सीता सोरेन की नाराजगी क्या दूसरे प्रदेशों के प्रभावी राजनैतिक परिवारों में हुए सत्ता संघर्ष से अलग है?

सीता सोरेन की नाराजगी क्या दूसरे प्रदेशों के प्रभावी राजनैतिक परिवारों में हुए सत्ता संघर्ष से अलग है?

रांची : झारखंड के मुख्य सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा की जामा से विधायक सीता सोरेन ने मुखर रूप से पार्टी के अंदर अपने हक से जुड़े सवाल पूछने के लिए अपने पति दुर्गा सोरेन की जयंती के दिन 10 सितंबर को चुना. इसे महज इत्तेफाक नहीं का जा सकता है. इस दिन उन्होंने व उनके देवर व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दुर्गा सोरेन को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी. इसके बाद सीता सोरेन ने झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन को लिखे पत्र को मीडिया व जनता के लिए अपने ट्विटर एकाउंट पर साझा कर दिया. वे चाहती तो इसकी गोपनीयता बनाये रख सकती थीं.


इतना ही नहीं उन्होंने मीडिया से भी बात की. पत्र में उन्होंने कहीं भी झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जिक्र नहीं किया. हां, ट्विटर पर उन्हें टैग जरूर किया. सीता सोरेन चाहती तो ंजिन विनोद पांडेय पर उन्होंने सवाल उठाया है उन पर कार्रवाई के लिए पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष से भी आग्रह कर सकती थीं. सीता सोरेन ने पार्टी को गढने व बनाने में अपने ससुर शिबू सोरेन व पति दुर्गा सोरेन के योगदान की चर्चा की.


अबतक सार्वजनिक जीवन व राजनीति से दूर रहीं सीता सोरेन की बेटियांें ने भी मां के लिए मोर्चा संभाला और पार्टी से सवाल पूछा. उस पार्टी से जिसके अध्यक्ष व कार्यकारी अध्यक्ष क्रमशः उनके दादा व चाचा हैं. इस मामले में सीता सोरेन की बेटी राजश्री सोरेन ने टिवटर पर लिखा: मुझे आज यह देख कर बेहद दुःख ओ रहा है कि मेरी मम्मी जो पार्टी की सीनियर विधायक हैं, उनके द्वारा लिखे गए खत को 18 घंटे से ज्यादा वक्त हो गया पर इस मामले में अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया है. इस खामोशी का क्या तात्पर्य है?


राजश्री सोरेन के ट्वीट को उनकी बहन विजयश्री सोरेन ने रिट्वीट किया. वहीं, एक व्यक्ति ने लिखा कि महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार व बिहार में लालू यादव परिवार में ऐसा ही हुआ, लेकिन घबराना नहीं. सीता सोरेन ने शनिवार को इस मामले में छपी अखबार की खबरों की कतरन को ट्वीट करते हुए लिखा: मेरी बेटियों को भी राजनैतिक रूप से अच्छाई और बुराई का बोध हो चुका है। हक की लड़ाई का जज्बा इनके आंदोलनकारी खून में है, इनमें भी अपने दादा व पिता की तरह वही जोश, वही जुनून है. इनके जोश और जुनून देख कर मेरी हिम्मत और ताकत दोगुनी हो गयी है. हमसे हमारा हक मान सम्मान कोई नहीं छीन सकता है.

सीता सोरेन ने झामुमो महासचिव विनोद पांडेय पर आरोप लगाया है कि चतरा दौरे के दौरान उन्होंने स्थानीय जिलाध्यक्ष को यह निर्देश दिया कि पार्टी कार्यकर्ताओं को उनसे न मिलने दिया जाये और जो कार्यकर्ता मिले उनके खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. सीता सोरेन के पत्र में यह भाव छिपा हुआ है कि उनकी संगठन में उपेक्षा हो रही है जबकि वे पार्टी की महासचिव भी हैं.

सीता सोरेन के पास सांगठनिक पद होते हुए भी सांगठनिक जिम्मेवारियां नहीं के बराबर हैं. वे ट्विटर पर अधिकतर अपने विधानसभा क्षेत्र व जिले के जमीनी मुद्दों को लेकर ही सक्रिय रहती हैं और सूबे की बड़ी राजनैतिक गतिविधियों से दूर नजर आती हैं. लेकिन, अब ऐसा लगता है कि वे अपनी भूमिका व हक को लेकर अधिक सचेत व मुखर हो गयीं हैं. अगर मामला सिर्फ विनोद पांडेय तक का होता तो शायद उनकी बेटियां सवाल नहीं उठातीं और राजनीति में सक्रिय हर माता-पिता भी अपने बच्चों के राजनैतिक भविष्य के बारे में तो सोचता ही है.

सीता सोरेन के सवालों को देखते-समझते हुए हमें महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरेे-राज ठाकरे व अजीत पवार-सुप्रिया सुले, उत्तरप्रदेश के अखिलेश यादव-अपर्णा यादव, बिहार के तेजस्वी यादव-तेज प्रताप यादव के मामलों को नहीं भूलना चाहिए.

 

Edited By: Samridh Jharkhand

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