कोरोना संक्रमण के बढते आंकड़े के साथ प्रवासी श्रमिकों व छात्रों पर कैसे बदली हेमंत सरकार नीति?

कोरोना संक्रमण के बढते आंकड़े के साथ प्रवासी श्रमिकों व छात्रों पर कैसे बदली हेमंत सरकार नीति?

राहुल सिंह

झारखंड में कोरोना संक्रमण के अबतक 103 मामले सामने आ चुके हैं. राज्य में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 31 मार्च को आया जब रांची के हिंदपीढी इलाके में एक मलेशियाई महिला को राज्य के पहले कोरोना संक्रमित के रूप में जांच के बाद कोरोना पाॅजिटिव के रूप में चिह्नित किया गया. इसके बाद अगले 12 दिन में राज्य में और 18 नए केस आए और इसके अगले 15 दिन में 85 नए केस आए और संक्रमितों की संख्या 103 पहुंच गयी.

झारखंड में पहले चरण में यानी 12-13 अप्रैल तक कोरोना संक्रमण के जो मामले मिले हैं, उसे मुख्यतः दो अलग-अलग हिस्सों में बांट कर देखा जा सकता है, एक तो ऐसे लोग जो दिल्ली के निजामुद्दीन के मरकज से या फिर ढाका के मरकज से शामिल होकर लौटे और उनसे उनके आसपास के लोगों में संक्रमण फैला और दूसरे वे लोग जो प्रवासी श्रमिक हैं जो राज्य के बाहर महानगर में या प्रमुख व्यापारिक ठिकानों पर नौकरी करते थे और वहां से लाॅकडाउन के ठीक पहले या उसके बाद जब अपने घर लौटे तो सप्ताह-पखवाड़े भर बाद कोरोना संक्रमित के रूप में चिह्नित किए गए.

फिर दूसरे चरण में यानी 12-13 अप्रैल के बाद से 27 अप्रैल तक जो मामले मिले वे राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित थे, जिनमें संताल परगना, पलामू जैसे क्षेत्र भी शामिल हो गए. इस दौरान सर्वाधिक मामले में रांची में मिले. रांची में अकेले 75 केस हो गए. रांची शहर के विभिन्न हिस्सों में कोरोना संक्रमण फैल गया और जो कोरोना वारियर्स हैं, उनमें भी कई संक्रमित हो गए. जैसे रांची के सदर अस्प्ताल की चार नर्सें संक्रमित हो गयीं, एक एएसआइ व एक ऐंबुलेंस ड्राइवर संक्रमित हो गए. संक्रमण का यह चरण अधिक खतरनाक है, जब कोरोना को लेकर ड्यूटी पर तैनात लोग इससे संक्रमित हो गए. रांची के गुरुनानक स्कूल जहां कोरोना कंट्रोल रूम बनाया गया है, वहां एक श्रमिक कोरोना संक्रमित पाया गया. वह ओडिशा से बिहार के गया रांची होते हुए जा रहा था, इसी दौरान उसे पकड़ कर क्वरंटाइन किया गया. लेकिन, इसी दौरान उसे कंट्रोल रूम में दूसरे काम में लगा दिया गया और उससे मजदूरी करायी जाने लगी. इसे संबंधित लोगों द्वारा किया गया खतरनाक किस्म की लापरवाही माना जा सकता है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने एक अखबार से कहा है कि चूक हुई और अब सावधानी बरती जाएगी.

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प्रवासी श्रमिकों में संक्रमण के शुरुआती मामले

राज्य में हजारीबाग जिले के विष्णुगढ प्रखंड में कोरोना संक्रमित के रूप में पहले प्रवासी श्रमिक को चिह्नित किया गया था. वह शख्स पश्चिम बंगाल के आसनसोल में एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में मजदूरी करता था और लाॅकडाउन के बाद ट्रक व लिफ्ट लेते हुए घर तक पहुंचा और अपने बेटे की बाइक से गांव तक पहुंचा. दो अप्रैल को उसे कोरोना पाॅजिटिव के रूप में चिह्नित किया गया.

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उसके बाद कोडरमा में 22 साल का एक शख्स कोरोना पाॅजिटिव मिला जो मुंबई में दर्जी का काम करता था और जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले यानी 21 मार्च को कुर्ला-मुंबई हटिया एक्सप्रेस की जनरल बोगी से अपने एक भाई व बहनोई के साथ झारखंड लौटा था. वह 23 को हजारीबाग रोड स्टेशन पर उतरा था. उसने दो ग्रामीण डाॅक्टरों से इलाज भी कराया था और बाद में अस्पताल में भर्ती हुआ.

फिर हजारीबाग के विष्णुगढ प्रखंड के एक गांव का 35 साल का शख्स कोरोना पाॅजिटिव मिला. वह व्यक्ति बंबई की एक कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करता था और 20 मार्च को बंबई से ट्रेन से रवाना होकर 23 मार्च को घर पहुंचा था. यानी झारखंड के अलग-अलग जिलों में बाहर से लौटे कुछ प्रवासी श्रमिकों में कोरेाना के लक्षण मिले हैं. यह प्रवासी श्रमिक घर लौटने के बाद खुले तौर पर अपने गांव.समाज के साथ रह रहे थे और तबीयत बिगड़ने के बाद ही इलाज के दायरे में आए. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पहले जहां यह कह चुके हैं कि राज्य में लाॅकडाउन के समय व उसके बाद करीब दो लाख प्रवासी श्रमिक लौटे हैं. वहीं, सरकार का खुद का आकलन है कि अगर लाॅकडाउन खुलेगा तो करीब पांच लाख श्रमिक और झारखंड लौट सकते हैं. इस वक्त अन्य प्रदेशों में ज्ञात तौर पर राज्य के नौ लाख श्रमिक फंसे हुए हैं और इनकी वास्तविक संख्या इससे अधिक भी हो सकती है.

हेमंत सोरेन की बदली नीति

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पहले यह कहते रहे कि जो श्रमिक जहां हैं, वहीं रुकें राज्य सरकार उन्हें वहीं मदद उपलब्ध कराएगी. पर, बाद में उनकी नीति बदल गयी. उन्होंने प्रवासी श्रमिकों के साथ कोटा सहित अन्य हिस्सों में फंसे झारखंड के छात्रों को लाने के लिए सक्रियता दिखायी. इसके लिए उन्होंने प्र्रधानमंत्री से विशेष आग्रह किया है और उनसे सहयोग की अपील की है. दरअसल, मुख्यमंत्री पर प्रवासी श्रमिकों, सिविल सोसाइटी व छात्रों के परिजनों के साथ जनप्रतिनिधियों का भी दबाव है. अधिकतर सांसद व विधायक अपने इलाके के बाहर फंसे लोगों की समस्याओं को सोशल मीडिया व अन्य तरीकों से सामने ला रहे हैं.

संभवतः उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ जैसे राज्यों द्वारा अपने यहां के बाहर फंसे छात्रों को लाने की पहल ने भी राज्य सरकार को नीति बदलने को प्रेरित किया. हालांकि राज्य सरकार अब भी यह कह रही है कि वह केंद्र द्वारा तय किए गए नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहती है. अतः इसके लिए केंद्र खुद व्यवस्था बनाए या नियमों में शिथिलता दे.

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में सीएम हेमंत सोरेन ने यह सवाल उठाया कि आखिर कुछ राज्य कैसे अपने यहां के बाहर फंसे लोगों को वापस ला रहे हैं और उनके द्वारा नियमों के उल्लंघन पर केंद्र क्यों मौन है. मुख्यमंत्री ने पूछा है कि आखिर केंद्र सरकार कौन-सा खेल खेल रही है.

राज्य सरकार ने स्पष्ट कहा है कि वह अपने बूते श्रमिकों को बाहर से लाने में सक्षम नहीं है और न ही हम नियम तोड़ कर काम करना चाहते हैं. राज्य ने इसके लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाने की मांग की है.

राज्य ने ऐसा कह कर एक तरह से प्रवासी श्रमिकों की परेशानियों के लिए केंद्र को भी जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया है. राज्य सरकार इस मामले में व्यापक आलोचनाओं से बचना चाहती है. झारखंड में इन दिनों सोशल मीडिया पर सबसे अधिक गरम प्रवासी श्रमिकों का ही सवाल है.

Edited By: Samridh Jharkhand

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