ईश्वर मुझे इतनी शक्ति दे, कि सकारात्मक राजनीति कर सकूँ: सिद्धार्थ गौतम

ईश्वर मुझे इतनी शक्ति दे, कि सकारात्मक राजनीति कर सकूँ: सिद्धार्थ गौतम

ज्योति चौहान/सुमित कुमार
सिंह मेंशन के 33 वर्षीय छोटे राजकुमार सिद्धार्थ गौतम धनबाद लोकसभा से बतौर निर्दलीय भाजपा के 71 वर्षीय पीएन सिंह को टक्कर दे रहे हैं। ये मानते हैं, कि जनता पूरी तरह से इनके साथ है और रिजल्ट 23 मई को साफ हो जायेगा। गौरतलब है कि धनबाद में मेंशन किसी परिचय का मोहताज नहीं। धनबाद यानी काले हीरे का शहर, जहां एक ही परिवार के तीन सदस्य बारी- बारी से 8 बार विधायक बनकर जनता के लिये काम किया। पहले सूर्यदेव सिंह चार बार, इनकी मृत्यु के बाद पत्नी कुंती देवी विधायक रहीं। इसके बाद बेटा संजीव सिंह, जो फिलहाल नीरज सिंह हत्याकांड के आरोप में जेल की सलाखों के पीछे हैं। इनके छोटे पुत्र फिलहाल सबसे जुदा विधायकी छोड़ सांसद बनने की राह में अग्रसर हैं। छोटे राजकुमार का यह फैसला भाजपा विधायक संजीव सिंह के लिए असहज करने वाला है। मेंशन से लोस चुनाव में सिद्धार्थ क्यों, कैसे, और किसके लिए ? उन्हीं की जुबानी जानते हैं, पेश है उनसे बातचीत के खास अंश:

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1. आपके परिवार को आपराधिक मामलों के लिये जाना जाता है, ऐसे में जनता आपको कैसे देख रही है ?
जवाब: आपने तुलसी दास जी द्वारा कथित चौपाई सुनी होगी कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसी ही मूरत नजर आती है। इसलिए मुझे अपने परिवार व पिता व समूचे इतिहास पर गर्व है। अपने आप को सौभाग्यशाली समझता हूं। जहां तक आपराधिक मामलों की बात है, तो राजनीति में ऐसी कई बाते हैं, जो तथ्यपरख होते हैं व कई ऐसी बातें भी जो तथ्यहीन। इसलिये इतना ही कहूंगा कि लेट द पब्लिक डिसाइड।
2. एक ही परिवार में होकर आपके भैया- भाभी भाजपा में और आपका निर्दलीय चुनाव लड़ना ?
जवाब: मुस्कुराते हुए, देखिए मैं स्पष्ट कर दूं, कि हमारा परिवार एकजुट है, एकजुट रहेगा। रही बात विचारधारा की तो एक परिवार में इसमें भिन्नता हो सकती है। राजनीतिक सोच भी अलग हो सकती है। मेरे भैया भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हैं, इसलिये इसी से विधायक हैं, लेकिन मेरी सोच अलग है, तो निर्दलीय लड़ रहा हूं।
3.आपकी विचारधारा किसी पार्टी से नहीं मिलती ?
जवाब: मेरी विचारधारा सिर्फ भाजपा से ही नहीं, कांग्रेस से भी नहीं मिलती है। मैं मानता हूं, कि भगवान मुझे शक्ति दें, मैं अन्य पार्टियों से इतर राजनीति करूं। आगे ईश्वर मालिक।
सवाल: आप जीतेंगे तो क्या आपके भैया- भाभी इसे अपनी जीत मानेंगे ?
जवाब: देखिए, अगर आप एक भाई से यह सवाल कर रही हैं तो अवश्य मानेंगे। लेकिन बतौर नेता मेरा जवाब यही है कि वे अपने धर्म का पालन करें। वह एक पार्टी के सदस्य होने के साथ विधायक भी हैं। मेरी आकांक्षा रहेगी, कि उस पार्टी के लिए काम करें व इसी प्लेटफार्म पर चलें। कारण भी है कि हमारी पारिवारिक मर्यादा यही है, कि जहां रहते हैं, वहीं रहते हैं।
सवाल: इससे पहले भी परिवार की महिलाएं राजनीति में आई हैं ?
जवाब: हां, बिल्कुल आई हैं। मेरी मां दो बार विधायक बनी। चाची, जो मौसी भी हैं, धनबाद की मेयर रह चुकी हैं। एक भाभी अभी जिला परिषद् में हैं। बड़ी चाची जिला परिषद् में प्रधान भी रह चुकी हैं। हमलोगों के परिवार की महिलाओं ने बराबर राजनीति में सहभागिता निभाई है। भाभी ने कुछ दिन पूर्व ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण की हैं।
सवाल: धनबाद की जनता आपको किस उम्मीद से वोट करेगी ?
जवाब: सबसे पहले कि मेरी पैदाइश धनबाद की है। मैंने अपना बचपन व्यतित किया है। पढ़ाई भी यहीं से संपन्न हुई। धनबाद को जानता-समझता हूं। यहां की समस्याओं से भी पूर्णतौर पर अवगत हूं। मुझे ये दृढ़ विश्वास है कि जिस ढर्रे पर जनप्रतिनिधि कार्य कर रहे हैं, उससे बेहतर मैं कर सकता हूं। जहां तक जनता द्वारा मुझे चुने जाने की बात है, तो मेरा एजेंडा सिर्फ धनबाद व इसका विकास है। धनबाद के लिए, धनबाद से लड़ रहा हूं। जो अमूमन अन्य पार्टियों की तुलना से अलग है। राष्ट्रीय पार्टियों में मुद्दे भी राष्ट्रीय ही होते हैं। कहते हैं कि बेशक राष्ट्रीय मुद्दा हो, लेकिन इसकी आड़ में कहीं ना कहीं स्थानीय मुद्दे को दबा दिया जाता है। कोयला से मिलने वाले रॉयल्टी ने देश को किस हद तक चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया है, ये किसी से नही छुपा। मैं धनबाद का पक्ष महत्वपूर्ण और ईमानदारी के साथ संसद में रख सकता हूं। इसलिए मुझे उम्मीद है कि जनता मुझे वोट करेंगी।
सवाल: मैं प्रदूषण व दुरुह यातायात व्यवस्था झेलकर पहुँची हूं, अन्य कौन- कौन सी समस्याएं हैं ?
जवाब: मैंने अपने घोषणा पत्र में इसे खासी तरजीह दी है। कारण है, कि धनबाद में उत्खनन के कारण प्रदूषण होता है। इससे निकलने वाले गैस से वायु प्रदूषण होता है। कई जटिल बीमारियों के कारण यहां लोग अपनी जान की भी आहूति दे रहे हैं, लेकिन बदले में धनबाद को कुछ नहीं मिल रहा। मैं इसे विडंबना व दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूं। इस बात को प्रमुखता से वैसी जगह पर रखना चाहिये, जो पूर्ण ऑथोरिटी हैं। चाहे सरकार हो या फिर सिस्टम।
सवाल: अब तक आपने कभी कोशिश की ?
जवाब: मैं राजनीतिक परिवार से हूं, मेरे पूरे परिवार से आतंरिक मन से जनसेवा की है व आज भी हमारा प्रयास यही है। समस्याओं को दूर करने का हरसंभव प्रयास किया। हम एक संगठन भी चलाते हैं- मजदूर संगठन। इसे मेरे पिताजी ने ही बनाया था। पीसीसीएल में आज सबसे बड़ा संगठन है, जो मजदूरों की आस्था का विषय है। मुझे इस बात का भरोसा है कि जनता मुझे जरुर चुनेगी।
Edited By: Samridh Jharkhand

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