भारत में ट्रांजिशन प्रक्रिया में वित्तीय ढांचे का संतुलन बनाए रखना चुनौती : रिसर्च

भारत में ट्रांजिशन प्रक्रिया में वित्तीय ढांचे का संतुलन बनाए रखना चुनौती : रिसर्च

जलवायु परिवर्तन की चिंताओं के मद्देनजर निम्न कार्बन भविष्य व नेट जीरो लक्ष्य को हासिल करने के लिए वैश्विक स्तर पर एनर्जी ट्रांजिशन की प्रक्रिया चल रही है। भारत ने भी 2070 तक नेट जीरो हासिल करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन, जलवायु परिवर्तन शमन के लिए होने वाली इस कवायद में वैश्विक वित्तीय प्रणाली में तीव्र व गहन बदलाव की आवश्यकता है। दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक भारत में ट्रांजिशन की स्थिति में उत्पन्न होने वाली वित्तीय चुनौतियों को लेकर इसी सप्ताह एक रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ है।

ओडीआइ ग्लोबल की डायरेक्टर क्लाइमेट एंड सस्टेनेबिलिटी सारा कोलेनब्रांडर (Sarah Colenbrander) की अगुवाई में छह अन्य लोगों के साथ तैयार किए गए इस शोध पत्र को लो कार्बन ट्रांजिशन रिस्क फाॅर इंडियास फिनांसियल सिस्टम (Low-carbon transition risks for India’s financial system) नाम दिया गया है।


सारा ने अपने ट्विटर एकाउंट पर इस रिसर्च पेपर को पोस्ट करने के साथ अपने ट्विटर थ्रेड में लिखा है कि भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था व तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, लेकिन इसके लाखों नागरिक जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हैं। इस प्रकार भारत में निवेश और कर्ज देने का निर्णय यह निर्धारित करेगा कि क्या शमन (mitigation) और अनुकूलन (adaptation) के लिए वैश्विक महत्वाकांक्षा हासिल की जा सकती है।

उन्होंने कहा है कि अत्यधिक उत्सर्जन करने वाले क्षेत्रों में बकाया कर्ज का 10 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें बिजली उत्पादन, सीमेंट, लोहा, इस्पात और गैर लौह धातु व नागर विमानन क्षेत्र शामिल हैं। इसमें कुछ क्षेत्र प्रणालीगत जोखिम पैदा कर सकते हैं। यह भी कहा गया कि सेक्टोरल औसत फर्माें के बीच बड़े अंतर को छिपाते हैं। उदाहरण के तौर पर, बिजली क्षेत्र में दिया जाने वाला 82.5 प्रतिशत कर्ज जीवाष्म ईंधन क्षेत्र को जाता है और मात्र 17.5 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को जाता है। सारा ने उन 10 कर्ज धारक औद्योगिक इकाइयों का भी जिक्र किया है, जिन्हें ट्रांजिशन जोखिमों का अधिक सामना करना पड़ता है।

इस रिसर्च में इस सवाल का जवाब भी तलाशने की कोशिश की गयी है कि क्या भारत के वित्त पेशेवर इन जोखिमों का सामना करने को तैयार हैं। सारा ने लिखा है – हमने 10 सबसे बड़े वित्तीय संस्थानों के हमारे सर्वेक्षण में पाया कि केवल दो ग्रीन हाउस गैस पर डेटा इकट्ठा करते हैं, केवल एक ही निम्न कार्बन जोखिमों पर डेटा इकट्ठा करता है, फिजिकल क्लाइमेट रिस्क का आकलन कोई नहीं करता है।

सारा के अनुसार, यहां तक कि बैंक जलवायु संबंधी डेटा एकत्र करते हैं, पर वित्तीय निर्णयों को निर्देशित करने के लिए व्यवस्थित रूप से इसका उपयोग नहीं करते हैं। क्योंकि कर्मचारी इसका उपयोग करना नहीं जानते। यह पाया गया कि केवल छह में एक रिस्क एंड क्रेडिट ऑफिसर के पास वित्तीय जोखिमों का आकलन करने के लिए इएसजी डेटा के उपयोग का अनुभव है।

इस शोध पत्र में कहा गया है कि वित्तीय क्षेत्र के संक्रमण जोखिमों को रेखांकित करने व उसके प्रबंधन पर अनुसंधान और नीतिगत प्रयोग अबतक उच्च और उच्च मध्यम आय वाले देशों पर केंद्रित रहा है। इस क्षेत्र में निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में बहुत कम काम हुआ है, जिनकी वित्तीय प्रणालियों की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं और वित्तीय अधिकारियों की प्राथमिकताएं उन अमीर देशों से अलग होती हैं। इसलिए निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में निम्न कार्बन ट्रांजिशन जोखिमों और तैयारी का आकलन करने के लिए नए डेटा की जरूरत है।

इस रिसर्च पेपर में कहा गया है कि जैसे-जैसे कम कार्बन संक्रमण में तेजी आती है, कार्बन गहन संपत्तियों, फर्माें, क्षेत्रों में ऋण और निवेश में प्रत्याशित (उम्मीद के अनुरूप) रिटर्न उत्पन्न नहीं होने का जोखिम होता है। इसका विशिष्ट वित्तीय संस्थानों के साथ-साथ वित्तीय बाजारों पर अधिक गहरा प्रभाव पड़ता है।

इस शोध में हालात को समझने और चुनौतियों का आकलन करने के लिए कुछ अहम सवाल का जवाब जानने की कोशिश की गयी। मसलन – ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में निम्न कार्बन संक्रमण से होने वाले जोखिमों के लिए वित्तीय क्षेत्र का जोखिम कितना व्यापक है, क्या वित्त पेशेवर और वित्तीय संस्थान उन संक्रमण जोखिमों के प्रबंधन के लिए पर्याप्त कार्रवाई कर रहे हैं।

शोध का निष्कर्ष बताता है कि बदलती जलवायु नीतियां, बाजार और कम कार्बन वाली प्रौद्योगिकियां संभावित रूप से मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।

इस विषय से जुड़ा यह आलेख भी पढें:

भारत में सिर्फ छह में से एक फायनेंस प्रोफेशनल समझता है लो कार्बन एनर्जी ट्रांज़िशन से जुड़े रिस्क

Edited By: Samridh Jharkhand

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