
धनबाद के निरसा में स्थित कोयला भट्टी, यहां ऐसी दर्जनों भट्टियां संचालित होती हैं। फोटो : राहुल सिंह।
रांची : वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने इसी महीने जारी अपने एनर्जी ट्रांजिशन इंडेक्स 2022 में कहा है कि उद्योग के बिना 2050 तक नेट जीरो इकोनॉमी यानी शून्य उत्सर्जन अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उद्योगों का मानव जनित उत्सर्जन में 30 प्रतिशत का हिस्सा है और उसे डीकार्बाेनाइज कार्बन से मुक्त करना, जैसे प्रतिस्पर्धी कम उत्सर्जन तकनीक का अभाव, बुनियादी ढांचे को सक्षम बनाने के लिए पूंजी की उपलब्धता का अभाव आदि चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उद्योग विश्व अर्थव्यवस्था के लिए रीढ की हड्डी की तरह हैं। आधुनिक समाज के विकास के लिए उसे ऊर्जा एवं आवश्यक सामग्री की आपूर्ति करना आवश्यक है। उद्योंगों में ईंधन दहन एवं अन्य प्रक्रियाओं के जरिए कुल कार्बन उत्सर्जन का 30 प्रतिशत हिस्सा उत्पन्न होता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पॉवर सेक्टर में डीकार्बाेनाइज करने के प्रयासों का पिछले दशक उल्लेखनीय परिणाम आया है और यह 2010 के कुल हिस्सेदारी का 20 प्रतिशत से बढकर 2020 में 29 प्रतिशत हो गया है। कई उद्योग अभी भी अपने अल्प कार्बन भविष्य के मार्ग को परिभाषित कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच भारी उद्योग सीमेंट, लौह-इस्पात, गैस, रसायनिक और कोयला उद्योग अकेले कुल औद्योगिक उत्सर्जन में 80 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि 2030 तक सभी औद्योगिक उत्सर्जन में व्यापक बदलाव हो।
रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या वृद्धि व विकास की वजह से ईंधन और मांग को लगातार 2050 तक बढने की संभावना है। अल्युमीनियम, स्टील एवं कई अन्य खनिज सोलर पैनल, विंड टार्बाइन, पॉवर ग्रिड, इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाने के मुख्य घटक हैं। 2050 तक स्टील की मांग 30 प्रतिशत, सीमेंट और अमोनिया 40 प्रतिशत, अल्यमुमीनियम की मांग 80 प्रतिशत बढने की संभावना है। इसके साथ ही डीकार्बोनाजेशन (कार्बन का कम किया जाना) आक्रामक रूप में होने की संभावना है। हालांकि तेल और गैस संकुचित होते हुए भी ऊर्जा मिश्रण में एक महत्वपूर्ण भूमिका 2050 के बाद भी निभाते रह सकते हैं।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ी औद्योगिक हिस्सेदारी वाले देशों को अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन के कारण खराब हवा गुणवत्ता का सामना करना पड़ता है। ये अर्थव्यवस्थाएं अपने उद्योगों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए ईंधन सब्सिडी पर अधिक विश्वास करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जी20 अर्थव्यवस्थाओं की औद्योगिक गतिविधियों के एक बड़े हिस्से के अ्रप्रत्यक्ष कारकों की वजह से ट्रांजिशन का सामना करने की संभावना है। ये कारक कुशल श्रम का अभाव और उनके लिए औद्योगिक गतिविधियों को बढावा देने वाले वैल्यू एडिशन और उत्पादकता के स्तर पर परिवर्तनकारी वातावरण का अभाव, हो सकते हैं। बड़े उद्योग क्षेत्र सहित अर्थव्यवस्था को डीकार्बाेनाइज्ड करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। रिपोर्ट में उत्सर्जन को सीमित औद्योगिक दायरे में नहीं देखने-समझने की बात कहते हुए कहा गया है कि डिकार्बाेनाज्ड करने के लिए बड़ी मात्रा में आवश्यक आधारभूत संरचना के साथ परिवर्तनकारी पूंजी के साथ कम उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों, जैसे कम उत्सर्जन वाली बिजली, हाइड्रोजन एवं कार्बन भंडारण की आवश्यकता होगी।
रिपोर्ट में इंटरनेशन एनर्जी एजेंसी के आकलन के हवाले से कहा गया है कि जब 2020 से 2040 के बीच जहां वैश्विक उत्सर्जन 81 प्रतिशत कम होने की उम्मीद है, वहीं इस अवधि में औद्योगिक उत्सर्जन मात्र 58 प्रतिशत तक कम होने की उम्मीद है। जी 20 देशों के पास अन्य देशों की तुलना में अधिक संसाधन होने और न्यूनतम कार्बन समाधान के लिए नेतृत्व का मौका है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि निम्न कार्बन ऊर्जा स्रोतों के साथ ऊर्जा मिश्रण का विविधीकरण ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर सकता है। यह भी कहा गया है कि देश अपने ऊर्जा आयात भागीदारों में विविधता लाकर अल्प काल में और दीर्घ काल में ऊर्जा मिश्रण द्विस्तरीय ऊर्जा विविधीकरण में शामिल हो सकते हैं।
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