
कोयला खदान के बगल में स्थित सुरंगा गांव का तालाब जो 18 एकड़ से सिकुड़ कर आठ एकड़ में बचा है।
झरिया : बबन कुमार झरिया के डिगवाडीह में स्टेडियम के पास बीसीसीएल के एक पुराने क्वार्टर में रहते हैं। उनके घर में परित्यक्त कोयला खदानों के पानी की आपूर्ति की जाती है, जो नहाने-धोने के काम में आता है। वे अपने घर से रोज रात में एक किमी दूर साइकिल से पानी लाने जाते हैं। एक बार में वे छह डब्बे में पानी ला पाते हैं और ऐसा करने पर परिवार का दो दिनों का पेयजल संकट दूर हो जाता है। यह सालों भर की करना होता है।

झरिया कोयलांचल में पानी की भारी किल्लत का यह एक मामला नहीं है या एक जगह का किस्सा नहीं है। पूरे झरिया कोयला खनन क्षेत्र में पानी की ऐसी ही समस्या है। डिगवाडीह से जिनगोड़ा माड़ी गोदाम कोयला खदान के बीच में जब एक गांव मे 12-13 साल उम्र के कुछ बच्चों को डब्बे से पानी लाने के लिए जाते देखने पर उनकी तसवीर खींचने पर उन्होंने कहा कि यहां क्या फोटो खींच रहे हैं, वहां चलिए देखिएगा पानी के लिए कितनी भीड़ है। झरिया कोयलांचल क्षेत्र में पानी के लिए बड़ी संख्या में बच्चों को साइकिल पर यंू घूमते देखना बाहर से आए लोगों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए जीवन का यह एक हिस्सा बन चुका है।

डिगवाडीह से करीब तीन-चार किमी की दूरी पर स्थित जिनागोड़ा माड़ी गोड़ा कोयला खदान के उस पार स्थित सुरंगा गांव में भी पानी की भारी किल्लत है। लोग साइकिल से पानी लाने के लिए आते-जाते दिख जाते हैं। इस गांव के कमल प्रमाणिक ने बताया कि घर में पानी का स्रोत है नहीं, इसलिए हमें बाहर से पानी ले जाना पड़ता है। कमल सरकारी टंकी के पास पानी लाने जा रहे थे, जहां पहले से ही नहाने वालों व पानी लेने वालों की बड़ी संख्या मौजूद दिखी।

बबन कुमार कहते हैं कि डिगवाडीह के कुछ हिस्सों में घर में पेयजल की आपूर्ति होती है, लेकिन ज्यादातर जगह दिक्कत है। वे कहते हैं कि फिलहाल पाइप लाइन बिछाई जा रही है, देखिए उससे क्या होता है।
कोयला खनन क्षेत्र में पेयजल की दिक्कत तो है ही प्राकृतिक पेयजल स्रोतों पर भी संकट है। धनबाद जिले के बलियापुर प्रखंड के सुरंगा ग्राम पंचायत में स्थित सुरंगा तलाब कोयला खदान के बगल में स्थित है। गांव जाने वाली सड़क के एक ओर तालाब है तो दूसरी ओर कोयला खदान के मलबे या ओबी का पहाड़। माइनिग के दौरान या तेज हवा में उसका धूल तालाब में उड़ कर जाता रहता है, जिससे तालाब का पानी तो प्रदूषित होता ही है, उसका आकार भी सिकुड़ रहा है।
स्थानीय ग्रामीण रतन सिंह कहते हैं यह तालाब 18 एकड़ क्षेत्रफल में हुआ करता था, अब आठ एकड़ में बचा है, लेकिन इस पर भी संकट है कि यह आठ एकड़ क्षेत्रफल भी तालाब का बचेगा या नहीं। रतन सिंह का आरोप है कि बीसीसीएल इस क्षेत्र में खनन कार्य करता है, इसलिए यह उसकी जिम्मेवारी है कि वह सीएसआर फंड के तहत इसका रख-रखाव बेहतर करे। रतन कहते हैं कि कोयला क्षेत्र में पानी की ऐसे भी किल्लत है और यह तालाब आसपास के ग्रामीणों के जीवन का आधार है, जहां वे नहाने, कपड़ा धोने से लेकर धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं। अगर यह तालाब खत्म हो जाएगा तो यहां के लोगों की परेशानियां और बढ जाएंगी। उन्होंने कहा कि इस संबंध में बीसीसीएल को हमलोगों ने लिखित रूप में दिया है, लेकिन उनका रवैया ढुलमूल है। इस तालाब पर पांच-छह गांव के लोग सुरंगा का देव बस्ती, बाउरी टोला, रविदास टोला, कोलयरी बेल्ट, लालमाटी, बेलहावड़ा, गोल्डन आदि के लोग इस तालाब पर निर्भर हैं।

रतन कहते हैं कि यह इलाका सिंदरी विधानसभा क्षेत्र में आता है। हमलोगों ने तालाब को बचाने के लिए जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधि से भी आग्रह किया है। वे कहते हैं कि यह बीसीसीएल के दायरे में आता है और सीएसआर के माध्यम से तीन किलोमीटर के दायरे में उसे काम करना होता है, हमलोग तो 500 मीटर के दायरे में ही हैं।
सुरंगा के एक अन्य ग्रामीण समरेश कुमार देव कहते हैं, बीसीसीएल ने मुफ्त में हमें सिर्फ धूल ही दिया है और कुछ दिया नहीं है। बीसीसएल से बिजली, पानी, रोड किसी तरह का लाभ मिला नहीं है। बीसीसीएल के माइनिंग एरिया से इतना सटा हुआ तालाब है, लेकिन इसकी साफ-सफाई आजतक नहीं करायी गयी है।
उन्होंने कहा कि हमारी जमीन का भी जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है, हमें बताया गया है कि हमारे पूर्वजों ने 999 साल का भूमि का लीज दिया है, हम यह पूछना चाहते हैं कि आप हमें लीज का पेपर दिखा रहे हैं लेकिन इसके ऐवज में जो मुआवजा व लाभ हमें मिलना चाहिए वह किसको और किस आधार पर दिया जा रहा है यह हम ग्रामीण जानना चाहते हैं।

समरेश कुमार देव कहते हैं कि हमारी जमीन का डाटा राज्य सरकार के पास है लेकिन वह ऑनलाइन नहीं है, क्योंकि यह जमीन अधिग्रहित है। वे कहते हैं कि हम अपनी जमीन न बेच पा रहे हैं और न ही यहां किसी और जमीन खरीद पा रहे हैं। वे कहते हैं कि खेतीबारी भी उस जमीन पर नहीं होती है और इसे लोग आजीविका के लिए दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं।
(रिपोर्ट और सभी तसवीरें राहुल सिंह।)
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