वायु प्रदूषण के खतरे से पूरी तरह वाकि़फ नहीं हैं भारतीय डॉक्‍टर : अध्ययन

वायु प्रदूषण के खतरे से पूरी तरह वाकि़फ नहीं हैं भारतीय डॉक्‍टर : अध्ययन

सिर्फ बाल रोग विशेषज्ञ व श्वांस संबंधी रोगों के विशेषज्ञ इसकी समझ रखते हैं

नयी दिल्‍ली : दिल्‍ली स्थित सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल, सीसीडीसी के एक ताजा अध्‍ययन से वायु प्रदूषण के कारण सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर चिकित्सकों की जानकारी, उनके रवैये और प्रैक्टिस के बारे में कुछ महत्‍वपूर्ण जानकारियां मिली हैं। यह अध्ययन कोच्चि, केरल, रायपुर, अहमदाबाद और लखनऊ में किया गया है। इस सर्वे के जरिए फिजीशियन, श्‍वास रोग विशेषज्ञों, बाल्‍य रोग विशेषज्ञों और हृदय रोग विशेषज्ञों तक पहुंच कर यह जानने की कोशिश की कि वे वायु प्रदूषण के मुद्दे को किस तरह समझते हैं।

हालांकि वायु प्रदूषण दुनिया भर में खासकर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मसला बनता जा रहा है मगर यह अध्ययन हमें बताता है कि हमारे अनेक फिजीशियन इस गंभीर खतरे को पूरी तरह से नहीं समझ रहे हैं और न ही वह अपने मरीजों को वायु प्रदूषण के कारण सेहत पर पड़ने वाले बुरे असर के बारे में बता रहे हैं।

इस अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि सांस से संबंधित गंभीर बीमारियों के लिए तंबाकू के इस्तेमाल और धूम्रपान जैसे जाने पहचाने कारणों की तरह वायु प्रदूषण भी खतरनाक वजह है, मगर इसे चिकित्सा शिक्षा में अब भी समुचित स्थान नहीं दिया गया है। हालांकि हाल के वर्षों में भारत में वायु प्रदूषण को लेकर जागरूकता बढ़ी है लेकिन इस मामले में पूरे देश में एक जैसी जागरूकता संभवतः नहीं हुई है और ना ही यह विभिन्न चिकित्सकों के बीच प्रैक्टिस संबंधी समुचित दिशा निर्देशों के तौर पर जगह बना पाई है। वर्ष 2015 में भारत की आधी से ज्यादा आबादी पीएम 2.5 के उस स्तर से रूबरू थी जो नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से कहीं ज्यादा था। एनएएक्यूएस ने पीएम 2.5 का मानक 40 μg/घन मीटर तय किया है मगर वर्ष 2018 में लांसेट द्वारा उजागर तथ्यों में यह पाया गया कि वर्ष 2017 में 77 प्रतिशत भारतीय इस मानक से कहीं ज्यादा के स्तर वाली हवा में सांस ले रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यूएचओ ने 10 μg/घन मीटर के स्तर को सुरक्षित माना है लेकिन भारत का कोई भी राज्य इस मानक पर खरा नहीं उतरता।

इस अध्ययन से निम्नलिखित प्रमुख तथ्य सामने आए हैं :

1. हालांकि वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उसके दुष्प्रभावों के बारे में कुछ जागरूकता जरूर है लेकिन यह कोई बेहद महत्वपूर्ण या बातचीत का ऐसा विषय नहीं है जो डॉक्टरों की बिरादरी के बीच बहुत ज्यादा अहमियत रखता हो।

2. ज्यादातर डॉक्टर प्रदूषणकारी तत्वों की विभिन्न श्रेणियों के बजाय वायु प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों की पहचान कर सके। निजी अस्पतालों के कुछ डॉक्‍टर प्रदूषणकारी तत्वों की विभिन्न किस्मों के बारे में समझने और पार्टिकुलेट मैटर तथा वायु में घुलने वाले गैसीय प्रदूषण कारी तत्वों के बीच अंतर को बेहतर तरीके से समझाने में सक्षम दिखे।

3. ज्यादातर डॉक्टर यह समझते हैं कि वाहनों से निकलने वाला धुआं ही प्रदूषण का मुख्य स्रोत है यहां तक कि छत्तीसगढ़ राज्य के डॉक्टरों का भी यही मानना है जहां कोयले की खदानें, फैक्ट्रियां, औद्योगिक इकाइयां और थर्मल पावर प्लांट बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

4. खासतौर पर उत्तर भारत में भोजन बनाने में बायोमास, लकड़ी और कोयले जैसे गंदे ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है, मगर इसके बावजूद मानव स्वास्थ्य पर आंतरिक प्रदूषण के स्रोतों के पड़ने वाले असर के बारे में कई डॉक्टरों ने कुछ नहीं कहा।

5. ऐसा लगता है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण के स्तर, खासतौर पर सर्दियों के मौसम में पूरे देश के लिए एक संदर्भ पैमाना बन गए हैं।

6. ज्यादातर डॉक्टरों ने बताया कि वायु प्रदूषण का विषय उन्हें पढ़ाए गए चिकित्सा पाठ्यक्रम में विस्तृत रूप से शामिल नहीं था।

7. सर्वे में शामिल किए गए ज्यादातर डॉक्टरों के लिए अखबार और समाचार चैनल ही वायु प्रदूषण के बारे में बताने का मुख्य जरिया हैं। खास तौर पर कोच्चि और रायपुर के कुछ उत्तर दाताओं ने कहा कि खासकर शहर के कुछ इलाकों में वायु की गुणवत्ता के स्तरों को दर्शाने वाले डिस्प्ले बोर्ड के जरिए भी उन्हें हवा की स्थिति के बारे में जानने में मदद मिलती है।

8. सर्वे के दौरान यह महसूस किया गया कि बाल्‍य रोग विशेषज्ञ और श्वास रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर वायु प्रदूषण को सेहत के प्रति गंभीर खतरे के तौर पर स्वीकार करने के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं।

यह अध्ययन सेंटर फॉर एनवायरमेंटल हेल्थ पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की उपनिदेशक डॉक्टर पूर्णिमा प्रभाकरण की निगरानी में किया गया है। डॉक्टर पूर्णिमा ने कहा हालांकि यह अध्ययन वर्ष 2018-2019 में छोटे शहरों में कराया गया था और हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि स्थितियों में कुछ हद तक बदलाव हुआ होगा मगर खासकर मौजूदा संदर्भ में हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि अन्य बड़े शहरों में काम कर रहे डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ वायु प्रदूषण की वजह से सेहत पर पड़ने वाले असर को बेहतर तरीके से समझते हैं। यहां तक कि यह सोचना भी गलत होगा कि वे अपनी प्रैक्टिस में इस पहलू का ख्याल रखना शुरू कर चुके हैं। प्रैक्टिस कर रहे इन डॉक्टरों के जेहन में अभी यह बात नहीं बैठी है कि वायु प्रदूषण एक नई तंबाकू की तरह है जो न सिर्फ सांस संबंधी बीमारियों का कारण बन सकता है बल्कि दिल की बीमारियों और बच्चों में मस्तिष्क के विकास से संबंधित बीमारियों का भी खतरा पैदा कर सकता है। साथ ही इससे उनके शरीर के अन्य अंगों की प्रणालियों तथा जन्म के परिणामों पर भी असर पड़ सकता है।

हालात को सुधारने के लिए इस अध्ययन में सिफारिशें की गई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख संस्तुतियों इस प्रकार हैं :

1. स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों को इस बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों को पहचान सकें और लोगों को वायु प्रदूषण से संबंधित जानकारियां दे सकें। साथ ही वे अपने मरीजों को प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से बचने की सलाह भी दे सकें।

2. वायु प्रदूषण के सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों के लिए प्रमाण के आधार को बढ़ाना और भारतीय संदर्भ में वायु प्रदूषण के अनेक स्वास्थ्य प्रभावों पर महामारी विज्ञान के साक्ष्य बढ़ाने की जरूरत पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जा सकता.

3. भारतीयों के बीच स्वास्थ्य संबंधी परिणामों से जोड़ने के लिए पर्याप्त और सटीक वायु गुणवत्ता डाटा के साथ-साथ स्रोत आधारित और उत्सर्जन इन्वेंटरी संबंधी अध्ययन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

4. डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों के पाठ्यक्रम में प्रदूषण संबंधी पहलुओं को जोड़कर प्रदूषण के मामले में समुचित क्षमता का निर्माण किया जाना चाहिए और प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टरों के लिए निरंतर चलने वाले चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रमों से वायु प्रदूषण संबंधी जागरूकता बढ़ेगी और प्रैक्टिस में व्याप्त कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी।

5. स्वास्थ्य पर केंद्रित सोच वाले नीति निर्माण के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में एक एकीकृत और सशक्त आवाज तैयार करनी होगी, जो वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर मजबूती से अपनी बात रख सके।

Edited By: Samridh Jharkhand

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