जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप के मॉडल पर सवाल, भारत इसके लिए समान शर्ताें का है पक्षधर

जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप के मॉडल पर सवाल, भारत इसके लिए समान शर्ताें का है पक्षधर

भारत में कोयला खदानों की कम समय तक कार्यशीलता के कारण डिकमिशनिंग का बढ जाता है खर्च

 

तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2040 तक कोयला का वैश्विक उपयोग बंद करना व कोयला बिजली संयंत्रों की संचालन अवधि को कम करना जरूरी

रांची : अगले सप्ताह शर्म अल-शेख में शुरू होने वाले जलवायु सम्मेलन सीओपी27 में तमाम जलवायु वार्ताओं व करार के बीच विकासशील देशों में जस्ट ट्रांजिशन प्रक्रिया को आगे बढाने की प्रक्रिया पर भी नजर रहेगी। पिछले साल ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 में दक्षिण अफ्रीका जस्ट ट्रांजिशन प्रक्रिया के लिए सहमत हो गया। लेकिन, भारत जैसे बड़ी आबादी वाले विकासशील देश के लिए इसे मौजूदा शर्तों पर अपनाना बहुत आसान नहीं है। खासकर तब जब यहां की कोयला खदानों की आयु कम है और प्रति व्यक्ति उत्सर्जन काफी कम।

फ्रांस, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की पहल जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनशिप (JETP) के तहत दक्षिण अफ्रीका को नेशनल क्लाइमेट प्लान के लिए तीन से पांच वर्षाें में 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की जाएगी। जेइटीपी का उद्देश्य बिजली के लिए दक्षिण अफ्रीका की कोयले पर निर्भरता को कम कर उसे नवीनीकृत ऊर्जा की ओर ले जाना है। यह जलवायु प्रगति के लिए नए मॉडल के निर्माण की पहल है। जून 2022 में जी – 7 ने यह घोषणा की कि वह भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल और वियतनाम के साथ जेइटीपी पर बात कर रहा है। इससे पहले फरवरी 2022 में यूरोपीय-यूनियन अफ्रीकी यूनियन सम्मिट 2022 में मिस्त्र, आइवरी कोस्ट, केन्या और मोरक्को के लिए जेइटीपी विकसित करने के लिए पायलट परियोजनाओं की घोषणा की गई थी। जीरो कार्बन एनालिटिक के एक विश्लेषण में कहा गया है कि इस मॉडल को दूसरे देशों के लिए जल्दबाजी में दोहराया गया है, जबकि सौदे की पारदर्शिता, परामर्श और वित्तपोषण मॉडल को लेकर गंभीर प्रश्न बने हुए हैं। ऐसे ही प्रश्नों की वजह से भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश जहां का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दुनिया में सबसे कम है, उसके लिए यह सहज स्वीकार्य नहीं है।

भारत जैसे देश में जहां कोयला खदानों की आयु दुनिया के कई देशों की तुलना में कहीं छोटी हैं, वहां इनके डिकमिशनिंग (काम बंद करना व उसे बंद किया जाना) का संभावित खर्च बढ जाता है। भारत में एक कोयला खदान जहां औसतन 13 वर्ष तक क्रियाशील रहती है, वहीं दक्षिण अफ्रीका में वह 30 साल तक काम करती है। जीरो कार्बन एलालिटिक्स के इसी महीने आयी रिस्क एंड रिवार्डस ऑफ जस्ट ट्रांजिशन पार्टनरशिप (Risks & rewards of Just Energy Transition Partnerships) नामक विश्लेषण में दक्षिण अफ्रीका, भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया व सेनेगल में जस्ट ट्रांजिशन की संभावनाओं का विश्लेषण किया गया है। इसके लिए पार्टनरशिप, वित्त, रोजगार के लिए लोगों की निर्भरता, जीवाष्म ईंधन की बिजली उत्पादन में हिस्सेदारी और नई पहल के परिप्रेक्ष्य में स्थिति का आकलन किया गया है।

इस विश्लेषण में कहा गया है कि पेरिस में अमीर देशों के 100 बिलियन डॉलर प्रतिबद्धता में विफल रहने के बाद अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं मे क्लाइमेट फाइनेंस या जलवायु वित्त एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। जी-7 देश ग्लोबल साउथ देशों में ऊर्जा अवसंरचना परियोजनाओं के लिए एकमात्र संभावित दाता नहीं हैं, रूस और चीन भी परियोजना वित्तपोषण प्रदान करते हैं। अगर जी-7 देशों ग्लोबल साउथ देशों को वित्त प्रदाता के रूप में अपनी स्थिति और प्रभाव को बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें वित्त प्रदान करना चाहिए और इस तरह से करना चाहिए जो प्राप्तकर्ता देशों की जरूरतों को पूरा करता हो।

इस विश्लेषण में वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए 2030 तक अमीर देशों और 2040 तक अन्य देशों द्वारा कोयले का उपयोग खत्म करने के साथ कोयला पॉवर प्लांट को फेज आउट करना जरूरी बताया गया है। विश्लेषण में कहा गया है कि कोयला बिजली संयंत्रों की आयु 46 साल होती है लेकिन डेढ डिग्री तापमान वृद्धि लक्ष्य के लिए इसकी ऑपरेशनल समय सीमा 15 वर्ष तक कम किया जाना जरूरी है।

इस विश्लेषण में कहा गया है कि भारत में 1.3 करोड़ से दो करोड़ के बीच लोग कोयला खनन या कोयला आधारित उद्योग पर निर्भर हैं। भारत चीन के बाद दुनिया में कोयला का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता हैं। भारत दुनिया में कार्बन का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक हैं, लेकिन यहां प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दुनिया में सबसे कम है। भारत को जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन प्रक्रिया को आगे बढाने के लिए 2022 से 2030 के बीच 160 बिलियन यूएस डॉलर की जरूरत होगी। भारत की एनर्जी के लिए कोयले पर फिलहाल 70 प्रतिशत निर्भरता है।

हालांकि भारत कार्बन उत्सर्जन को कम करने व स्वच्छ ऊर्जा की हिस्सेदारी बढाने के लिए कई स्तरों पर पहल व प्रयास कर रहा है। भारत सरकार ने 2021 से 2024 के बीच 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर गैस में निवेश करने की योजना बनायी है, ताकि वर्ष 2030 तक ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत के रूप में भारत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 6.2 प्रतिशत से बढ कर 15 प्रतिशत हो जाए।

जीरो कार्बन एनालिटिक के विश्लेषण में कहा गया है कि भारत ने अबतक कोल फेज आउट की तारीख तय नहीं की है और उसने सीओपी26 में ग्लोबल कोल एंड क्लीन पॉवर स्टेटमेंट को भी ज्वाइन नहीं किया था। भारत के बिजली मंत्रालय ने जी7 देशों के जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप के लिए बातचीत शुरू करने की पहल का विरोध किया है और कहा है कि कोयला एकमात्र प्रदूषक नहीं है। जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप जस्ट ट्रांजिशन के लिए चिह्नित किए गए विकासशील देशों को विभिन्न प्रकार की फंडिंग उपलब्ध करवाता है। बिजली मंत्रालय ने जेइटीपी पर बातचीत के लिए सहमति से इनकार कर दिया। भारत एनर्जी ट्रांजिशन पर बातचीत के लिए समान शर्तों का पक्षधर हैं।

Edited By: Samridh Jharkhand

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