अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने बताया, भारत कैसे हासिल करेगा अपनी एनर्जी इंडेपेंडेंस का लक्ष्य

अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने बताया, भारत कैसे हासिल करेगा अपनी एनर्जी इंडेपेंडेंस का लक्ष्य

साल 2047 तक भारत अपना ऊर्जा स्वतंत्रता का सपना सच कर सकता है। दरअसल, अमेरिकी ऊर्जा विभाग के लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) द्वारा जारी पाथ्वेज़ टू आत्मनिर्भर भारत नाम के एक नए अध्ययन के अनुसार भारत में सस्ती होती क्लीन एनर्जी टेक्नोलोजी और रिन्यूबल और लिथियम के क्षेत्र में तेज़ विकास के मिश्रित प्रभाव से लागत प्रभावी एनर्जी इंडिपेंडेंस का सपना हो सकता है साकार।

भारत के तीन सबसे अधिक ऊर्जा गहन क्षेत्रों (बिजली, परिवहन और उद्योग) को परखते हुए, अध्ययन ने पाया गया कि इस ऊर्जा स्वतंत्रता को प्राप्त करने से महत्वपूर्ण आर्थिक, पर्यावरण और ऊर्जा लाभ भी उत्पन्न होंगे। इन लाभों में शामिल हैं 2047 तक $2.5 ट्रिलियन की उपभोक्ता बचत, 2047 तक फॉसिल फ्यूल आयात खर्च को 90% या $240 बिलियन प्रति वर्ष कम करना, विश्व स्तर पर भारत की औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना और भारत की नेट-ज़ीरो प्रतिबद्धता को समय से पहले हासिल करना।

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और तेज आर्थिक विकास की बदौलत आने वाले दशकों में इसकी ऊर्जा मांग चौगुनी हो जाएगी। वर्तमान में, भारत को अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए खपत का 90% तेल, 80% औद्योगिक कोयला, और 40% प्राकृतिक गैस का आयात करना होता है। ऐसे में वैश्विक ऊर्जा बाजारों में मूल्य और आपूर्ति की अस्थिरता भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव डालती है, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था पर बढ़ी मुद्रास्फीति का असर होता है।

निकित अभ्यंकर, बर्कले लैब वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख लेखक, इस अध्ययन के नतीजों को समेटते हुए कहते हैं, “भारत में क्लीन एनर्जी के लिए इससे बेहतर वक़्त अब तक नहीं रहा है। भारत ने रिन्यूबल एनर्जी की दुनिया में सबसे कम कीमतों को हासिल किया है और दुनिया के कुछ सबसे बड़े लिथियम भंडार पाए हैं। यह सीधे तौर पर भारत को लागत प्रभावी ऊर्जा स्वतंत्रता की ओर ले जा सकता है और यह आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से भी लाभप्रद है।”

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अध्ययन से पता चलता है कि भारत के इस ऊर्जा स्वतंत्रता मार्ग में शामिल होगा साल 2030 तक 500 GW से अधिक गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन क्षमता स्थापित करना। सरकार ने यह लक्ष्य पहले ही घोषित किया हुआ है। इसके बाद, 2040 तक 80% क्लीन ग्रिड, और 2047 तक 90% स्वच्छ ग्रिड। वहीं साल 2035 तक लगभग 100% बिकने वाले नए वाहन इलेक्ट्रिक हो सकते हैं। साल 2047 तक भारी औद्योगिक उत्पादन भी मुख्य रूप से ग्रीन हाइड्रोजन और विद्युतीकरण पर निर्भर हो सकता है। इसमें 2047 तक 90% लोहा और स्टील, 90% सीमेंट, और 100% उर्वरक इस बदलाव से उत्पादित होंगे। नए इलेक्ट्रिक वाहनों और ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज सिस्टम के निर्माण के लिए आवश्यक (2040 तक अनुमानित 2 मिलियन टन) अधिकांश लिथियम नए खोजे गए भंडार का उपयोग करके घरेलू स्तर पर उत्पादित किया जा सकता है। इसके अलावा, भारतीय उद्योग को ईवी और ग्रीन स्टील मैन्युफैक्चरिंग जैसी स्वच्छ तकनीकों की ओर बढ्ने की उम्मीद है। भारत दुनिया के सबसे बड़े ऑटो और स्टील निर्यातकों में से एक है, यूरोपीय संघ के देशों में उनके सबसे बड़े बाजार कार्बन तटस्थता और संभावित कार्बन सीमा समायोजन शुल्क के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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रिपोर्ट के सह लेखक, अमोल फडके कहते हैं, ” भारत के ऊर्जा बुनियादी ढांचे को आने वाले दशकों में 3 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि लागत प्रभावी और स्वच्छ नई ऊर्जा को प्राथमिकता देना दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। भारत स्वच्छ ऊर्जा परिनियोजन का विस्तार करने के लिए निर्धारित मौजूदा नीतिगत ढांचे का लाभ उठा सकता है।”

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अध्ययन में पाया गया है कि भारत के पास क्लीन एनर्जी भविष्य के लिए छलांग लगाने का एक अनूठा लाभ है, क्योंकि इसके ऊर्जा बुनियादी ढांचे का बड़ा हिस्सा अभी तक निर्मित नहीं हुआ है। भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग मौजूदा जीवाश्म ऊर्जा संपत्तियों को स्वच्छ ऊर्जा में बदलने के लिए पंद्रह वर्षों का एक महत्वपूर्ण रनवे प्रदान करती है। यह परिवर्तन सबसे अधिक प्रभावित समुदायों के साथ मिलकर करने के लिए महत्वपूर्ण होगा, जिससे देश के कार्यबल के लिए एक समान परिवर्तन सुनिश्चित होगा।

इस ऊर्जा परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत समर्थन की आवश्यकता होगी, जिसमें स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के लिए तैनाती के आदेश, हरित हाइड्रोजन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए वित्तीय और नीतिगत समर्थन और घरेलू विनिर्माण क्षमता में निवेश शामिल है।

बर्कले लैब की सह-लेखिका और शोधकर्ता प्रियंका मोहंती ने कहा, ” हमने अपने अध्ययन के नतीजों में देखा है कि भारत आने वाले दशकों में एक महत्वाकांक्षी ऊर्जा परिवर्तन की शुरुआत करेगा। अच्छी बात यह है कि ट्रांज़िशन का लंबा ट्रैक स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को रणनीतिक रूप से तैनात करने और एक सही ट्रांज़िशन के लिए योजना बनाने के लिए बढ़िया समय देता है।”

साल 1931 में स्थापित लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी और इसके वैज्ञानिकों को 16 नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। आज, बर्कले लैब के शोधकर्ता न सिर्फ स्थायी ऊर्जा और पर्यावरणीय समाधान विकसित करते हैं, बल्कि उपयोगी नए मटीरियल बनाते हैं और कंप्यूटिंग की सीमाओं को आगे बढ़ाते हैं। यह लैब जीवन, पदार्थ और ब्रह्मांड के रहस्यों की जांच भी करती है। दुनिया भर के वैज्ञानिक अपनी खोज के लिए इस लैब की सुविधाओं पर निर्भर हैं। बर्कले लैब एक मल्टीप्रोग्राम राष्ट्रीय प्रयोगशाला है, जिसका प्रबंधन अमेरिकी ऊर्जा विभाग के विज्ञान कार्यालय के लिए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा किया जाता है।

इन बातों के दृष्टिगत इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत वाकई एनेर्जी इंडिपेंडेंस कि अपनी परिकल्पना समय से साकार कर लेगा।

Edited By: Samridh Jharkhand

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