Climate कहानी: वॉशिंगटन में दुनिया के भविष्य पर मंथन: कर्ज़, क्लाइमेट, और राजनीति एक मेज़ पर

एक नई दौड़, एक पुरानी सियासी लड़ाई

Climate कहानी: वॉशिंगटन में दुनिया के भविष्य पर मंथन: कर्ज़, क्लाइमेट, और राजनीति एक मेज़ पर
(फोटो)

वॉशिंगटन डी.सी. में 13-18 अक्टूबर के बीच होने वाली वर्ल्ड बैंक और IMF की सालाना बैठकें सिर्फ़ वित्तीय फैसलों तक सीमित नहीं हैं। इस बार क्लाइमेट फाइनेंस, कर्ज़ राहत और वैश्विक साउथ की आवाज़ मुख्य मुद्दे हैं। 1.3 ट्रिलियन डॉलर के जलवायु वादों की हकीकत, अमीर और गरीब देशों के बीच भरोसा, और राजनीतिक दबावों के बीच बहुपक्षीय विकास बैंकों की भूमिका तय करेगी कि वैश्विक आर्थिक प्रणाली कितनी तेजी से “बदलाव की अर्थव्यवस्था” की ओर बढ़ सकती है।

वॉशिंगटन डी.सी. में इस हफ्ते (13 से 18 अक्टूबर) कुछ बड़े फैसले होने वाले हैं। यह वो जगह है जहाँ हर साल दुनिया की अर्थव्यवस्था का रास्ता तय होता है-World Bank और IMF की सालाना बैठकें। लेकिन इस बार माहौल कुछ और है। पृष्ठभूमि में उभर रहे हैं कई सवाल: क्या अमीर देश अपने कर्ज़ के जाल में फंसे गरीब देशों को राहत देंगे? क्या जलवायु परियोजनाओं में निवेश जारी रहेगा या राजनीतिक दबाव के आगे रुक जाएगा? और क्या वो 1.3 ट्रिलियन डॉलर की सालाना क्लाइमेट फाइनेंस डील, जिस पर दुनिया ने पिछले साल बाकू में भरोसा किया था, अब हकीकत बन पाएगी?

एक नई दौड़, एक पुरानी सियासी लड़ाई

इस साल Multilateral Development Banks (MDBs) यानी बहुपक्षीय विकास बैंकों ने रिकॉर्ड $137 बिलियन की क्लाइमेट फाइनेंस दी-जिसमें से $85 बिलियन निचले और मध्यम आय वाले देशों को गया। यह आंकड़ा सुनने में सूखा लग सकता है, लेकिन यह बताता है कि दुनिया अब “बदलाव की अर्थव्यवस्था” में कदम रख चुकी है। Inter-American Development Bank ने अकेले $11 बिलियन अनलॉक करने के नए टूल लॉन्च किए हैं, EBRD और AIIB ने जलवायु को शीर्ष प्राथमिकता बनाया है, और New Development Bank (BRICS बैंक) ने पहली बार क्लाइमेट फाइनेंस को अपने मिशन का केंद्र बनाया है। पर इसी बीच, वर्ल्ड बैंक और IMF के भीतर राजनीति गरम है। अमेरिका की नई ट्रंप-समर्थक टीम इन संस्थाओं से कह रही है-फॉसिल प्रोजेक्ट्स को मत भूलो। उनकी नज़र “गैस और न्यूक्लियर” को फिर से एनर्जी मिक्स में शामिल करने पर है। दूसरी तरफ़ यूरोप और ब्रिटेन जैसे शेयरहोल्डर्स वर्ल्ड बैंक को उसके क्लाइमेट मिशन पर टिके रहने का आग्रह कर रहे हैं। IMF के भीतर भी हलचल है। ट्रंप प्रशासन के पूर्व अधिकारी डेनियल कैट्ज़ अब IMF के डिप्टी डायरेक्टर हैं, और उन्होंने साफ कहा है कि “क्लाइमेट, जेंडर, और सोशल एजेंडा” पर इतना ज़ोर देना ज़रूरी नहीं। यानी, संस्थागत सुधार की आड़ में क्लाइमेट एजेंडा को पीछे धकेलने की कोशिशें भी जारी हैं।

1.3 ट्रिलियन डॉलर का सवाल

15 अक्टूबर को जी20 फाइनेंस मंत्रियों की मीटिंग के दौरान Circle of Finance Ministers Report जारी होगा-यही रिपोर्ट “Baku-to-Belém Roadmap” का आधार बनेगी, जो 27 अक्टूबर को आने वाली है। इस रोडमैप में तय होगा कि देश मिलकर कैसे हर साल 1.3 ट्रिलियन डॉलर जुटाएँगे, ताकि COP29 में किए वादे पूरे हों। Inter-American Development Bank पहले ही इस मॉडल को लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में पायलट कर रहा है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या दुनिया इतनी बड़ी राशि जुटा पाएगी- जबकि कर्ज़, राजनीतिक खींचतान और चुनावी दबाव एक साथ सिर उठा रहे हैं?

कर्ज़ की राजनीति और ग्लोबल साउथ की बेचैनी

Debt Relief इस साल के एजेंडा का दूसरा बड़ा मुद्दा है। कई अफ्रीकी देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने “Borrowers’ Club” और “African Debt Leaders Initiative” जैसे मंच बनाकर अपनी नाराज़गी जताई है-कहते हैं कि रिफॉर्म्स की रफ्तार बहुत धीमी है। IMF से अब उम्मीद की जा रही है कि वह इन प्रस्तावों को आगे बढ़ाएगा, लेकिन अमेरिकी दबाव और संस्थागत राजनीति के बीच यह संतुलन आसान नहीं होगा। 14 अक्टूबर को “Sovereign Debt, the Climate Challenge, and Geoeconomics” नाम से एक हाई-लेवल इवेंट होगा, जिसमें अफ्रीका के पूर्व प्रधानमंत्री हैलेमारियम डेसालेन जैसे नेता शामिल होंगे। यह बातचीत तय करेगी कि आने वाले महीनों में ग्लोबल साउथ अपनी शर्तों पर कितनी मजबूती से खड़ा हो सकता है।

यह भी पढ़ें Palamu News : दो हजार बोतल अवैध देशी शराब बरामद, पुलिस ने एक तस्कर को किया गिरफ्तार

क्लाइमेट फाइनेंस का असली संघर्ष

ये बैठकें हमें याद दिलाती हैं कि जलवायु वित्त केवल पैसे का सवाल नहीं है-यह भरोसे का भी सवाल है। क्या अमीर देश अपने वादों पर कायम रहेंगे? क्या गरीब देश बिना नए कर्ज़ के क्लाइमेट एक्शन को आगे बढ़ा पाएंगे? और क्या वैश्विक बैंकिंग सिस्टम, जो दशकों से पुराने ढर्रे पर चलता आया है, अब जलवायु युग के लिए खुद को नया रूप दे पाएगा?

यह भी पढ़ें NCRB accident Data: ओवर स्पीडिंग से बढ़ा खतरा, NCRB की हैरान करने वाली रिपोर्ट

कहानी का सार

वॉशिंगटन की इन मीटिंग्स में जो कुछ तय होगा, वो केवल वित्तीय नीति नहीं, बल्कि ग्रह का भविष्य तय करेगा। कर्ज़ और क्लाइमेट के बीच की यह रस्साकशी बताती है-हमारी लड़ाई सिर्फ़ कार्बन कम करने की नहीं, बल्कि भरोसा लौटाने की है।

यह भी पढ़ें बिहार विधानसभा चुनाव: पहले चरण का मतदान जोश में, 2020 के सभी चरणों का रिकॉर्ड टूटा

Edited By: Mohit Sinha

Latest News

घाटशिला उपचुनाव: माइक्रो ऑब्जर्वर का प्रथम रेंडमाइजेशन संपन्न, 36 पर्यवेक्षक होंगे तैनात घाटशिला उपचुनाव: माइक्रो ऑब्जर्वर का प्रथम रेंडमाइजेशन संपन्न, 36 पर्यवेक्षक होंगे तैनात
लातेहार में 65 हजार की रिश्वत लेते प्रधान सहायक रंगे हाथ गिरफ्तार
कांग्रेस ने भाजपा-जदयू कार्यकर्ताओं पर आदर्श आचार संहिता उल्लंघन का लगाया आरोप, उपायुक्त से कार्रवाई की मांग
Khunti News : 21 वर्षीय युवक ने जहर खाकर की आत्महत्या, पुलिस जांच में जुटी
बिहार विधानसभा चुनाव: पहले चरण का मतदान जोश में, 2020 के सभी चरणों का रिकॉर्ड टूटा
Simdega News: रामरेखा मेला से लौटते समय सड़क हादसा, दो भाजपा कार्यकर्ताओं की मौत, पांच घायल
बेकाबू सांड़ ने ली महिला की जान, दो दिन से दहशत में है मानगो क्षेत्र
बनारस रेलवे स्टेशन से प्रधानमंत्री मोदी देंगे वंदे भारत की सौगात
बिहार विधानसभा चुनावः पहले चरण में सुबह 11 बजे तक 27.65 प्रतिशत मतदान
रांची में 8 नवंबर से होगी 14वीं जिला खो-खो चैंपियनशिप
पश्चिमी सिंहभूम में ग्राम सभा में गूंजा जनसमस्याओं का मुद्दा, प्रशासन से कार्रवाई की मांग
इंडियन बैंक द्वारा मेगा स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम का आयोजन