भारत में 2023 के पहले पांच महीने में 11.5 गीगावाट कोयला बिजली परियोजनाओं को मंजूरी
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एण्ड क्लीन एयर (सीआरईए) के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक हालांकि भारत की घोषित, पूर्वानुमति प्राप्त और अनुमति प्राप्त कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता) की संख्या में वर्ष 2014 के मुकाबले 85 फीसद की कमी आयी है और यह 250 गीगावाट से घटकर 36 गीगावाट हो गयी है। वहीं पिछले साल वर्ष 2022 में भारत ने एक भी नये कोयला बिजलीघर की परियोजना को मंजूरी नहीं दी थी।
लेकिन, वर्ष 2023 के शुरुआती पांच महीनों के अंदर 11.5 गीगावाट (GW) कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता की परियोजनाएं मंजूरी के विभिन्न चरणों में आगे बढ़ायी गयीं। भारत ने करीब 3.9 गीगावाट की कोयला बिजली परियोजनाओं को मंजूरी दी जबकि 7.6 गीगावाट की ऐसी ही परियोजनाओं को टर्म ऑफ रिफरेंस की प्रक्रिया तक पहुंच गई है।
ऐसे में भारत की राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी 2023) के विश्लेषण से जाहिर हुआ है कि भारत की विकासाधीन कोयला बिजली उत्पादन क्षमता वर्ष 2027 से 2032 के लिये अनुमानित जरूरत से ज्यादा है।
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) में रिसर्च एनालिस्ट फ्लोहा शैम्पेनवा ने कहा, “वर्ष 2023 में भारत ने जिस तरह से कोयला आधारित बिजलीघरों को एक के बाद एक मंजूरी दी है उसने इस देश की ऊर्जा रूपांतरण की तर्ज को ही बदल दिया है। पिछले साल भारत ने एक भी नये कोयला बिजलीघर की परियोजना को मंजूरी नहीं दी थी। जो एक खराब, खर्चीली और पुराने जमाने की ऊर्जा से दूरी बनाने के दुनिया के रूख के अनुरूप था।’’
भारत कोयले से बनने वाली 65.3 गीगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता को सक्रिय रूप से विकसित कर रहा है। इसमें से 30.4 गीगावॉट कोयला बिजली क्षमता निर्माणाधीन है और 35 गीगावॉट निर्माण से पहले के विभिन्न चरणों में है (14.4 गीगावॉट अनुमति प्राप्त, 11.8 गीगावॉट पूर्व-अनुमति प्राप्त और 8.8 गीगावॉट घोषित)।
विश्लेषण में कहा गया है कि भारत के मौजूदा कोयला बिजली प्रस्ताव पहले से ही देश की ऊर्जा योजना में अनुमानित उल्लेखनीय कोयला बिजली उत्पादन क्षमता के विस्तार से ज्यादा हो चुके हैं।
भारत की ताजातरीन राष्ट्रीय ऊर्जा योजना (एनईपी 2023) के तहत पंचवर्षीय अनुमानों के आधार पर इस वक्त निर्माण के दौर से गुजर रही आठ गीगावाट से ज्यादा की नॉन कैप्टिव कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता दरअसल गैरजरूरी है। इसके अलावा निर्माण की दहलीज पर खड़े 34.9 गीगावाट उत्पादन क्षमता वाले सभी बिजलीघर भी अनावश्यक ही हैं।
एनईपी के 10 वर्षों के पूर्वानुमानों के तहत किसी भी नयी परियोजना को निर्माण से पूर्व की प्रक्रिया में डालने की कोई जरूरत नहीं है। अगर सभी निर्माण से पूर्व कोयला क्षमता को ऑनलाइन आना हो और 2.1 गीगावॉट को एनईपी के अनुमान के मुताबिक चलन से बाहर करना हो तो स्थापित ऑन-ग्रिड कोयला क्षमता 275 गीगावॉट तक पहुंच जाएगी, जो आधार मामले के तहत वित्त वर्ष 2032 में एनईपी की 259.6 गीगावॉट की अनुमानित जरूरी से कहीं ज्यादा है।
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) में रिसर्च एनालिस्ट फ्लोहा शैम्पेनवा ने कहा, “भारत के पास सितंबर में दिल्ली में जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में सही उदाहरण स्थापित करने और कोयले से साफ ऊर्जा रूपांतरण वाले नतीजों पर जोर देने का मौका है।”
भारत के पास आगामी सितम्बर में दिल्ली में आयोजित होने जा रही जी20 लीडर्स समिट में मजबूत नतीजों को आगे बढ़ाने और कोयले को छोड़कर साफ ऊर्जा में रूपांतरण की रफ्तार को तेज करने का माहौल बनाने का सुनहरा मौका है। इससे ऊर्जा तक पहुंचे और ऊर्जा सुरक्षा के तौर पर दोहरी जरूरतें हल होंगी। स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में एक व्यवस्थित कदम से जलवायु संकट का सामना करने, आर्थिक उत्पादकता बढ़ाने, नौकरियां पैदा करने और पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करने में भी मदद मिलेगी। कोयला आधारित बिजली और अक्षय ऊर्जा दोनों में एक साथ निवेश करने से भारत के लिए ऊर्जा परिवर्तन और भी दुरूह हो जाएगा।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के अनुसार -‘‘ पहले ही बिलियन डॉलर कीमत वाले कोयला आधारित बिजलीघर घाटे का सौदा यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) में तब्दील हो चुके हैं । ऐसे में और अधिक संख्या में कोयला बिजलीघरों एक बार फिर और ज्यादा फंसी हुई परिसंपत्तियों का कारण बन सकते है।”