
पुलवामा आतंकी हमले में शहीद विजय सोरेंग के पिता ने रखी है तीन मांग
गुमला: वैसे तो लोग 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस और वैलेंटाइन डे के रूप में मनाते हैं. लेकिन हम जिस देश में निवास करते हैं, वहां राष्ट्रसेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं, देशप्रेम से बड़ा कोई त्योहार नहीं होता. भारत और भारतवासी इतिहास के पन्ने को जब भी पलटेंगे, तो 14 फरवरी के उस पन्ने को काला ही पाएंगे. क्योंकि हमारे देश के लिए 14 फरवरी काला दिवस से कम नहीं. हम बात कर रहे हैं, 14 फरवरी 2019 की. इसी दिन कश्मीर के पुलवामा हमले में देश के 40 जवानों ने वीरगति को प्राप्त किया था. तीन साल बीत जाने के बाद भी हम भारतवासी उस हादसे को भूला नहीं पाते, क्योंकि हमने सिर्फ सेना के जवान को नहीं खोया. बल्कि किसी मां ने अपने बेटे को, तो किसी बहन ने अपने भाई को, किसी महिला ने अपने पति को, तो किसी ने गांव के लाडले को खोया है.
पुलवामा हमले में शहीद हुए थे विजय सोरेंग
गुमला जिले के बसिया प्रखंड के फरसामा गांव के निवासी विजय सोरेंग का जन्म 12 मई 1974 को हुआ था. वे केन्द्रीय पुलिस बल के 82 बटालियन में सेवारत रहे हैं. लेकिन जम्मू कश्मीर में 14 फरवरी 2019 को हुए सुरक्षाकर्मियों पर हमले के दौरान वे वीरगति को प्राप्त हो गए.
शहीद विजय सोरेंग
पुलवामा हमले में शहीद वीर विजय सोरेंग का तीसरा शहादत दिवस 14 फरवरी 2022 को कुम्हारी उच्च विद्यालय में सीआरपीएफ धूमधाम से मनाएगी. सीआरपीएफ के बल संख्या 933180149 शहीद हवलदार जीडी विजय सोरेंग केन्द्रीय पुलिस बल में कार्यरत रहे हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा फारसामा स्थित स्कूल से हुई. उन्होंने कुम्हारी उच्च विद्यालय से मैट्रिक उर्तीण किया. 4 मई 1993 को सीआरपीएफ के सेवा में आएं, सोरेंग देश के विभिन्न क्षेत्रों में तैनात रहें. 14 फरवरी 2019 को सुबह जम्मू ट्रांजिट कैम्प से केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के साथ श्रीनगर के लिए रवाना हुए. लगभग 3 बजकर 10 मिनट बजे दोपहर कानवाई लैथपूरा पुलवामा लाधू क्रॉसिंग से गुजरने के दौरान जैश ए मोहम्मद नामक आतंकवादी संगठन ने 76 बटालियन की बस संख्या एच चार 49 एफ 0637 से टक्कर मारा. इस हमले में बस में बैठे सभी जवान शहीद हो गए.
शहीद के गांव को सरकार से आस
जीडी विजय सोरेंग के शहीद हुए तीन साल बीत चुके हैं. लेकिन अबतक उनके गांव की सूरत नहीं बदली और ना ही उनके पिता की इच्छा पूरी हुई. सरकार ने वीर की शहादत पर गांव में सभी मूलभूत व्यवस्थाओं को देने का वादा किया था. लेकिन तीन साल बाद भी फरसामा की स्थिति देखते ही बनती हैं. गांव में ना तो पेयजल की समुचित व्यवस्था है, ना ही सड़क और मोबाइल नेटवर्क की. इस गांव को देखकर ऐसा लगता है मानो 21वीं सदी के इस भारत में ग्रामीण विकास सिर्फ एक कोरी परिकल्पना मात्र हो.
गांव में स्कूल तो हैं, लेकिन शिक्षा का स्तर बहुत नीचे दिखायी पड़ता है. गांव के बच्चे सही तरीके से हिन्दी बोलने से भी हिचकिचाते नजर आते हैं. इसके अलावा गरीबी इतनी कि लोग बस जीवन जीने के लिए जी रहे हों. हम अगर ऐसा कहें कि गांव की स्थिति इतनी बदहाल है, जहां रोटी,कपड़ा और मकान को लेकर ही लोग चिंतित नजर आते हैं. फिर शिक्षा और स्वास्थ्य की चिंता कोई भला कैसे करे. हालांकि शहीद के गांव को आज भी सरकार से आस है. कोई तो आएगा, जो इनके गांव में समुचित सुविधाएं बहाल कर जाएगा.
शहीद की मां की नम हो जाती हैं आंखें
शहीद विजय सोरेंग की मां लक्ष्मी सोरेंग की आंखें उस वक्त नम हो जाती हैं, जब वो अपने बेटे की बातों को याद कर रोने लग जाती हैं. लेकिन उन्हें उस वक्त गर्व महसूस होता है, जब वो शहीद की मां कहलाती हैं. लक्ष्मी सोरेंग कहती हैं कि उन्हें बेटे की याद बहुत आती है.
शहीद के पिता की मांग रह गयी अधूरी
शहीद विजय सोरेंग के पिता बृज सोरेंग को अपने सपूत पर गर्व है. क्योंकि उनके पुत्र ने मां भारती की सेवा में अपनी प्राण की आहूति दी है. उन्होंने राष्ट्रसेवा में स्वयं का समर्पण किया है. जिसके कारण उनके पिता सहित पूरा परिवार उन्हें उनकी शहादत दिवस पर नमन कर रहा है.
लेकिन उनके मन की आस पूरा नहीं होने के कारण वो आज भी थोड़ा दुखी नजर आते हैं. वो सरकार से मांग करते हुए कहते हैं कि कुम्हारी तालाब चौक पर विजय चौक के नाम से प्रतिमा की स्थापना की जाए. क्योंकि कुम्हारी उच्च विद्यालय में लगी प्रतिमा विजय सोरेंग के चेहरे से मेल नहीं खाती है. उन्होंने दूसरी मांग कापरी से फरसामा तक सड़क निर्माण की रखी है. इस पथ का नाम विजय पथ रखने की बात कही है. तीसरे मांग के रूप में उन्होंने फरसामा के ग्रामीणों को पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने की बात कही.
विजय की पत्नी को मिली है राशि
विजय के पिता बृज सोरेंग बताते हैं कि पुत्र की शहादत के बाद झारखंड सरकार की ओर से प्रस्तावित 10 लाख रूपए की राशि उनकी बहू को प्राप्त हुआ है.
सुधा देवी को गर्व है
शहीद विजय सोरेंग की बहन सुधा देवी को अपने भाई पर गर्व है और वे पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सभी जवानों को श्रद्धाजलि दे रही हैं. उन्होंने अपने भाई की शहादत पर खुशी जताते हुए, हर साल शहादत दिवस की भव्य तरीके से मानाने की बात कही है.
पुलवामा आतंकी हमला
शहीद विजय सोरेंग के गांव के लोग पुलवामा आतंकी हमले को याद कर सहम जाते हैं. क्योंकि उन्होंने सिर्फ एक जवान को नहीं खोया, बल्कि किसी ने अपने बचपन के साथी को खोया, तो किसी ने राष्ट्रप्रेमी को, किसी ने इस हमले में विजय के रूप में समाजसेवी को खोया, तो किसी ने बचपन की यारी को.
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