मनरेगा के 17 साल : अर्थव्यवस्था को बचाने वाली इस योजना के भविष्य को लेकर आशंकाएं

मनरेगा के 17 साल : अर्थव्यवस्था को बचाने वाली इस योजना के भविष्य को लेकर आशंकाएं

जेम्स हेरेंज
संयोजक, झारखण्ड नरेगा वाच

देश में 16 करोड़ से अधिक अकुशल मजदूर परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराने वाली महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना के लागू हुए 17 साल पूरे हो गए। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह रोजगार गारन्टी योजना पूरी दुनिया के स्तर पर यह सबसे बड़ा रोजगार गारन्टी कानून है, जिसमें श्रमिकों को साल में 100 दिन काम देने की गारन्टी की गई है। वर्ष 2008 में जब पूरी दुनिया में आर्थिक सुनामी से अन्य देशों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही थी तब भारत पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा था, क्योंकि ग्रामीणों के पास मनरेगा जैसी योजना के कारण क्रय शक्ति प्रभावित नहीं हुई। ठीक यही परिदृश्य 2020-21 के लॉकडाउन के दौरान भी देखी गई, जब देश में लॉकडाउन के सारी आर्थिक गतिविधियाँ बन्द थीं, तब ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों के लिए रोजगार का एकमात्र साधन मनरेगा ही था।

झारखण्ड जैसे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य के लिए मनरेगा जैसी महत्त्वकांक्षी योजना वरदान साबित हो सकती है। आज मनरेगा में राज्य के 69.23 लाख परिवार पंजीकृत हैं जिसमें 108.81 लाख मजदूर शामिल हैं. वर्तमान वित्तीय वर्ष 2022-23 में अब तक कुल 713.6 लाख मानव दिवस सृजित किये जा चुके हैं, जिसके जरिये 174238.33 लाख रूपये मजदूर परिवारों मजदूरी के रूप में मिले। साथ ही अर्द्धकुशल, कुशल मजदूर और सामग्री मद के रूप में 21258.8 लाख खर्च किये जा चुके हैं। इस प्रकार राज्य में मनरेगा के जरिये कुल 20 अरब 18 करोड़ 38 लाख 33 हजार रूपये खर्च किये जा चुके हैं जो राज्य की आर्थिक सेहत के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।

राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने सत्ता की बागडोर संभालते ही मनरेगा मजदूरों के प्रति राज्य की संवैधानिक जवाबदेही निभाने की कोशिश करती रही है। इसके दो उदाहरण तीन उदाहरण स्पष्ट हैं। पहला उन्होंने वर्ष 2021-22 से 2022-23 तक लगातार अपने राज्य बजट में राशि आवंटित कर मजदूरों को केंद्र द्वारा मनरेगा के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी 198 रूपये में 27 रूपये राज्यांश देकर 225 रूपये दैनिक मजदूरी भुगतान की गई। यह राज्यांश आवंटन 2022-23 में भी जारी रखा गया, जिसकी वजह से अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी 210 रूपये के स्थान पर राज्य सरकार के 27 रूपये अंशदान के साथ मनरेगा मजदूरों को 237 रूपये दैनिक मजदूरी दी जा रही है। दूसरा 2020 में लॉकडाउन के दरम्यान श्रमिकों को अधिक से अधिक रोजगार के अवसर मुहैया हो सके, इसके लिए नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना, वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना, दीदी बाड़ी, दीदी बगिया जैसे जन उपयोगी योजनाओं को मनरेगा के अनुमेय योजनाओं में शामिल किये गए। अभी हाल ही में मनरेगा श्रमिकों के आकस्मिक मृत्यु, सामान्य मृत्यु, आंशिक विकलांगता जैसी घटना, दुर्घटनाओं में सहायता अनुग्रह राशि में सम्मानजनक वृद्धि कर मजदूर परिवारों सौगात प्रदान की है।

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तकनीकी जटिलताओं के कारण श्रमिक हो रहे सशंकित

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केंद्र सरकार मनरेगा में पारदर्शिता के नाम पर और भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर विगत एक दशक से निरंतर नित नए तकनीकी प्रयोग करती रही है। अप्रैल 2013 से ई-मस्टर रोल को अनिवार्य किया गया, जिसमें मस्टर रोल, वेज लिस्ट, वेज स्लिप, एफटीओ सारे दस्तावेज कंप्यूटराईज्ड किये गए। फिर सारे मजदूरों के आधार कार्ड फ्रिज किये गए। सभी तरह की योजनाओं की जिओ टैग अनिवार्य की गई। इन सभी तकनीकी प्रयोगों से एक तरफ पारदर्शिता संकुचित हुई, वहीं दूसरी तरफ मनरेगा योजनाओं में कोढ़ बीमारी की तरह भ्रष्टाचार नियंत्रण से बाहर होता चला गया। पिछले वर्ष मई 2022 से लागू नई तकनीक नेशनल मोबाईल मोनिटरिंग सिस्टम से 20 से अधिक मजदूर कार्य करने वाले योजनाओं में अनिवार्य बना दिया गया। इस नए तकनीक प्रयोग प्रभावों के आकलन के बिना ही अब जनवरी 2023 से सभी तरह की योजनाओं में नेशनल मोबाईल मोनिटरिंग सिस्टम को अनिवार्य बना दिया गया है। इस प्रणाली से वृहत पैमाने पर मनरेगा मजदूर रोजगार और मजदूरी वंचित होने का खतरा महसूस करने लगे हैं, क्योंकि झारखण्ड में विभागीय आदेशानुसार सिर्फ महिलाओं को ही मनरेगा मेट बनाया गया है। एसटी, एससी, आदिम जनजाति महिलाओं तक वैसे ही स्मार्टफोन की उपलब्धता कम है, जिनके पास है भी उनके पास तकनीकी ज्ञान का अभाव है और कोई समुचित प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है। सर्वर त्रुटि और इंटरनेट ब्लैकआउट की समस्या सुदूर इलाकों में हमेशा बनी रहती है। हाजरी दर्ज किसी तरह की त्रुटि होने पर उसका निराकरण सिर्फ जिला मुख्यालय डीपीसी के पास और कुछ मामलों में नरेगा कमिश्नर कार्यालय को ही लाॅग इन पासवर्ड की सुविधा दी गई है। एप्प की भाषा सिर्फ अंग्रेजी में एवं कई ऐसी भाषाएँ भी एप्प में आती है जो अंग्रेजी जानने वालों के समझ से भी परे है। ऐसे में पूरी सम्भावना है कि मनरेगा में मानव दिवस में गिरावट आएगी और केंद्र सरकार मनरेगा बजट आकार को घटाने का बहाना मिल जाएगा।

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कानूनी प्रावधानों की अनदेखी

मनरेगा अधिनियम में योजनाओं के क्रियान्वयन पर कड़ी निगरानी, प्रत्येक 6 महीने में ग्राम सभाओं के माध्यम से सामाजिक संपरीक्षा, समवर्ती सामाजिक संपरीक्षा, ससमय मजदूरों का मजदूरी भुगतान, आम जनों तथा मजदूरों की शिकायतों पर समयबद्ध कार्रवाई जैसे प्रावधानों के बाद भी राज्य सरकार व केंद्र सरकार दोनों अपनी संवैधानिक जवाबदेही निभाने में विफल होते रहे हैं। राज्य में सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया अप्रैल 2022 से ही सरकार की निष्क्रियता से ठप्प पड़ा है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी झारखण्ड सामाजिक अंकेक्षण इकाई को आखरी बार मार्च 2022 में आवंटन जारी किया था। आज भी सामाजिक अंकेक्षण मद में राज्य सरकार का केंद्र सरकार पर करीब 7.00 करोड़ रूपये का आवंटन लंबित है। लम्बे समय से अंकेक्षण में लगे कर्मियों का बकाया रहने से उनका मनोबल गिरता जाएगा। राज्य सरकार को भी इस दिशा में जरूरी पहल करना चाहिए अन्यथा सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया के रोके जाने से केंद्र को राज्य का फण्ड रोकने का अतिरिक्त बहाना मिल जाएगा।

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना एक बड़ी चुनौती

राज्यभर में मनरेगा योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान स्थापित किये जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 जुलाई अगस्त में किये गए समवर्ती सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट के अनुसार कुल 159608 मजदूरों के नाम से मस्टर रोल (हाजरी शीट) निकाले गए थे, उनमें से सिर्फ 40629 वास्तविक मजदूर (25ः) ही कार्यरत पाए गए।. शेष सारे फर्जी मजदूरों के मस्टर रोल सृजित थे। साहेबगंज में संपन्न सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 19 योजनाओं में बगैर कार्य के 22.48 लाख रूपये की हेराफेरी कर ली गई. – धनबाद के तोपचांची वगैर सामग्री आपूर्ति के ही 16 योजनाओं में कुल 15.15 वेंडर के खाते में भुगतान की गई। पलामू जिले के सिर्फ पाटन प्रखण्ड में 2020 -21 की शेड निर्माण योजनाओं में 23.53 बिना कार्य के निकासी कर ली गई, जिसके परिणामस्वरूप जिले के उप विकास आयुक्त ने प्रशासनिक कार्रवाई करते हुए सभी संबंधित कर्मियों पर कठोर कार्रवाई करते हुए 12 फीसदी ब्याज के साथ जिला नजारत में राशि जमा करने का सख्त आदेश दिया है. मनरेगा राशि गड़बड़ी के ये महज चंद नमूने हैं। यदि कायदे से नियमित जांच और ग्राम सभाओं के जरिये नियमित सोशल ऑडिट हो तो सरकारी राशि के लूट की पूरी पोल खुल जाएगी। सरकार को चाहिए कि राज्य के मजदूरों के हित में ठोस निगरानी एवं कारगर शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करे।

 

Edited By: Samridh Jharkhand

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