2035 तक रोजाना 100 कोयला कामगारों की नौकरी जाने का संकट : GEM रिपोर्ट

2035 तक रोजाना 100 कोयला कामगारों की नौकरी जाने का संकट : GEM रिपोर्ट

2035 तक और फिर 2050 तक कोयला उद्योग बड़े बदलाव से गुजरेगा। एनर्जी ट्रांजिशन की प्रक्रिया के दौरान कोयला खदानों के बंद होने से भारत में बड़ी संख्या में इस उद्योग में नौकरियों का संकट उत्पन्न हो सकता है। कोयला खदानें बंद होने की योजनाओं और बाजार में सस्ती सौर तथा पवन ऊर्जा को हाथोंहाथ लिए जाने की वजह से कोयला खदानकर्मियों को निकट भविष्य में अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ सकता है। चाहे उनके देश में कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की कोई योजना लागू की गई हो या नहीं। ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2035 तक रोजाना औसतन 100 कामगार अपनी नौकरी खत्म होने की आशंका से जूझ रहे हैं।

ग्लोबल कोल माइन ट्रैकर के डेटा से हमें दुनिया में 4300 सक्रिय और प्रस्तावित कोयला खदानों तथा परियोजनाओं में व्याप्त रोजगार के अवसरों के बारे में अपनी तरह का पहला जायजा मिलता है। यह खदानें दुनिया में होने वाले कुल कोयला उत्पादन में 90% से ज्यादा का योगदान करती हैं।

कोयला खदानों में कितने लोगों के रोजगार खत्म होंगे, इसका अनुमान लगाने के लिए ग्लोबल कोल माइन ट्रैकर ने ‘लाइफ आफ माइन’ अभियान के तहत जानकारी दर्ज की है। इसके तहत यह जानने की कोशिश की गई कि कोयला कंपनियां मौजूदा लीज, परमिट, उपलब्ध संचय तथा अन्य आर्थिक सरोकारों के आधार पर कितने लंबे समय तक किसी खदान से कोयला निकालने की इच्छुक हैं।

डाटा सेट से यह पता चलता है कि करीब 2.7 मिलियन कोयला खदानकर्मी इस वक्त दुनिया में संचालित हो रही खदानों में प्रत्यक्ष रूप से रोजगार पाते हैं। यह भी मालूम हुआ है कि कोयला उद्योग वर्ष 2035 तक करीब आधा मिलियन खदान कामगारों की छंटनी कर देगा। इससे रोजाना औसतन 100 श्रमिकों पर असर पड़ेगा। यह स्थिति व्यापक सामाजिक और आर्थिक संघर्ष को रोकने के लिए फौरन कार्रवाई करने की जरूरत को रेखांकित करती है। दूरदराज के कोयला उत्पादन क्षेत्रों में कोयला खनन की नौकरियों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इन इलाकों में वे श्रमिक आर्थिक गतिविधियों के अहम चालक होते हैं और वह स्थानीय उपभोक्ता और अर्थव्यवस्था में सहायक श्रम शक्ति और रोजगार को बनाए रखते हैं।

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इन खदान श्रमिकों की बहुत बड़ी संख्या (2.2 मिलियन रोजगार) एशिया में है। कोयला खदानों के बंद होने का सबसे बड़ा असर चीन और भारत पर पड़ने की आशंका है। चीन में 1.5 मिलियन से ज्यादा कोयला खननकर्मी हैं जो उसके कुल उत्पादन के 85% से ज्यादा हिस्से का खनन करते हैं। यह पूरी दुनिया में उत्पादित कोयले का आधा हिस्सा है। चीन के उत्तरी प्रांत शांझी, हेनान और इनर मंगोलिया दुनिया में उत्पादित होने वाले कुल कोयले के एक चौथाई से ज्यादा हिस्से का उत्पादन करते हैं और वह वैश्विक स्तर पर खनन श्रमशक्ति के 32% हिस्से (लगभग 870400 कामगार) को रोजगार देते हैं।

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बात भारत की

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भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है, जहां चीन के शांझी प्रांत में काम कर रहे कोयला खदान कर्मियों की कुल संख्या के लगभग आधे हिस्से के बराबर श्रमिक काम करते हैं। कोल इंडिया आधिकारिक रूप से अपनी कोयला खदानों में लगभग 3,37,400 लोगों को रोजगार दे रही है। हालांकि कुछ अध्ययनों के मुताबिक स्थानीय खनन सेक्टर में हर प्रत्यक्ष कर्मचारी के लिए अनौपचारिक रूप से चार कर्मचारी काम कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि भारत जैसे देश, जिसे कोयला उत्‍पादन के चरम वाले वर्ष के बारे में कोई निर्णय लेना अभी बाकी है और जो अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अपना कोयला उत्‍पादन बढ़ा रहा है, उसे अपने कामगारों को खदानें बंद होने का झटका सहन करने में सक्षम बनाने और उन्‍हें कहीं और रोजगार देने के लिये एनर्जी ट्रांज़िशन नीतियों पर आगे बढ़ने की जरूरत होगी।

हालांकि भारत जैसे देशों के लिए एक मददगार स्थिति यह है कि यहां रिन्यूबल एनर्जी उद्योग हर साल रोजगार के नए अवसर जोड़ रहा है। सितंबर 2023 के अंत में जारी की गई आईआरईएनए की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में भारत में रिन्यूबल एनेर्जी क्षेत्र में रोजगार के करीब 988000 अवसर उत्पन्न हुए। इनमें से केवल वित्त वर्ष 2022 में ही भारत के रिन्यूबल एनर्जी उद्योग ने रोजगार के करीब 105400 अवसर जोड़े। भारत रिन्यूबल एनर्जी क्षमता की स्थापना की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसे में रिन्यूबल एनर्जी (स्थापना, संचालन और रखरखाव) के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में और बढ़ोत्तरी होने जा रही है। हालांकि कोई जरूरी नहीं है कि जिन स्थानों पर कोयला खदानों में काम करने वाले लोगों के रोजगार छूट जाएंगे उन सभी को रिन्यूबल एनेर्जी क्षेत्र के नए रोजगार मिल जाएंगे, लिहाजा व्यापक एनर्जी ट्रांज़िशन नीतियों की सख्त जरूरत है। हालांकि कुछ अध्ययनों में यह भी दावा किया गया है कि स्थानीय खनन सेक्टर में हर प्रत्यक्ष कर्मचारी के लिए अनौपचारिक रूप से चार कर्मचारी काम कर रहे हैं।

सरकारी स्वामित्व वाली ‘कोल इंडिया’ दुनिया की ऐसी कोयला उत्पादक कंपनी है जो वर्ष 2050 तक 73800 प्रत्यक्ष श्रमिकों की सबसे बड़ी छंटनी कर सकती है। इससे यह बात स्पष्ट रूप से रेखांकित होती है कि सरकारों को कोयला श्रमिकों को इस रूपांतरण को अपनाने की योजनाओं में खुद को अनिवार्य रूप से शामिल रखना होगा।

कोयला क्षेत्र के अप्रत्याशित भविष्य की जिम्मेदारी भी कोयला उद्योग क्षेत्र के कंधों पर है। जीईएम ने पाया है कि आने वाले दशकों में बंद होने जा रही ज्यादातर खदानों में उनके परिचालन की समयसीमा को बढ़ाने या कोयले का प्रयोग बंद करने के बाद की अर्थव्यवस्था में रूपांतरण का इंतजाम करने की कोई योजना नहीं है।

विशेषज्ञों की राय

स्वाीति के डायरेक्टर और जस्ट ट्रांजिशन एक्सपर्ट संदीप पई का कहना है, ऊर्जा संक्रमण के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों को समझने के लिए इस प्रकार का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से, डेटा का यह स्तर दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन श्रमिकों के लिए उचित संक्रमण नीतियों को आकार देने में एक लंबा रास्ता तय करेगा। उदाहरण के लिए, इस प्रकार की बेसलाइन डेटा जीवाश्म ईंधन उद्योग में श्रमिकों को स्थानांतरित करने के लिए आवश्यक रोजगार सृजन के पैमाने का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है।

भारतीय प्रबंधन संस्थान में प्रोफेसर, रूना सरकार कहती हैं, “कोयले के इर्द-गिर्द एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था बनाने के लिए काफी काम किया जा रहा है, जिससे यह जाहिर होता है कि एक कोयला खनन टाउनशिप जल्द ही कोयले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। आखिरकार हर किसी को यह ध्यान रखना चाहिए कि कोयले के मामले में समृद्ध क्षेत्र उनमें से नहीं है जहां सूरज चमकता है या प्रचुर मात्रा में हवा बहती है। इससे खदान बंद होने के परिणाम स्वरुप क्षेत्रीय असंतुलन के बढ़ने का संकेत मिलता है। इसके लिए एनर्जी ट्रांज़िशन के इर्द-गिर्द ज्यादा व्यापक चर्चा की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह क्षेत्रीय रूप से संतुलित सतत और न्यायपूर्ण हो।

रूना सरकार का कहना है कि कोयला खदानें बंद होने से भारत में सबसे अधिक प्रभावित पश्चिम बंगाल के कोयला खनन क्षेत्र हैं। खदानें बंद होने से भारत अगले दो दशकों में 60 हजार से अधिक खदान श्रमिकों का रोजगार जा सकता है कोल इंडिया में 2050 तक 73 हजार 800 नौकरियाँ खतरे में हैं।

ग्लोबल कोल माइन ट्रैकर के प्रोजेक्ट मैनेजर ने दोरोथी मेई ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कोयला खदानों का बंद होना लाजमी है लेकिन उनसे जुड़े हुए कामगारों के लिए रोजी-रोटी का संकट और सामाजिक तनाव उनकी तकदीर का हिस्सा ना बने, ऐसा करना भी मुमकिन है। उनके लिए रूपांतरण की लागू की जा सकने योग्य योजनाएं अमल में लाई जा रही हैं। मिसाल के तौर पर स्पेन में डीकार्बनाइजेशन के हो रहे प्रभावों की नियमित रूप से समीक्षा होती रहती है। अन्य देशों की सरकारों को अपनी न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन संबंधी रणनीतियां तैयार करते वक्त स्पेन की इस कामयाबी से प्रेरणा लेनी चाहिए।”

आगे, कोल प्रोग्राम डायरेक्टर रायन ड्रिस्कल टेट का कहना है, “जस्ट ट्रांजिशन महज लफ्फाजी साबित ना हो, यह सुनिश्चित करने के लिए हमें कामगारों को अपने एजेंडा में सबसे ऊपर रखना होगा। बाजार और प्रौद्योगिकियां जाहिर तौर पर एनेर्जी ट्रांज़िशन को तरजीह दे रही हैं लेकिन हमें कोयला खननकर्मियों और उनके समुदायों की विकट चिंताओं का हल निकालने के बारे में भी मुस्तैदी दिखानी होगी।”

शोधकर्ता टिफनी मींस का मानना है, “कोयला उद्योग के पास ऐसी खदानों की एक लंबी फेहरिस्त है जो निकट भविष्य में बंद कर दी जाएंगी। इनमें से अनेक कोयला खदानें सरकार के स्वामित्व वाली हैं और उनसे सरकार का बड़ा सरोकार भी है। सरकारों को स्वच्छ ऊर्जा वाली अर्थव्यवस्था में रूपांतरण से प्रभावित होने वाले कामगारों और उनके समुदायों के लिए एक प्रबंधित रूपांतरण सुनिश्चित करने की अपने हिस्से की जिम्मेदारी को ईमानदारी से उठाने की जरूरत है।”

Edited By: Samridh Jharkhand

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