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नयी दिल्ली : नवीकरणीय ऊर्जा का ओपन एक्सेस बाजार हाल के सालों में लगभग सभी प्रमुख नवीीकरणीय ऊर्जा समृद्ध राज्यों में विस्तार कर रहा है। यह बात इंस्टीट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स, फिनांसियल एनालिसिस (IEEFA) और जेएमके रिसर्च एवं एनालिटिक्स की एक ताजा रिपोर्ट में कही गयी है।
आइइइएफए की एनर्जी इकोनॉमिस्ट और लीड इंडिया विभूति गर्ग ने कहा, भारत में ओपन एक्सेस मार्केट का विकास केंद्र और राज्य दोनों स्तरों की नीतियों और नियामक वातावरण पर निर्भर रकता है। पिछले साल विनियमों के संदर्भ में कुछ सकारात्मक विकास देखा गया। जून 2022 में जारी ग्रीन ओपन एक्सेस पॉलिसी में अक्षय ऊर्जा ओेपेन एक्सेस बाजार परिदृश्य को सुधारने की पूरी क्षमता है।
उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि राज्यों द्वारा ग्रीन ओपन एक्सेस पॉलिसी के कुशल और समय पर कार्यान्वयन से कुछ मौजूदा नियामक चुनौतियों को कम करने में मदद मिलेगी। कुल मिलाकर हम उम्मीद करते हैं कि अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस बाजार बढता रहेगा और वर्ष 2030 तक भारत के 450 गीगावाट के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य और ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए सरकार के दबाव में प्रमुख योगदानकर्ता होगा”।
रिपोर्ट में यह पाया गया कि कई नियामकीय बाधाओं और कीमतों में वृद्धि के बावजूद बाजार व्यवस्थित रूप से विकसित हुआ है। 2009 के लगभग 300 मेगावाट से अक्षय ऊर्जा ओपस एक्सेस मार्केट आकार वित्तीय वर्ष 2022 तक बढ कर 10 गीगावाट हो गया। 10 गीगावाट में दो तिहाई पिछले पांच सालों में जुड़े। अकेले वित्त वर्ष 2022 में लगभग 1.9 गीगावाट नई ओपन एक्सेस अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ी गयी।
जेएमके रिसर्च की संस्थापक सह लेखिका ज्योति गुलिया ने कहा, “वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों की ओर से मांग और बढती जागरूकता इस विकास के प्रमुख कारक थे। स्वच्छ बिजली की गिरती लागत और वाणिज्यिक व औद्योगिक ग्राहक के डीकार्बाेनाइजेशन लक्ष्यों ने अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस क्षमता बढाने में मदद की”।
यह रिपोर्ट अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस बाजार के लिए हाल के दिनों में प्रमुख नियामक और बाजार के विकास का आकलन पेश करती है। यह पाया गया है कि कई नियामकीय चुनौतियां राज्य स्तर पर अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस बाजार में बाधा डालती हैं।
रिपोर्ट के सह लेखक और जेएमके रिसर्च के सीनियर रिसर्च एसोसिएट प्रभाकर शर्मा ने कहा, ग्रुप कैप्टिव प्रोजेक्ट के लिए अनुमोदन प्रक्रिया में देरी जैसी बाधाएं अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस बाजार के विकास में बाधा डाल रही हैं। अन्य बाधाओं में प्रतिकूल बिजली बैंकिंग प्रावधान और पॉवर शिड्यूल में विचलन पर बढी हुई पेनाल्टी शामिल हैं।
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राज्यों को बिजली बैंकिंग पर और प्रतिबंधात्मक उपाय नहीं करने चाहिए, कम से कम जब तक वे केंद्र सरकार के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते। रिपोर्ट राज्यों से डेवलपर्स-निवेशकों को बेहतर दीर्घकालिक स्पष्टता प्रदान करने के लिए एक बहुवर्षीय टैरिफ संरचना को लागू करने का भी आग्रह करता है।
नियामक चुनौतियों के अलावा, रिपोर्ट में अक्षय ऊर्जा बाजार के लिए आपूर्ति पक्ष बाध्याताएं एक अहम प्रतिकूलता स्थिति है। उदाहरण के लिए सौर मॉड्यूल की कीमतें पिछले 18-20 महीनों में आपूर्ति श्रृंखला बाधाओं और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के कारण बढ़ी हैं, जिससे परियोजना की व्यवहार्यता प्रभावित हुई है।
जेएमके रिसर्च के सीनियर रिसर्च एसोसिएट और रिपोर्ट के सह लेखक अखिल थायिलम कहते हैं, भारत आयातित मॉड्यूल पर 40 प्रतिशत बेसिक सीमा शुल्क लगाने और उच्च क्षमता वाले घरेलू विनिर्माण क्षमता की कमी पहले से ही चिंताजनक स्थिति को बढा रही है। अक्टूबर 2022 से ओपन एक्सेस डेवपलपर्स के लिए मॉडल और निर्माताओं की अनुमोदित सूची एक अतिरिक्त जोखिम है।
रिपोर्ट में अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस बाजार के विकास की गति को बरकरार रखने के लिए घरेलू विनिर्माण क्षमताओं का विकास होने तक एएलएमएम को स्थगित करने का आह्वान किया है।
विभूति गर्ग अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस मार्केट की संभावनाओं एक समग्र मूल्यांकन कतरे हुए कहती हैं, “भारत में ओपन एक्सेस बाजार लगातार परिपक्व हो रहा है और अक्षय ऊर्जा ओपन एक्सेस के बारे में व्यावसायिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं की बढती जागरूकता के साथ हम उम्मीद करते हैं बाजार आगे बढेगा”।
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