दक्षिण अफ्रीका के जेइटीपी मॉडल के बाद भारत के कदम पर दुनिया की रहेगी नजर

दक्षिण अफ्रीका के जेइटीपी मॉडल के बाद भारत के कदम पर दुनिया की रहेगी नजर

विकासित देश इस कोशिश में हैं कि भारत उनके द्वारा सुझाए गए जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप मॉडल को अपना ले और उस पर अपने यहां अमल करे। हालांकि भारत इसको लेकर सतर्क है। कुछ सप्ताह पहले इस आशय की मीडिया रिपोर्ट आ चुकी है कि भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने जी – 7 देशों के जेइटीपी मॉडल को अस्वीकार कर दिया है। ऐसे में सीओपी27 में भारत के जेइटीपी को लेकर किसी निष्कर्ष तक पहुंचने की संभावना नहीं है, जैसा कि पिछली बार दक्षिण अफ्रीका की ओर से किया गया था।

दक्षिण अफ्रीका को जेइटीपी अपनाने को लेकर विकसित देशों की ओर से 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पेशकश की गई थी। शुरू में यह धारणा बनी कि यह राशि उसे मदद के तौर पर दी जाएगी, लेकिन क्लाइमेट होम न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस राशि में मात्र तीन प्रतिशत दक्षिण अफ्रीका को अनुदान के तौर पर मिलेगा और बाकी राशि उसे कर्ज के तौर पर मिलेगी।


दक्षिण अफ्रीका के कैबिनेट ने कोयले की जगह स्वच्छ ऊर्जा अपनाने को लेकर 8.5 बिलियन के पैकेज की एक निवेश योजना को मंजूरी दी है। इसको लेकर कहा गया है कि यह योजना सतत विकास को बढावा देने और प्रभावित श्रमिकों व समुदायों के लिए न्यायपूर्ण बदलाव सुनिश्चित करते हुए और दक्षिण अफ्रीका की डीकार्बोनाइजेशन प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए आवश्यक निवेश की रूपरेखा तैयार करती है।

हालांकि दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने कहा है कि उनकी सरकार केवल वैसे सौदों को स्वीकार करेगी जो अनुदान और रियायती वित्त पोषण के आधार पर अच्छी शर्ताें की पेशकश करता है।

फ्रांस, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की ओर से तीन से पांच सालों के लिए दक्षिण अफ्रीका के लिए यह पेशकश की जा सकती है, जो फिलहाल अपनी 80 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा जरूरतों के लिए कोयले पर निर्भर है और दुनिया में सबसे अधिक है।

उधर, जून 2022 में जी – 7 ने यह घोषणा की थी कि वह भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल और वियतनाम के साथ जेइटीपी पर बात कर रहा है।

भारत फिलहाल अपनी 70 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों के लिए कोयला पर निर्भर है, बावजूद इसके विशाल आबादी वाले हमारे देश की प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दुनिया में सबसे कम है। एक विश्लेषण के अनुसार, भारत में जस्ट ट्रांजिशन प्रक्रिया को अपनाने के लिए 2022 से 2030 तक 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जरूरत होगी।

उधर, विकसित देश पेरिस समझौते के जलवायु वित्त वादों को पूरा करने में विफल रहे हैं, जिसके तहत 2020 तक सामूहिक रूप से 100 बिलियन डॉल प्रति वर्ष जुटाना था। इस पैकेज को विकासशील देशों व उभरती अर्थव्यवस्था के लिए स्वच्छ ऊर्जा को अपपाने में एक मॉडल के रूप में देखा गया था।

भारत ने अबतक जी – 7 देशों के जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप पर पॉजिटिव रुख नहीं दिखाया है। जी-7 देशों ने भारत को जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप में शामिल होने के लिए कहा है, ताकि वे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं की तेजी से तैनाती में मदद कर सकें और इससे कोयला पर देश की निर्भरता कम हो।

अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी एक खबर में पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा है – हां, जी – 7 देशों ने हमसे संपर्क किया है। हमने साझेदारी को खारिज नहीं किया है। विदेश मंत्रालय इस मामले को देख रहा है और यह इन मामलों में सरकार के रुख पर निर्भर करता है।

भारत ने पिछले साल ग्लासगो में सीओपी26 में कोयला को चरणबद्ध रूप से खत्म करने के लिए प्रयोग किए गए कठोर भाषा का विरोध किया था। इसने विकासशील व गरीब देशों के लिए जीवाष्म ईंधन सब्सिडी पर इक्विटी और सुरक्षा उपायों को लागू करने पर जोर दिया। जिसके बाद अंतिम समझौते के मसौदे को फिर से लिखा गया था। जबकि उसी दौरान जेइटीपी की अवधारणा आयी और दक्षिण अफ्रीका ने उसे अपनाने पर सहमति जतायी। बहरहाल, अब भारत के जेइटीपी पर स्टैंड पर सबकी नजर रहेगी।

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जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप के मॉडल पर सवाल, भारत इसके लिए समान शर्ताें का है पक्षधर

 

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Edited By: Samridh Jharkhand

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