कार्बन एमिशन को कम करने के लिए फौरन उठाने होंगे कदम : अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

कार्बन एमिशन को कम करने के लिए फौरन उठाने होंगे कदम : अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

जलवायु परिवर्तन से गंभीर प्रभावों से बचने के लिए दुनिया को कोयले के जलने से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए तेजी से आगे आना चाहिए। ऐसा कुछ करने के लिए ज़रूरी है कि कोयले के स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों के लिए बड़े पैमाने पर वित्तपोषण को तेजी से बढ़ाया जाए और तत्काल नीति कार्रवाई सुनिश्चित कि जाए।

यह बातें मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक नई रिपोर्ट में सामने आई हैं। इस रिपोर्ट का शीर्षक है कोल इन नेट ज़ीरो ट्रांज़िशन्स: स्ट्रेटेजीज फॉर रैपिड, सिक्युर, एंड पीपल सेंटेरड चेंज। बात अगर कि जाए कि वैश्विक कोयला उत्सर्जन को तेजी से कम करने के लिए क्या करना होगा, तो यह रिपोर्ट अब तक का सबसे व्यापक विश्लेषण प्रदान करती है और बताती है कि ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास का समर्थन करते हुए और शामिल किए गए परिवर्तनों के सामाजिक और रोजगार परिणामों को संबोधित करते हुए अंतरराष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को कैसे पूरा करें।

इसमें 2050 तक नेट ज़ीरो एमिशन कि स्थिति में पहुँचने पर कोयला क्षेत्र के लिए प्रमुख निहितार्थ शामिल हैं।

यह रिपोर्ट, जो कि वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक श्रृंखला का हिस्सा है, बताती है कि वर्तमान वैश्विक कोयले की खपत की अत्यधिक मात्रा उन देशों में होता है जिन्होंने नेट ज़ीरो एमिशन हासिल करने का संकल्प लिया है। ध्यान रहे कि वैश्विक कोयले की मांग घटने के बजाय पिछले एक दशक से रिकॉर्ड ऊंचाई पर स्थिर रही है। अगर कुछ नहीं किया जाता है, तो मौजूदा कोयले की संपत्ति से होने वाले एमिशन से अपने आप ही दुनिया को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से पार कर जाएगा।

आईईए के कार्यकारी निदेशक फतिह बिरोल ने इस संदर्भ में कहा, “दुनिया की 95 प्रतिशत से अधिक कोयले की खपत उन देशों में हो रही है, जो अपने उत्सर्जन को नेट ज़ीरो तक कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लेकिन जब मौजूदा ऊर्जा संकट के लिए कई सरकारों की नीतिगत प्रतिक्रियाओं में स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार की दिशा में उत्साहजनक गति है, तो एक बड़ी अनसुलझी समस्या यह है कि दुनिया भर में मौजूदा कोयला संपत्ति की भारी मात्रा से कैसे निपटा जाए।”

बिरोल ने आगे कहा, “कोयला ऊर्जा से CO2 उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है और दुनिया भर में बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत है, जो हमारे जलवायु को होने वाले नुकसान और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इसे तेजी से बदलने की बड़ी चुनौती को उजागर करता है। हमारी नई रिपोर्ट इस महत्वपूर्ण चुनौती को किफायती और निष्पक्ष रूप से दूर करने के लिए सरकारों के लिए व्यवहार्य विकल्पों को प्रस्तुत करती है।”

रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि कोयले के उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई एकल दृष्टिकोण नहीं है। नया IEA कोल ट्रांज़िशन एक्सपोज़र इंडेक्स उन देशों पर प्रकाश डालता है, जहाँ कोयले पर निर्भरता अधिक है और जहां एनर्जी ट्रांज़िशन सबसे चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है। यह प्रमुख देश हैं – इंडोनेशिया, मंगोलिया, चीन, वियतनाम, भारत और दक्षिण अफ्रीका।

तो इन समीकरणों में कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप दृष्टिकोणों की आवश्यक है।

आज, दुनिया भर में लगभग 9,000 कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र हैं, जो 2,185 गीगावाट क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी आयु क्षेत्र के अनुसार व्यापक रूप से भिन्न होती है। अगर अमेरिका में औसतन 40 वर्ष से अधिक है, तो यह एशिया की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 15 वर्ष से कम है।

कोयले का उपयोग करने वाली औद्योगिक सुविधाएं लंबे समय तक जीवित रहती हैं। इसलिए इस दशक में निवेश के वो फैसले किए जाने हैं जो आने वाले दशकों में भारी उद्योग में कोयले के उपयोग के दृष्टिकोण को काफी हद तक आकार देंगे।
एशिया प्रशांत क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में कोयला बिजली संयंत्रों की अपेक्षाकृत कम उम्र के चलते एनर्जी ट्रांज़िशन जटिल है। यदि इन्हें सामान्य जीवनकाल और उपयोग दरों के लिए संचालित किया जाता है तो निर्माणाधीन संयंत्रों को छोड़कर मौजूदा विश्वव्यापी कोयले से चलने वाले बेड़े, अब तक के संचालित सभी कोयला संयंत्रों के ऐतिहासिक रूप से कुल उत्सर्जन से भी अधिक उत्सर्जन करेंगे।

Edited By: Samridh Jharkhand

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