क्या बीजेपी के पास आदिवासी चेहरे की कमी है?
ज्योति चौहान

बहुमत से 2014 में सरकार बनाने वाली बीजेपी के पास आज खुद के 25 विधायक हैं। उनमें नीलकंठ सिंह मुंडा, अमर कुमार बाउरी जैसे एसटी व एससी चेहरे भी हैं। बीजेपी में कई प्रभावी नेता हैं, फिर भी आलाकमान एक ऐसे शख़्स को मनाने में लगा है जिसने 14 सालों तक बीजेपी के ख़िलाफ़ बिगुल फूंकी।
राज्य के पहले मुख्यमंत्री, बाबूलाल मरांडी भाजपा से ही थे। चौदह साल के वनवास के बाद एक बार फिर उन्हें बीजेपी में आने का अवसर मिल रहा है। उन्होंने सबसे विश्वासी बंधु तिर्की और प्रदीप यादय को पहले अपनी पार्टी से निष्कासित किया। अब विलय के प्रस्ताव पर मुहर लगने वाली है। बाबूलाल मरांडी ने अपनी प्लानिंग के तहत पूरा काम किया। विधानसभा चुनाव 2019 ने बीजेपी और आजसू को एक-दूसरे से अलग कर दिया। वहीं, कमजोर चुनाव परिणाम ने झारखंड विकास मोर्चा के लिए विलय की जमीन तैयार कर दी।
पर, एक बड़ा सवाल है कि राजनीतिक कार्यकर्ता तैयार करने की नर्सरी भाजपा के पास अब अपने मौजूदा नेताओं के बीच से एक आदिवासी चेहरा नहीं है जो नेतृत्व कर सके और नेता प्रतिपक्ष पद की जिम्मेदारी भी संभाल सके?
