
Rakesh Jat, a farmer from Karnisar village, stands near a tubewell being fed by a pipe carrying water from the Ghaggar (Photo Amarpal Singh Verma)
अमरपाल सिंह वर्मा
हनुमानगढ़, राजस्थान: एक दशक से ज्यादा समय से राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के किसान घग्गर नदी से इस क्षेत्र में भूजल को कृत्रिम रूप से रिचार्ज कर रहे हैं. धीरे– धीरे घटते जल स्तर के कारण उन्हें मजबूरी में इस कदम को उठाना पड़ा था. लेकिन आज उनका ये फैसला उनके लिए काफी मददगार साबित हो रहा है. इसने न केवल फाइटिक ज़ोन को फिर से भरने में मदद मिली है, बल्कि किसान अपने खेतों से बेहतर उपज पाने में भी सफल रहे हैं.
घग्गर नदी हिमाचल प्रदेश के शिवालिक से निकलती है और हनुमानगढ़ के तलवारा झील गांव के पास से होते हुए राजस्थान में प्रवेश करती है. इसके बाद पंजाब में खन्नौरी और हरियाणा में चांदपुर से गुजरते हुए ओट्टू बैराज तक जाती है. बारिश पर निर्भर इस मौसमी नदी को स्थानीय तौर पर ‘नाली‘ के नाम से जाना जाता है. लगभग 20 साल पहले तक श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ के पास से पाकिस्तान में फोर्ट अब्बास तक बहती थी. लेकिन आज यह सिर्फ हनुमानगढ़ तक ही सिमट कर रह गई है. कारण? इसका घटता जल स्तर. पाकिस्तान की तो बात ही छोड़िए, ये नदी अब श्रीगंगानगर तक भी नहीं पहुंच पाती है.
जलग्रहण क्षेत्रों में बारिश की कमी और हरियाणा में ओट्टू बैराज पर एक बांध के निर्माण ने नदी के पानी की मात्रा को राजस्थान तक पहुंचने से रोक दिया. इसके अलावा 90 के दशक में कई बार बैराज से राजस्थान की ओर 35,000 क्यूसेक पानी छोड़े जाने से इस क्षेत्र में बेकाबू बाढ़ का भी सामना करना पड़ा. मौजूदा समय में ओट्टू से केवल सीमित मात्रा में पानी छोड़ा जाता है जो ज्यादातर हरियाणा में सिंचाई के लिए होता है. इसमें से बमुश्किल 2000 से 4000 क्यूसेक पानी ही हनुमानगढ़ तक पहुंच पाता है.
इस वजह से इलाके की चावल की फसलों को नुकसान होने लगा और ट्यूबवेल पर लोगों की निर्भरता बढ़ गई. लेकिन भविष्य को चिंता करते हुए कुछ किसानों ने महसूस किया कि अगर वे भूजल का इसी तरह से दोहन करते रहे तो यह आने वाले समय में और भी बड़ी समस्या बन जाएगा. उस समय पानी का स्तर गिरना शुरू हो गया था.
डाबलीराथन गांव के पास चक 35 एसएसडब्ल्यू के रहने वाले एक किसान गुरचरण सिंह ने कहा, “करीब 12-13 साल पहले पानी के संकट को भांपते हुए किसानों ने यहां भूजल रिचार्ज करना शुरू कर दिया था. इस इलाके में अब ऐसा कोई भी किसान नहीं है जिसने भूजल पुनर्भरण की व्यवस्था नहीं की हो ”.
एक दीर्घकालिक, समुदाय- केंद्रित समाधान
समुदाय ने भूजल का कायाकल्प कैसे किया?, यह बताते हुए कामरानी के एक किसान भीम सिंह राघव ने कहा, “जिन किसानों की जमीन नदी के किनारे है, उन्होंने अपने भूजल संसाधन को फिर से भरने के एकमात्र उद्देश्य से नदी के बीच में बोरवेल खोदे. पाइपों के अंदर मिट्टी न जाए इसके लिए, वे लोहे के जाल लगाते हैं. जून–जुलाई में जब नदी का बहाव शुरू होता तो इन बोरवेल से पानी रिसते हुए सीधा जमीन में चला जाता है. यह अवशोषण नदी का पानी बहते रहने तक जारी रहता है. और इस तरह से इस साल दर साल इलाके का भूजल स्तर बढ़ रहा है.”
पीलीबंगा नगर पालिका के पास के गांव दबलीराथन में भी किसानों ने अपने नलकूपों में नदी के पानी के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिए व्यवस्था की ताकि भूजल स्तर को ऊपर बनाए रखा जा सके. उन्होंने नदी के बीच में गहरे पाइप खोदे, जिसके जरिए तटबंधों पर बने ट्यूबवेल से पानी खींचा जाता है. करणीसर के एक किसान राकेश जाट के अनुसार, किसानों ने न केवल अपने लिए व्यवस्था की बल्कि समुदाय के लिए पानी के स्रोत को फिर से भरने के लिए पैसे भी जमा किए.
उन्होंने कहा, “करीब तीन साल पहले यहां के 10 किसानों ने घग्गर के किनारे 24 इंच मोटा पाइप लगाने के लिए करीब 32 लाख रुपए खर्च किए थे. जब तक नदी का पानी बहता है, यह लगभग 2 किमी के क्षेत्र में बने इन 10 ट्यूबवेल तक पहुंचता है और भूजल स्तर को ऊंचा बनाए रखता है.”
घग्गर नदी से पाइप के जरिए जिस ट्यूबवेल तक पानी पहुंचाया जाता है, करणीसर गांव के किसान राकेश जाट उसी ट्यूबवेल के पास खड़े हैं (फोटो: अमरपाल सिंह वर्मा)
अनुमान है कि घग्गर नदी के दोनों किनारों पर करीब 250 से 300 किसानों ने जरूरी इंतजाम कर रखे हैं. हनुमानगढ़ में घग्गर फ्लड कंट्रोल एंड ड्रेनेज डिवीजन के कार्यकारी अभियंता प्रदीप बंसल ने समझाया, “इस प्रणाली से किसानों को दो तरह से फायदा होता है: जब तक नदी में पानी है, वे इसके जरिए अपने खेतों की सिंचाई कर सकते हैं. और दूसरा इसके साथ– साथ ट्यूबवेल से पानी के निरंतर प्रवाह की वजह से भूजल रिचार्ज होता रहता है. ”
सब अपने खर्चे पर
करणीसर और दबली रथन इलाकों में किसान इन सामुदायिक पहलों का खर्च खुद ही वहन कर रहे हैं. उन्होंने 70,00 रुपये से लेकर 1.25 लाख रुपये के बीच खर्च किया है. उनके प्रयासों के लिए किसी भी योजना के तहत सरकार से कोई सब्सिडी या सहायता नहीं मिली है.
लेकिन घग्गर फ्लड कंट्रोल एंड ड्रेनेज डिवीजन ने टिब्बी तहसील के कामरानी गांव से पीलीबंगा तहसील तक इस संरक्षण कार्य में लगे किसानों का सहयोग किया है. चार साल पहले विभाग ने 34 जल संचयन संरचनाओं के निर्माण के लिए लगभग 1करोड़ रुपये खर्च किए थे. विभाग के जूनियर इंजिनियर रजत चौधरी ने कहा, ‘किसानों और विभाग के सहयोग से जो व्यवस्था की गई है उससे यहां के जलस्तर को रिचार्ज किया जा रहा है. भूजल का स्तर गिरना बंद हो गया है. पानी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है.”
जब घग्गर के चारों ओर जल स्तर की ऊंचाई अलग– अलग होती है तो नदी में एक महीने तक बने रहने वाला निरंतर प्रवाह जल स्तर को 10 फीट से 20 फीट तक बढ़ा देता है. हनुमानगढ़ के किसान अपने सभी प्रयासों के चलते आज गेहूं, सरसों और सब्जियों की फसलों के अलावा लगभग 35,000 हेक्टेयर भूमि पर चावल का उत्पादन करने में भी सक्षम हैं.
सहजीपुरा के किसान प्रभुदयाल दुधवाल के मुताबिक 10 साल पहले यहां के भूजल का खारापन जगह–जगह बढ़ने लगा था, लेकिन वह भी अब नियंत्रण में है उन्होंने एक प्राकृतिक वाटर कूलर की ओर इशारा करते हुए 101 रिपोर्टर्स से कहा, “आप उस बर्तन में रखे ट्यूबवेल के मीठे पानी को पीकर खुद ही जांच कर सकते हैं.”
भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन करने वाले राज्य में हनुमानगढ़ एक अपवाद
2021 में राज्य विधानसभा में सरकार ने कहा था कि राजस्थान के 32 में से 29 जिले भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन करने वाली श्रेणी में आते हैं. इसके विपरीत हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, बांसवाड़ा और डूंगरपुर में भूजल स्तर अनुकूल है. राजस्थान के अधिकांश जिलों में भूजल का औसत स्तर 47 मीटर और 70 मीटर के बीच है, जबकि हनुमानगढ़ में यह 17.47 मीटर है.
इसके बारे में श्रीगंगानगर में भूजल विभाग के प्रभारी जलविज्ञानी बरकत अली ने कहा: “हनुमानगढ़ में नहरों के जरिए सिंचाई के लिए ज्यादातर सतही पानी का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए, भूजल का नाममात्र का उपयोग होता है. नहरों के जरिए निरंतर पुनर्भरण में भी मदद मिलती है.”
हनुमानगढ़ में अटल भुजल योजना के नोडल अधिकारी अली ने कहा कि इसका उद्देश्य किसानों को ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल करने और कम पानी वाली फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करना है. इस योजना के तहत सरकार ने जिले के संगरिया, टिब्बी और हनुमानगढ़ ब्लॉक को शामिल किया है.
उन्होंने कहा, “हम सात विभागों की मदद से योजना के तहत समुदाय के साथ काम करेंगे. यह सराहनीय है कि किसान समुदाय पहले से ही घग्गर नदी क्षेत्र में भूजल को रिचार्ज करने की कोशिशों में लगा है. हम प्रासंगिक क्षेत्रों का दौरा करेंगे और उनके प्रयासों की जांच करेंगे. अगर उन्हें किसी सुधार की जरूरत होगी तो उन्हें संबंधित विभागों से सभी जरूरी सहायता दी जाएगी.”
बारिश पर निर्भर मौसमी नदी घग्गर, जिसे स्थानीय रूप से ‘नाली’ के रूप में जाना जाता है, लगभग 20 साल पहले तक सीमा से परे पाकिस्तान में भी बहती थी. लेकिन जल स्तर कम होने के कारण आज यह हनुमानगढ़ तक ही सिमट कर रह गई है (फोटो: विजय मिधा)
स्वतंत्र विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि इस प्रकार का भूजल रिचार्ज बेहद अप्रत्याशित है. जैसाकि दिखाई दे रहा है, यह प्रभावी और टिकाऊ दोनों है. हनुमानगढ़ के एक सलाहकार हाइड्रोलॉजिस्ट सुरेंद्र कुमार शर्मा पिछले 24 सालों से राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में किसानों को भूजल पर सलाह दे रहे हैं और ट्यूबवेल लगाने में उनकी मदद कर रहे हैं. वह इस सिस्टम का समर्थन करते हैं. 67 साल के शर्मा ने समझाया, “उदाहरण के लिए, अगर हम एक लाख लीटर पानी जमीन में भेजते हैं, तो हमें 1.25 लाख लीटर पानी वापस मिलता है.” साथ ही उन्होंने कहा कि किसानों को यह सुनिश्चित करना होगा कि पानी के साथ मिट्टी भूजल स्तर तक न जाए. इसके लिए पानी को छानना जरूरी है.
जयपुर स्थित जल संरक्षण संस्थान के अध्यक्ष और भूजल विशेषज्ञ डॉ सुशील कुमार जैन भी शर्मा की के इन विचारों से सहमत थे. उन्होंने सिंचाई के बाद बचे अतिरिक्त पानी का इस्तेमाल जल स्तर को फिर से भरने के लिए किए जाने की सराहना की. उन्होंने आगाह किया कि मिट्टी और अन्य तत्वों को पानी से फ़िल्टर किया जाना जरूरी है वरना भूजल प्रदूषित हो जाएगा.
श्रद्धा चौधरी द्वारा संपादित
यह लेख 101रिपोर्टर्स की सीरीज द प्रॉमिस ऑफ कॉमन्स का एक भाग है. इस सीरीज में हम यह पता लगाएंगे कि साझा सार्वजनिक संसाधनों का उचित प्रबंधन कैसे पारिस्थितिकी तंत्र के साथ–साथ इसमें रहने वाले समुदायों की मदद कर सकता है.
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