प्रीति पांडेय का आलेख पढिए : मुझे कोरोना हो गया है
क्या हुआ सुनकर धक्का लगा? मुझे भी लगा था जब मेरे एक दोस्त ने मुझे यह बताया कि उसे कोरोना हो गया है। आज जब किसी कोरोना मरीज के मिलने पर पूरे मौहल्ले भर में दहशत फ़ैल जाती है ऐसे में अपनी पहचान में किसी खास व्यक्ति को कोरोना हो जाना बहुत ही आश्चर्यजनक था। हालांकि उसे कोई बहुत ज्यादा लक्षण नहीं थे लेकिन फिर भी उसने बिना किसी लापरवाही को अपनाते हुए स्वयं किसी प्राइवेट अस्पताल जाकर कोरोना टेस्ट कराना अपनी जिम्मेदारी समझी। वह चाहता तो सभी सावधानी बरतते हुए अपने आपको आइसोलेट करके रहता और बिना टेस्ट कराय ठीक भी हो जाता क्यूंकि कोरोना का कोई इलाज नहीं है इसका इलाज केवल आराम करना और खाने पीने का ध्यान रखना ही है जिससे वह उसी तरह ठीक हो जाता जैसा कि आज ठीक हो चुका है. आजकल सभी जानते हैं कि बहुत ज्यादा परेशानी न हो तो आप घर पर ही आइसोलेट रहें और खाने पीने में क्या क्या खाएं, साथ ही विटामिन सी और प्रोटीन की दवाई जिनका कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता। लेकिन उसने सोचा कि चेकउप कराना जरुरी है ताकि मेरे से किसी और को न हो जाये।

समाज में कोरोना मरीज को देखने की एक अलग ही उत्सुकता होती है. कौन है ? कैसा है ? कैसा दिख रहा है ? उसे एम्बुलेंस में लेकर अस्पताल ले जायेंगे और नहीं ले गए तो क्यों नहीं ले गए और ना जाने क्या-क्या। सरकार ने बहुत प्रचार कर लोगों को बताया और समझाया भी कि बीमारी से लड़ें, बीमार से भेदभाव ना करें। लेकिन इसे मानता कौन है। आस-पास के लोगों का उसके घर के प्रत्येक सदस्य को न केवल देखने का नजरिया बदल गया बल्कि आस-पास के दुकानदारों ने भी उसके घर के किसी भी व्यक्ति को सामान देने से इंकार कर दिया।
आखिर कोरोना को लेकर मीडिया और सरकार ने इतनी नेगेटिविटी क्यों फैला दी है ? लोगों को यह क्यों नहीं समझाया गया कि किसी को कोरोना हो जाने से वह व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार करने योग्य नहीं हो जाता। उसे देखने या उसके घरवालों को सामान देने से आपको कोरोना नहीं होगा। जबकि वह व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ उसी घर में रह रहा है तो क्या उसे अपने परिवार की चिंता नहीं है? जिस समय किसी मरीज को परिवार और लोगों के अच्छे व्यवहार की सबसे ज्यादा जरुरत होती है ताकि उस व्यक्ति के अंदर सकारात्मकता आए और वह जल्द से जल्द अपनी बीमारी से लड़ सके ऐसे में समाज के लोगों का ऐसा रवैया क्या ठीक है ?
सरकार को इस पर काम करने के सख्त जरुरत है। लोगों को बताने की जरुरत है कि कल को आपके घर परिवार में किसी को भी यह हो सकता है इसलिए बजाय आप इस बात से घबराये बल्कि उस व्यक्ति का हौसला बढ़ाएं। कोरोना संक्रमित व्यक्ति कोई हॉलीवुड मूवी का जोम्बी नहीं होता जिसके कोई सींग निकल जाते हो या दांत बाहर आ जाते हो। वह हमारी तरह ही एक आम इंसान है और कल भी हमारी तरह ही रहेगा। कोरोना केवल एक बीमारी ही है जिसका इलाज वैसे तो कोई नहीं लेकिन फिर भी बहुत आसान है कि आप अपने आपको कुछ समय के लिए सभी से शारीरिक रूप से अलग कर लें और अपने खाने पीने का पूरा ध्यान रखें। यहाँ उस व्यक्ति को समाज से कटना है ताकि स्वयं उसे व आस -पास के लोगो को कोई परेशानी न हो। यह कटाव शारीरिक होना चाहिए मानसिक नहीं। सोशल डिस्टेंसिंग करना है लेकिन मन से दूरी न बनायें।
देखा जाय तो इसमें लोगों की कोई गलती भी नहीं है कोरोना को ऐसी बीमारी ही दिखाया है कि एक व्यक्ति को हुआ तो पूरा दलबल उस व्यक्ति को लेने घर पहुँच जाता है यही नहीं पूरी सोसाइटी को सील तक कर दिया जाता है। यही वजह है कि हम में से कितने लोगों को हलके फुल्के लक्षण आते भी हैं तो हम कोरोना का टेस्ट नहीं करवाना चाहते क्यूंकि बीमारी से तो लड़ भी लें लेकिन समाज के ऐसे रवैये से लड़ने की ताकत कहाँ से लाए , इतना आसान नहीं होता लोगों के ऐसे रवैये को सहना।
यहाँ सरकार की भी कमी है। जबकि सरकार को पता है कि देश में कोरोना मरीजों के साथ इस तरह का घृणात्मक व्यवहार किया जाता है तो सरकार को न केवल उनकी पहचान गुप्त रखनी चाहिए बल्कि उनके घर पर भी पोस्टर नहीं लगाया जाना चाहिए। आप गुप्त रूप से उस व्यक्ति को कोरन्टाइन करने का कड़ा आदेश दे सकते हैं। ऐसा करने से बीमार व्यक्ति को केवल अपनी बीमारी से ही लड़ना होगा। सरकार उसे कम से कम पड़ोसियों के बुरे व्यवहार से होने वाले आघात से तो बचा सकती है।
सरकार अब जबकि समझ चुकी है कि आप अच्छी इम्युनिटी पर काम करके व तनावमुक्त रहकर न केवल कोरोना को होने से रोक सकते हैं बल्कि होने पर भी उससे आसानी से ठीक हो सकते हैं तो सरकार व् मीडिया को इस बात पर ज्यादा जोर देना चाहिए बजाय लोगों के अंदर खौंफ और डर का इंजेक्शन लगाने के। जो मौहोल पैदा किया जा रहा है वह किसी बीमार को अंदर से तोड़ने का काम कर रहा है सरकार को तुरंत इस बारे में सोचने की जरूरत है।
कोरोना जो की केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में एक भयंकर महामारी के रूप में जानी जाती है। उस लिहाज से किसी को भी इस बिमारी का होना एक चिंताजनक विषय है ही। लेकिन सवाल यह उठता है कि मान लीजिये अगर आपको या मुझे यह हो भी जाय तो क्या हमारे साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए ? जैसे उसे पता नहीं चला कि वह कब और किस चीज से संक्रमित हुआ वैसे आपको भी पता नहीं चलेगा और देश में जिस तरह से कोरोना का संक्रमण तेजी से फ़ैल रहा है उसे देख कर यही कहा जा सकता है कि कोरोना सभी को होना ही है, हो सकता है आपको कोरोना हुआ भी हो और आप ठीक भी हो चुके हों इसलिए किसी और से नफरत करने से पहले खुद से नफरत करने की आदत डाल लीजिये। आज आप जिन्हें नफरत भरी नज़रों से देख रहे हैं और जिनके साथ भेदभाव कर रहे हैं कल उनकी बारी भी आ सकती है।
