्रकार कर रही हैं तो मुझे अफसोस हो रहा है। लेकिन एक आम इंसान यह सवाल कर रहा है तो मुझे गर्व हो रहा है। हां, मैं इसका भुक्तभोगी हूँ। क्योंकि आम इंसान को जो दिखाया जाता है, वो वही तो देख पाते हैं। इसलिए बड़े यक़ीन के साथ कह रहा हूँ कि यह बात बिल्कुल सही है।
और यह बहस आगे भी जारी रहने चाहिए। नेपोटिज़्म ने ही सुशांत सिंह राजपूत को मरने पर मजबूर कर दिया होगा। यह एक षड्यंत्र है। कुछ ऐसे दोस्त हैं, जिन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के साथ काम किया है। उन्होंने बताया कि सुशांत सर हार मानने वाले नहीं थे उनके इस कदम ने हमें मायूस कर दिया है। लेकिन उनकी हालत कौरवों के बीच घिरे अभिमन्यु सी थी। तो उनको मरना पड़ा।
सवाल: ऐसा क्यों होता है की फिल्में नहीं मिलती?
ज़वाब: जिन्हें राजनीति में परिवारवाद नजर आता है, उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में नज़र क्यों नहीं आता, यह तो मैं नहीं कह सकता। लेकिन मीडिया को यह नजर नहीं आ रहा, यह इस इंडस्ट्री के लिए दुर्भाग्य की बात है। आपने कभी गौर किया है! वरुण और आलिया से बेहतर कई नए चेहरे ने अपने बूते पर यहां जगह बनाने की कोशिश की है। कुछ ने दबाव में आकर हार मान लिया तो किसी ने समझौते को स्वीकार कर लिया। यह नेपोटिज़्म या परिवारवाद दीमक की तरह देश को खा रहा है। इस पर कोई उंगली नहीं उठाता। ना जाने क्यों?
सवाल: आप 5 सालों से मुंबई में कैसे सरवाइव कर रहे हैं?
ज़वाब: यह सवाल करके आपने मेरे जैसे करोड़ों-लाखों नए चेहरों के दर्द को कुरेद ने की कोशिश कर दी है। जिन्होंने अपने हुनर के दम पर नाम कमाने की सोच लेकर माया नगरी की गाड़ी पकड़ी थी। लेकिन एक ऐसा दर्द लेकर वापस लौटे जो जीवन भर के लिए या तो अनुभव बन गया या तो घुटन।
मैं संपन्न परिवार से नहीं आता हूँ। मैं एक व्यवसाई परिवार से हूँ। मुझे पैसों की तंगी झेलनी पड़ती है। मैं छोटी- छोटी रोल प्ले करने के लिए भटकता हूँ। लेकिन मेरे जैसे का हाल बेहाल होता रहता है। इस मायानगरी में। यहां हर दिन सपने टूटते हैं। यहां हर दिन सपने रोते हैं। यहां हर दिन कोई ना कोई मरने को मजबूर होता है।
सवाल: अगर आपको माया नगरी में काम नहीं मिला तो..,!
ज़वाब: अब इस बात का दु:ख नहीं होगा। हमने एक ऐसा अभिनेता खो दिया है कि दुखी होने का कोई जगह ही नहीं बचा। बस एक बात का अफसोस हमेशा रहेगा कि यह नगरी देखने वालों के लिए ही अच्छी है। यहां सरवाइव करने वालों की, खुद के बूते नाम बनाने वालों की कोई कदर नहीं करता। यहाँ नेपोटिज्म को झेलने से अच्छा है कि माँ पिताजी के साथ रहूँ। मैं लॉकडाउन के बाद घर आ रहा हूँ।