दुमका में नये आदिवासी चेहरे का प्रादुर्भाव
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- पहली बार संसद में कदम रखेंगे सुनील सोरेन
आलोक कुमार
झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन को सर्वाधिक बड़े आदिवासी नेता के रुप में जाना जाता है। यहां इन्होंने आज तक के इतिहास में महज दो बार हार का सामना किया है। चुनाव पूर्व 2019 में भी उन्हें यहां से निर्वाचित माना जा रहा है, लेकिन चुनाव परिणाम ने सारे कयासों पर पूर्ण विराम लगाते हुये सारे समीकरण धवस्त कर दिये। इस बार जनता का मिजाज कुछ और था, लिहाजा दिशोम गुरु से ये सीट दुमका के युवा सुनील सोरेन ने छीन ली। अब ऐसे में यह माना जा सकता है, कि झारखंड की उपराजधानी में एक नये आदिवासी चेहरे का प्रादुर्भाव हो गया है।
भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने झामुमो के शिबू सोरेन को हरा दिया है। सुनील पहली बार संसद जायेंगे। सवाल यहां दुमका सीट का नही है, बल्कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जिस प्रकार से संथाल में कैंपेनिंग की थी व ये दावा किया था, कि सोरेन की हार दो सौ फीसदी तय है, इस पर आज मुहर भी लग चुका है। जाहिर है कि इसके तहत भाजपा ने झामुमों के गढ़ संथाल में सेंधमारी कर दी है, इसके बाद विधानसभा चुनाव को भी टारगेट कर रहे हैं। यहां की 14 लोकसभा सीटों में दुमका को काफी हाॅट सीट माना जाता है।
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यहां से पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन व बाबूलाल मरांडी सांसद रह चुके हैं। दुमका लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन 8 बार चुनाव जीते हैं व झारखंड की राजनीति में सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा शिबू सोरेन को दुमका में 1980 और 2014 के बीच सिर्फ दो बार हार हाथ लगी है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में उपजी सहानुभूति लहर के दौरान व 1998 में बीजेपी लहर के दौरान। बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी प्रत्याशी के रूप में 1998 के लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को दुमका में हराया था, जबकि 2019 की लड़ाई में वह शिबू सोरेन के साथ खड़े थे। मजे की बात यह है कि दोनों ही इस बार चुनाव हार गये हैं।
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यहां राउंड की गिनती के प्रारंभ होने के बाद उतार चढ़ाव का दौर जारी रहा, लेकिन अंत में भाजपा के सुनील सोरेन निर्णायक बढ़त बना लिये। शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पहली बार वो 2005 में 10 दिन ( 2 मार्च से 12 मार्च ) के लिए, फिर दूसरी बार 2008 से 2009 तक और तीसरी बार 2009 से 2010 तक के लिए सीएम के पद पर रहे। वह यूपीए सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री भी रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से शिबू सोरेन सातवीं बार जीते थे। उन्होंने बीजेपी के सुनील सोरेन को हराया था। शिबू सोरेन को करीब 3.35 लाख व सुनील सोरेन को 2.96 लाख वोट मिले थे। बीजेपी प्रत्याशी सुनील सोरेन दुमका में तीसरी बार ‘गुरुजी’ को टक्कर दे रहे हैं, इससे पहले वह दुमका में शिबू के सामने 2009 व 2014 के चुनाव में भी टक्कर दे चुके हैं। सुनील कम अंतर से यहां चुनाव हारते रहे हैं। लेकिन इस बार सुनील सोरेन ने शिबू को हराकर बाबूलाल मरांडी की तरह ही अपने को प्रदेश के एक नये आदिवासी चेहरे के तौर पर स्थापित कर लिया है।
दुमका की गूंज दिल्ली तक
सीएम रघुवर दास की मेहनत सहित मोदी मैजिक के कारण संथाल में कमल खिल गया। शिबू सोरेन को हराने के बाद इसकी गूंज दिल्ली दरबार तक पंहुच चुकी है। माना जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रालय में सुनील को दुुमका फतह का इनाम मिलेगा। दुमका से दिल्ली तक का सफर भाजपा के लिए जितना मुश्किल था, जीत के बाद यहां से तोहफा मिलने का रिवाज भी रहा है। शिबू सोरेन को परास्त कर लोकसभा पहुंचे बाबूलाल मरांडी को वाजपेयी मंत्रिमंडल में जगह मिली थी। इसके अलावा शिबू सोरेन भी यूपीए शासनकाल में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। यही कारण है कि लोग अभी से अनुमान लगा रहे हैं कि दुमका की मांग दिल्ली में जरूर सुनी जाएगी।
शिबू सोरेन 47,590 हजार मतों से हारे
आखिरकार जेएमएम का अभेद किला भी ध्वस्त हो गया। दुमका सीट पर बीजेपी ने अपना कमल खिला दिया। पूर्व सीएम व जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन यहां से चुनाव हार गये हैं। बीजेपी के सुनील सोरेन ने उन्हें 40 हजार मतों से परास्त किया है। सुनील सोरेन को 484923 और शिबू सोरेन को 437333 वोट मिले। 2014 के चुनाव में सुनील सोरेन यहां पर शिबू सोरेन से हार गये थे। दुमका में आखिरी चरण में 19 मई को वोट डाले गए थे व 73.16 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई थी, यहां पर कुल 15 प्रत्याशी मैदान में थे।
Edited By: Samridh Jharkhand