झारखंड: दुमका के डुमरथर विद्यालय के प्रिंसिपल डॉ सपन को उपसभापति हरिवंश ने दी बधाई

झारखंड: दुमका के डुमरथर विद्यालय के प्रिंसिपल डॉ सपन को उपसभापति हरिवंश ने दी बधाई

दुमका: राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने झारखंड के दुमका जिला के डुमरथर विद्यालय के प्रिंसिपल डॉ सपन कुमार को फोन करके उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए बधाई दी है। उन्होंने झारखंड आने पर डुमरथर गांव आने की इच्छा जाहिर की। हरिवंश ने कहा कि असल शिक्षा यही है। जिस प्रकार से कठिनाइयों में इतना बेहतर काम, सुंदर तथा कल्पना शील काम डॉ सपन ने किया है, वह काबिले तारीफ है।

उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया लल्लन टॉप पर उन्होंने परिवार के साथ प्रिंसिपल डॉ सपन कुमार के नवाचार को विस्तार से देखा तथा उनके मन में सपन से बात करने एवं बधाई देने की इच्छा जाहिर हुई। उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छा कार्य है। ऐसा ही काम देश और समाज को आगे ले जाता है। असल शिक्षा यही है। उन्होंने सपन को दिल्ली आने का निमंत्रण भी दिया।

डॉ सपन ने कहा कि उनकी इच्छा है कि दुनिया के सभी गरीब लोग जिनके पास स्मार्ट मोबाइल नहीं है अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैक बोर्ड मॉडल अपना सकते है। हरिवंश ने इस कार्य की प्रशंसा करते हुए दिल्ली में भी अपने सहयोगी से चर्चा करने की बात की।

उल्लेखनीय है कि झारखंड प्रदेश के दुमका जिला के आदिवासी बहुल गांव डुमरथर में प्रिंसिपल डॉ सपन कुमार ने कोविड काल में लॉकडाउन के कारण जब सबकुछ बंद हो गया। स्कूल भी बंद हो गया तो सपन ने समुदाय के सहयोग से सभी विद्यार्थियों के लिए ब्लैकबोर्ड का निर्माण गांव में बच्चों के घर के दीवारों पर कर दिया।

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पढ़ने के लिए दीवारों पर ही हिंदी, गणित, अंग्रेजी के चित्रो के साथ जरूरी पाठों को भी लिख डाला है। इस नवाचार की सराहना देश के प्रधानमंत्री, झारखंड के मुख्यमंत्री, नीति आयोग, दुमका के उपायुक्त, शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों के साथ देश के दर्जनों प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने की है।

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प्रिंसिपल डॉ सपन कुमार ने कहा कि सभी के सहयोग से गांव में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। सुदूर डुमरथर गांव के बच्चे फर्स्ट जेनरेशन लर्नर हैं, यदि बच्चे नहीं पढ़ते तो बाल मजदूर बन सकते थे, बेटियों की कम उम्र में शादी हो सकती थी, स्कूल में ड्राप आउट बच्चो की संख्या बढ़ सकती थी।

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इन सभी बातों को ध्यान में रखकर सपन ने ब्लैकबोर्ड आइडिया की ईजाद 2020 में ही किया। इस आइडिया से विद्यार्थी लगातार अपने घर के द्वार पर ही कॉविड के नियमों का पालन करते हुए आज भी पढ़ाई कर रहे हैं। ग्रामीणों के सहयोग से गांव में मौजूद संसाधनों से बच्चो का कौशल विकास करने के साथ जरूरी सभी चीजों को ग्रामीणों और बच्चो को बनाने भी सिखाया जा रहा है। बच्चो द्वारा चॉक, झाड़ू, चटाई के साथ प्राकृतिक रंगों से ब्लैकबोर्ड का निर्माण किया गया है।

Edited By: Samridh Jharkhand

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