Climate कहानी: बात सिर्फ मौसम की नहीं, अब इंसाफ की भी
जलवायु को बचाना सिर्फ नैतिक नहीं, कानूनी ज़िम्मेदारी
अब इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस भी कह रहा: जलवायु को बचाना सिर्फ नैतिक नहीं, कानूनी ज़िम्मेदारी भी
आज इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ), यानि दुनिया की सबसे बड़ी अदालत, ने एक ऐतिहासिक सलाह दी है. उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि दुनिया के हर देश की ये कानूनी ज़िम्मेदारी है कि वो जलवायु संकट को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं. कोई बहाना नहीं चलेगा. अब ये सिर्फ वैज्ञानिक चेतावनी या युवाओं का आंदोलन नहीं है, ये कानून की बात है.

"हर देश को अपने ग्रीनहाउस गैस एमिशन को तेजी से कम करना होगा और कोयला, तेल, गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों से छुटकारा पाना होगा. वरना वो अंतरराष्ट्रीय कानून तोड़ रहे होंगे." UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे एक "ऐतिहासिक जीत" बताया है, पृथ्वी के लिए, जलवायु न्याय के लिए, और उन युवाओं के लिए जो लगातार लड़ रहे हैं.
मुद्दा साफ है: पेरिस समझौते में तय 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य कोई सुझाव भर नहीं है, ये एक ज़रूरी पैमाना है, जिसके हिसाब से नीतियां बनानी ही होंगी.
अदालतों की लहर बन चुकी है
ICJ का ये फैसला अकेला नहीं है. इससे पहले नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, बेल्जियम, इंटर-अमेरिकन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स, और यूरोपीय मानवाधिकार अदालत जैसे कई मंचों ने भी यही कहा है—सरकारें जलवायु परिवर्तन को रोकने में नाकाम रहती हैं, तो ये सिर्फ नीति की नाकामी नहीं, इंसानों के अधिकारों का उल्लंघन है.
कानून अब लोगों के साथ खड़ा है. Climate Litigation Network की को-डायरेक्टर सारा मीड ने कहा: "ये फैसला उस उम्मीद को वैधता देता है जो दुनिया के ज़्यादातर लोग अपनी सरकारों से रखते हैं—कि वो हमारी और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए जलवायु पर ठोस कदम उठाएंगे."
आज के हालात में, जब ज़्यादातर देशों की जलवायु योजनाएं अधूरी और कमज़ोर हैं, तो ये कानूनी राय नई उम्मीद और ताकत देती है. स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों पर भी अब दबाव बढ़ेगा, जो कोर्ट के पुराने फैसलों को चुनौती दे रहे हैं.
ग्रीनपीस स्विट्ज़रलैंड के जॉर्ज क्लिंगलर ने कहा: "ICJ ने साफ कर दिया है कि हर देश का कानूनी फर्ज़ है कि वो जलवायु संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों और भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा करे."
आगे क्या?
अब जबकि बेल्जियम, फ्रांस, कनाडा, तुर्की, पुर्तगाल, न्यूजीलैंड, और कई देशों में जलवायु मुकदमे चल रहे हैं, ये सलाह एक तरह का कानूनी और नैतिक कम्पास बन सकती है. इससे एक्टिविस्ट, समुदाय और आम लोग अपने हक़ के लिए और मजबूती से खड़े हो सकेंगे.
यानी अब मौसम की तरह सरकारों के मूड बदलने का समय नहीं है—अब जवाबदेही का मौसम आ गया है.
