फातिमा शेख : हिंदुस्तान में सावित्रीबाई फुले के साथ नारी शिक्षा की ज्योत जलाने वाली शख्स
डॉ. मोहम्मद ज़ाकिर
असिटेंट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, रांची विश्वविद्यालय
192 साल पहले आज ही के दिन 19 जनवरी 1831 को पुणे के एक मुस्लिम परिवार में फातिमा शेख का जन्म हुआ था. आगे चलकर वह देश की पहली मुस्लिम शिक्षिका बनीं. बहुजन समाज जब भी समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले को याद करता है, फातिमा शेख का नाम स्वतः आता है. सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख सखी थीं. दोनों में सावित्रीबाई फुले मात्र 6 दिन बड़ी थीं.
अछूत और पर्दा प्रथा के कारण दलित और मुस्लिम लड़कियों को स्कूल में पढ़ने की इजाजत नहीं थी. उसके बावजूद फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने अपनी बहन को पढ़ने भेजा. फातिमा शेख अपने इलाके की एकलौती लड़की थी, जिसने स्कूल जाना शुरू किया था.
उधर समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले लड़कियों को शिक्षित करने का प्रयास कर रहे थे. उन्हें कट्टरपंथियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था. समाज में हो रहे विरोध के कारण ज्योतिबा फुले के पिता गोविंदराव ने दोनों को घर से निकल दिया. उस्मान शेख और ज्योतिबा फुले दोस्त थे. उस समय उस्मान शेख ने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले दोनों को अपने घर में रहने दिया. 1848 में उस्मान शेख के घर में ही स्कूल की स्थापना हुई, जिसका नाम स्वदेशी पुस्तकालय रखा गया. किसी हिन्दुस्तानी द्वारा खोला गया पहला गर्ल्स स्कूल था.
उस ज़माने में लड़कियों के लिए स्कूल स्थापित करना बड़े साहस का काम था. फातिमा शेख फुले दंपती की सहयोगी बनी. समाज सुधारक और भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका ने सावित्रीबाई फुले के साथ लड़कियों को शिक्षित करने में हर कठिनाईयों का सामना किया. 1856 में सावित्रीबाई फुले बीमार पड़ गई. अपने पिता के घर चली गई. वहां से ज्योतिबा फुले को ख़त लिखा करती थीं. उन खतों के अनुसार फातिमा शेख ने स्कूल के प्रबंधन की जिम्मेदारी उठाई और स्कूल की प्रधानाचार्य भी बनी.
उन दिनों दलित और मुस्लिम लड़कियों को घर-घर जा कर स्कूल भेजने के लिए रूढिवादी समाज को समझाना कितना मुश्किल काम रहा होगा. भारत में आज भी मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर दूसरे समुदायों की तुलना में काफी कम है. 2011 की जनगणना के अनुसार सिर्फ 50.1% मुस्लिम महिलाएं साक्षर हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक मात्र 11.4% मुस्लिम महिलाएं 12 वर्ष की शिक्षा पूरी करती हैं. इससे स्पष्ट है कि मुस्लिम समाज लड़कियों की शिक्षा को लेकर कितना जागरूक है.
आज लोग सावित्रीबाई फुले की जयंती हर साल 3 जनवरी को मानते हैं लेकिन उनकी सहयोगी रही फातिमा शेख की यौमे पैदाइश, 9 जनवरी, को कम लोग याद करते हैं. जबकि फातिमा शेख ने दलित और मुस्लिम लड़कियों को शिक्षित करने हेतु समाज के रीति-रिवाजों के बंधन को तोड़ा, संघर्ष की, लम्बी लड़ाई लड़ीं और अपना पूरा जीवन लड़कियों शिक्षा की प्राचर-प्रसार में लगा दी. उनकी इस मिशन से प्रेरणा लेनी चाहिए. खासकर मुस्लिम समाज जहाँ आधी लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं. हिजाब-पर्दा विवादों में उलझने के बजाये मुस्लिम लड़कियों को शिक्षित करने के लिए मुस्लिम समाज को आगे आना चाहिए. तभी मुस्लिम समाज देश के मुख्य धारा जुड़ सकेगा.