अद्भुत- अलौकिक बुंडू का श्रीकृष्ण- राधा रानी का नवरात्रि मंदिर

अद्भुत- अलौकिक बुंडू का श्रीकृष्ण- राधा रानी का नवरात्रि मंदिर

बुंडू से संजोग भगत
झारखंड पर्यटन की दृष्टि से अपने आप में एक विशिष्ट स्थान रखता है। राजधानी रांची से 42 किलोमीटर दूर बुंडू प्रखंड के ऐतिहासिक व पौराणिक राधा- कृष्ण मंदिर अपने आप में एक विशिष्ट आकर्षण का केंद्र है। इसे देखने भारतभर से श्रद्धालु हर साल बहुतायत पहुंचते हैं। यहां नवरात्री टोली के विशाल प्रांगण में भगवान श्रीकृष्ण व राधारानी जी की भव्य, अद्भुत व सुंदर नवरात्री मंदिर स्थित है।
शांति की अनुभूति:
लगभग एक एकड़ भूमि पर मंदिर परिसर में बने श्रीकृष्ण व राधारानी जी का यह मंदिर काफी प्राचीन है। मंदिर के विशाल प्रांगण के अंदर जाते ही एक अनुपम शांति की अनुभूति होती है। नवरात्रि के इस कृष्ण राधारानी मंदिर में अक्षय तृतीया के दिन कलश की स्थापना की जाती एवं उसके दूसरे दिन से नौ दिन और रात्रि हरीनाम का संकीर्तन किया जाता है। यहां होने वाले कीर्तन को सुनने के लिए आस- पास के गांव देहात से लोग शामिल रहते हैं। यहां पर दिव्य और भव्य मेला लगता है। नवरात्रि मंदिर में रखी गई श्रीकृष्ण की मूर्ति काफी प्राचीन मानी जाती है। यहां की श्रीकृष्ण जी मूर्ति के कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।

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जब कृष्ण जी पाषाण मूर्ति हो गए:
कहा जाता है कि वर्षों पहले भोला घासी नामक हरिजन समुदाय का एक व्यक्ति अपने जानवरों को चराने पास के जंगल में गए हुए थे। वहां उन्होंने एक अनुपम दृश्य देखा। श्रीकृष्ण और राधारानी जी रास रचाते क्रीड़ा करते हुए झूला झूल रहे थे। ऐसे अनुपम दृश्य को देख भोला खुद पर काबू नहीं रख पाए और कौतूहलवश उन्हें पकड़ लिया। परन्तु राधारानी जी वहां से भागने में सफल हो गई और कृष्ण जी पाषाण मूर्ति हो गए। उसी रात्रि भोला जी को श्रीकृष्ण और राधा रानी जी के लिए मंदिर स्थापित करने के लिए स्वप्न आया।
भक्त ने नवरात्रि राधारानी मंदिर के लिए जमीन दान दी:
धीरे- धीरे ये बात सारे नगर में फैल गई। नवरात्रि टोली के रहने वाले एक सज्जन महानुभाव ने नवरात्री राधारानी मंदिर के लिए अपनी सारी जमीन दान में दे दी। कुछ समय बाद पूरे नगर से चंदा जमा मंदिर निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ। मंदिर का कार्य पूरा होने पर श्रीकृष्ण जी की उसी पाषाण मूर्ति को प्रति स्थापित किया गया और राधारानी जी की पीतल से बनी हुई मूर्ति प्रतिस्थापित की गई। नवरात्रि मंदिर में कृष्ण जी और राधा रानी जी तीनों पहर का पूजन एवं भोग अर्पण किये जाने लगे।

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बरगद के पेड़ पर मन्नत का धागा:
नवरात्रि मंदिर के शांत परिवेश में एक अनुपम शांति का अहसास होता। कृष्ण व राधारानी जी नित नए परिधानों में सुजज्जित किये जाते हैं। मंदिर के परिसर में एक बड़ा सा बरगद का पेड़ है, जहां चलने वाली मंद- मंद वायु में एक अनूठा आकर्षण है। इसमें अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिये लोग मन्नत का धागा बांधते हैं। कहा जाता है की कृष्ण जी की प्रतिमा को काफी देर तक एकटक देखने उन्हें नील रंग में परिवर्तित होने लगती है। उनके अलौकिक सुंदर स्वरूप अपनी ओर आकर्षित करता है। कृष्ण जन्माष्टमी को भव्य झूलन का भी आयोजन किया जाता है।
मेले को लेकर कमिटी बनी:
अध्यक्ष – बादल महतो, उपाध्यक्ष – संजय यादव, रोशन महतो, सचिव – राम महतो, सह सचिव – रूपेश लाहेरी, गणेश कुम्हार, कोषाध्यक्ष – विष्णु प्रमाणिक, सह कोषाध्यक्ष – हरि लायेक, भंडारपाल – वीरेन्द्र तिवारी, अंकेक्षक – अनुप चेल, कार्तिक प्रमाणिक, संरक्षक एवं सलाहकार – कवि नायेक, पिंटू मोदक, रंजीत लाहेरी हैं। कमिटी के सभी पदाधिकारी मेले की विधि- व्यवस्था पर नजर बनाए हुए हैं।
Edited By: Samridh Jharkhand

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